कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में उस समय मौजूद लगभग सभी शक्तिशाली योद्धाओं ने भाग लिया कितने ही योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए थे और कुछ अपने युद्ध कौशल के बल पर अंत तक जीवित रहे थे लेकिन कुछ ऐसे भी योद्धा थे जिन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध से दूरी बना ली थी आइए जानते है वो योद्धा जो महाभारत युद्ध में नहीं हुए थे शामिल, भाग ना लेने का कारण,कौन थे वह योद्धा, और क्यों उन्होंने महाभारत युद्ध में भाग नहीं लिया।
योद्धा जो महाभारत युद्ध में नहीं हुए थे शामिल
परशुराम, बलराम, प्रद्युम्न, साम्भ, बभ्रुवाहन, रुक्मी, विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित ,नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि ने महाभारत युद्ध में भाग नहीं लिया था।
अगर यह सब भी महाभारत युद्ध में भाग लेते तो युद्ध और भी प्रलयंकारी हो जाता।
इनके अतिरिक्त कई योद्धा तो ऐसे थे जिनको कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले ही मार दिया गया था। अगर वह सब भी जीवित रहते तो उनमें से अधिकांश योद्धा कौरव पक्ष से ही लड़ते जो महाभारत युद्ध को और भी रोचक बना देते।
परशुराम क्यों नहीं शामिल हुए थे महाभारत युद्ध में?
परशुराम जी जैसे महान ऋषि कभी इस आधार पर पक्ष नहीं चुनते कि कौन किस से लड़ रहा है चाहे वह उनका प्रिय ही क्यों ना हो। परशुराम किसी भी कीमत पर धर्म का समर्थन करने में विश्वास रखते थे। परशुराम जी एक ब्राह्मण थे और एक ब्राह्मण को बिना किसी धार्मिक कारण के कभी अनावश्यक मानव हत्या में भाग नहीं लेना चाहिए। परशुराम जी ब्राह्मण होते हुए भी केवल धर्म के लिए ही सभी अधार्मिक क्षत्रियो का काल बन गए थे उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन का वध भी कर दिया था।
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भीष्म के साथ उनके युद्ध करने का भी एक कारण था परशुराम जी एक परित्यक्त महिला के सम्मान के लिए वह युद्ध लड़ रहे थे। यहां तक कि असत्य बोलने पर उन्होंने कर्ण को भी क्षमा नहीं किया था।
दुर्योधन जो कि अधर्म की मूल जड़ था उनके पक्ष में वे कभी भी युद्ध ना करते और पांडव पक्ष में स्वयं भगवान विष्णु के अंश नर नारायण थे। यहां तक कि महाभारत के उद्योग पर्व अध्याय 96 के अनुसार परशुराम जी कौरवों को समझाने के लिए पहुंचे थे और उन्होंने सबको नर नारायण और दंबोदव की कथा सुनाते हुए कहा था यह श्री हरि कृष्ण और अर्जुन उन्हीं नर नारायण का ही स्वरूप है संपूर्ण लोकों का निर्माण करने वाले नारायण जिनके बंधु है वे नर स्वरुप अर्जुन युद्ध में दुःसह हैं।
युद्ध में जिन की समानता कोई नहीं कर सकता उन्हें जीतने का साहस तीनों लोकों में कौन कर सकता है इसीलिए अगर मुझ पर तनिक भी संदेह नहीं है तो मेरे कहने से श्रेष्ठ बुद्धि का आश्रय लेकर पांडवों के साथ संधि कर लो ऐसा कहकर वहां से प्रस्थान कर गए।
बलराम क्यों नहीं शामिल हुए थे महाभारत युद्ध में?
बलराम जी भीम और दुर्योधन दोनों के ही गुरु थे लेकिन महाभारत में वर्णित है कि बलराम जी को दुर्योधन अधिक प्रिय थे और वह दुर्योधन को भीम की अपेक्षाकृत अधिक कुशल योद्धा मानते थे श्री कृष्ण से नारायणी सेना पाकर जब दुर्योधन बलराम जी से मिलने गए थे तब वहां बलराम जी ने दुर्योधन को इस प्रकार उत्तर दिया था तुम्हारे लिए मैंने श्री कृष्ण को बाध्य कर के कहा था कि हमारा दोनों पक्षों के साथ समान रूप से संबंध है राजन मैंने यह बात बार-बार दोहराई है परंतु श्री कृष्ण को जची नहीं और मैं श्री कृष्ण को छोड़कर एक क्षण भी अन्यत्र कहीं ठहर नहीं सकता अतः में श्रीकृष्ण की ओर देखकर मन ही मन इस निश्चय पर पहुंचा हूं कि मैं ना तो अर्जुन की सहायता करूंगा और ना ही दुर्योधन की पुरुष रतन तुम भरत वंश में उत्पन्न हुए हो जाओ क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करो।
कुरुक्षेत्र युद्ध आरंभ होने से पहले भी बलराम जी पांडवों के शिविर में पहुंचे थे वहां बलराम जी ने भगवान श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए कहा जान पड़ता है यह महा भयंकर और दारूण नरसंहार होगा ही इस युद्ध से पार हुए आप सब सुहृदो को अक्षत शरीर से युक्त और निरोग देखूंगा।
मेरा निश्चित विश्वास है कि इस युद्ध में पांडवों की अवश्य विजय होगी श्री कृष्ण का भी ऐसा ही दृढ़ संकल्प है मैं तो श्री कृष्ण के बिना इस संपूर्ण जगत की ओर आंख उठाकर देख भी नहीं सकता अतः ये केशव जो कुछ भी करना चाहते हैं मैं उसी का अनुसरण करता हूं।
भीमसेन और दुर्योधन ये दोनों ही वीर मेरे शिष्य एवं गदा युद्ध में कुशल है अतः मै इन दोनों पर एक सा स्नेह रखता हूं इसीलिए मैं सरस्वती नदी के तटवर्ती तीर्थों का सेवन करने के लिए जाऊंगा क्यूकि मै नष्ट होते कुरुवंशिओ को उस अवस्था में देखकर उनकी उपेक्षा नहीं कर सकूंगा।
ऐसा कह कर महाबाहू बलराम जी पांडवो से विदा ले मधुसूदन श्रीकृष्ण को संतुष्ट कर के तीर्थ यात्रा के लिए चले गए।
प्रद्युम्न क्यों नहीं शामिल हुए थे महाभारत युद्ध में?
महाभारत में कुरुक्षेत्र युद्ध में प्रद्युम्न का भाग ना लेने का कारण कहीं भी स्पष्ट रूप से वर्णित नहीं किया गया है। प्रद्युम्न के साथ उनके भ्राता साम्भ तथा पुत्र अनिरुद्ध ने भी कुरुक्षेत्र युद्ध में भाग नहीं लिया था। अगर वह भाग लेते भी तो अपने पिता श्री कृष्ण और अपने गुरु अर्जुन के विरुद्ध युद्ध लड़ते ऐसी संभावना कम ही थी।
प्रद्युम्न अति शक्तिशाली योद्धा थे उन्होंने अकेले ही कर्ण, भीष्म, जरासंध तथा अन्य कई गुरु योद्धाओं को बंदी बनाकर एक मायावी गुफा में डाल दिया था। वह पराक्रम में अर्जुन के ही समान थे और हो सकता है वे युद्ध में भाग लेकर अपने गुरु और पिता का वैभव कम नहीं करना चाहते थे परंतु अगर वह भी पांडवों के ही पक्ष से लड़ते तो शायद युद्ध की अवधि 18 दिन की ना होती।
साम्भ
वही बात करें साम्भ की तो उन्होंने दुर्योधन की पुत्री का स्वयंवर से अपहरण कर लिया था हालांकि यह दुर्योधन की इच्छा के विरुद्ध था और बलराम जी को बीच-बचाव करना पड़ा था। साम्भ अहंकारी और हठी प्रवृत्ति के थे उनका युद्ध में क्या निर्णय होता इसका भी वर्णन नहीं है परंतु वह भी कुरुक्षेत्र युद्ध से दूर ही रहे थे।
बभ्रुवाहन
अर्जुन ने अपने वनवास के दिनों में विभिन्न प्रदेशों का भ्रमण किया था उसी दौरान एक समय वह मणिपुर राज्य में पहुंचे थे वहां वे चित्रांगदा से मिले थे जब अर्जुन मणिपुर के राजा चित्रवाहन से उनकी बेटी का हाथ मांगने गए थे तो चित्रवाहन एक शर्त रख दी थी और अर्जुन और चित्र वाहन में यह समझौता हुआ था की अर्जुन और चित्रांगदा की जो भी संतान होगी वह मणिपुर राज्य की सेवा करेगी।
इसीलिए बब्रुवाहन कुरुक्षेत्र युद्ध में नहीं आए थे क्योंकि उन पर मणिपुर राज्य की देखभाल की जिम्मेदारी थी। अर्जुन कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले मणिपुर नहीं गए थे और ना ही उन्होंने बब्रुवाहन का युद्ध में भाग लेने के लिए आमंत्रित ही किया था। इस तरह अर्जुन ने चित्रवाहन को दिए अपने वचन को निभाया था।
याद रहे यह वही बब्रुवाहन थे जिनके साथ युद्ध करते हुए अर्जुन की मृत्यु हो गई थी और फिर उलूपी ने उन्हें पुनः जीवित कर दिया था। इस युद्ध के पीछे का कारण अर्जुन पर वसुओं का श्राप था जिसका ज्ञान उलूपी को हो गया था। अर्जुन इससे अनजान थे।
रुक्मी क्यों नहीं शामिल हुए थे महाभारत युद्ध में?
विदर्भ के राजा भीष्मक के पुत्र रुक्मी बेशक एक योद्धा थे पर वह पांडवों और कौरवों के स्तर के बिल्कुल भी नहीं थे जब पांडवों और कौरवों में युद्ध होना निश्चित हो गया था तब रुक्मी में भी एक अक्षौहिणी सेना लेकर कुरुक्षेत्र पहुंचे थे।
सर्वप्रथम वह पांडव के खेमे में पहुंचे और वहां उन्होंने अर्जुन से कहा पांडू नंदन अगर तुम डरे हुए हो तो मैं युद्ध में तुम्हारी सहायता के लिए आ पहुंचा हूं। मै इस महायुद्ध में तुम्हारी वह सहायता करूंगा जो तुम्हारे शत्रुओं के लिए असह हो उठेगी मेरे हिस्से में द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, तथा वीरवर भीष्म एवं कर्ण ही क्यों ना हो किसी को जीवित नहीं छोडूंगा।
अर्जुन ने कहा महाबाहो मै डरा हुआ नहीं हूं मुझे सहायक की भी आवश्यकता नहीं है आप अपनी इच्छा के अनुसार जैसा उचित समझें अन्यत्र चले जाइए या यही रहिए।
अर्जुन का यह वचन सुनकर रुक्मी अपनी विशाल सेना को लौटा कर उसी प्रकार दुर्योधन के पास गया दुर्योधन से मिलकर रुक्मी ने उससे भी वैसी ही बातें कही तब अपने को शूरवीर मानने वाले दुर्योधन ने भी उसकी सहायता लेने से इनकार कर दिया।
दोनों पक्षों ने जब उसे अपने साथ लेने से मना कर दिया तो वह अपने नगर लौट आया था।
अन्य योद्धा जो महाभारत युद्ध में नहीं हुए थे शामिल?
विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित ,नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि ने भी महाभारत युद्ध में भाग नहीं लिया था।
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