Sheshnag: शेषनाग कौन हैं, वो कितने शक्तिशाली हैं | All information about Sheshnag

महाभारत, रामायण और कई पुराणों में शेषनाग का वर्णन विस्तार से किया गया है। तो आइये जानते है भगवान शेषनाग के बारे में सारी जानकारी की उनकी उत्पत्ति कैसे हुई, उनकी तपस्या, शेषनाग ने क्यों किया पृथ्वी को अपने फन पर धारण, उनके अवतार, शेषनाग कितने शक्तिशाली थे, आदि।

समस्त नागो के स्वामी शेषनाग जी जिन्हे आदि शेष या अनंत भी कहते हैं। क्षीर सागर में भगवान विष्णु जी इन्हीं पर शैन करते हैं। वे बहुमुखी आदि शेष ही हैं जिन्होंने समस्त ग्रहो, ब्रह्मांडो का भार अपने शीश पर उठा रखा है और ब्रह्मांड के निर्माण और विनाश में भी इनकी एक विशेष भूमिका है। 

Sheshnag, शेषनाग कौन थे, वे कितने शक्तिशाली थे  | All information about Sheshnag

हम सनातन ग्रंथों से आपको शेषनाग जी के बारे में संपूर्ण जानकारी देने का प्रयाश करेंगे जिससे आप उनके बल, उनकी शक्ति और उनके प्रभुत्व के बारे में जान पाए। 

शेषनाग कौन थे? | शेषनाग का जन्म कैसे हुआ?

ब्रम्हा जी के 6 मानस पुत्रो में से एक मरीचि थे। मरीचि के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी 17 पुत्रियों का विवाह ऋषि कश्यप से किया था। उन्ही पुत्रियों में से एक का नाम था कद्रू और दूसरी का विनता।  

महाभारत के आदि पर्व अध्याय 35 के अनुसार कश्यप जी से वर प्राप्ति के उपरांत कद्रू ने हजार (1000) नागो को जन्म दिया था। नागो में सबसे पहले शेषनाग जी ही प्रकट हुए हैं। जब उनकी माता कद्रू और भाइयों ने विनता के साथ छल कर एक शर्त जीत कर विनता और उसके पुत्रो को अपना दास बना लिया तो इससे रुष्ट हो शेषनाग जी वहां से चले गए। 

शेषनाग की तपस्या

भगवान शेषनाग ने कद्रू का साथ छोड़कर कठोर तपस्या प्रारंभ कि वे केवल वायु पी कर ही रहते और सैयम पूर्वक अपने व्रत का पालन करते थे। अपने इन्द्रियों को वश में करके सदा नियम पूर्वक रहते हुए शेषनाग जी गंधमादन पर्वत पर जाकर बद्रिका आश्रम तीर्थ में तप करने लगे। 

ब्रह्मा जी ने देखा शेषनाग घोर तपस्या कर रहे हैं उनके शरीर का मांस, त्वचा और नाणीयाँ सूख गई है। यह सब देखकर ब्रह्माजी उनके पास आए और बोले शेष  तुम ये क्या कर रहे हो समस्त प्रजा का कल्याण करो। हे अनग इस तीव्र तपस्या के द्वारा तुम संपूर्ण प्रजा वर्ग को संतप्त कर रहे हो। शेषनाग तुम्हारे ह्रदय में जो कामना हो वो मुझसे कहो। 

शेषनाग बोले भगवन मेरे सब सहोदर भाई बड़े मंदबुद्धि हैं अतः मैं उनके साथ नहीं रहना चाहता वे माता विनता और उनके पुत्रों से दाह रखते है। आकाश में विचरने वाले विनता पुत्र गरुड़ भी हमारे दूसरे भाई ही हैं किंतु वे नाग उनसे भी सदा द्वेष रखते हैं। 

तब ब्रह्माजी बोले शेष तुम्हें जो अभीष्ट हो मुझसे मांग लो तुम्हारे ऊपर मेरा बड़ा प्रेम है। अतः आज मैं तुम्हें अवश्य वर दूंगा। 

शेष जी ने कहा पितामाह मेरे लिए यही अभीष्ट वर है कि मेरी बुद्धि सदा धर्म, मनोनिग्रह तथा तपस्या में लगी रहे। 

शेषनाग ने क्यों किया पृथ्वी को अपने फन पर धारण ?

sheshnag- शेषनाग ने क्यों किया पृथ्वी को अपने फन पर धारण,शेषनाग कितने शक्तिशाली थे

ब्रम्हा जी बोले – शेष तुम्हारे इस इंद्रिय संयम से मैं बहुत प्रसन्न हूं। अब मेरी आज्ञा से प्रजा के हित के लिए यह कार्य जिसे मैं बता रहा हूं तुम्हें करना चाहिए। हे शेषनाग पर्वत, वन, सागर, ग्राम, विहार, और नगरों सहित ये समूची पृत्वी प्राय हिलती डुलती रहती है। इसे भली-भांति धारण करके इस प्रकार स्थित रहो जिससे ये पूर्णता अचल हो जाए।   

शेषनाग जी ने कहा आपकी जैसी आज्ञा है उसके अनुसार में इस पृथ्वी को इस तरह धारण करूंगा जिससे ये हिले-डुले नहीं इसे मेरे सिर पर रखदे।  

ब्रह्मा जी ने कहा नागराज शेष तुम पृथ्वी के नीचे चले जाओ ये स्वयं तुम्हे वहां जाने के लिए मार्ग दे देगी। इस प्रकार भगवान अनंत अकेले ही ब्रह्मा जी के आदेश से सारी पृथ्वी को धारण करते हुए भूमि के नीचे पाताल लोक में निवास करते हैं। 

शेषनाग के अवतार 

भगवान विष्णु की सहायता करने और बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए शेषनाग भगवान विष्णु के साथ अवतार लेते है। 

त्रेता युग में शेषनाग ने लक्ष्मण का रूप लेकर रावण आदि असुरो का नाश करने में भगवान राम की सहायता की थी। 

वही द्वापर युग में भगवन कृष्ण की सहायता के लिए वे बलराम के रूप में जन्मे थे। साथ ही जब वसुदेव जी भगवान कृष्ण के कारावास में जन्म के बाद उन्हें टोकरी में रख कर नंद जी के यहां ले जा रहे थे तब शेषनाग जी उनकी छतरी की तरह उनको बारिश से बचा रहे थे। 

शेषनाग कितने शक्तिशाली थे ?

महाभारत के अनुशासन पर्व अध्याय 147 के अनुसार अविनाशी भगवान श्री हरि ही अनंत शेषनाग कहे गए हैं। 

पूर्व काल में देवताओं ने गरुड़ जी से ये अनुरोध किया कि आप हमें भगवान शेष का अंत  दिखा दीजिए। तब ऋषि कश्यप के बलवान पुत्र गरुड़ अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उन परमात्म देव अनंत का अंत ना देख सके। 

भगवान शेष बड़े आनंद के साथ सर्वत्र विचरते हैं और अपने विशाल शरीर से पृथ्वी को आलिंगन पास में बांधकर पाताल लोक में निवास करते हैं। 

वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड सर्ग 117  में ब्रह्मा जी द्वारा आदिशेष जी का कुछ इस तरह उल्लेख है। ब्रह्मा जी कहते हैं शेष कोई और स्वयं भगवान विष्णु हैं जिन्होंने तीनों लोगों सहित पूरे ब्रह्मांड का भार उठाया हुआ है। जिनमें देव, गन्धर्व और राक्षस सभी हैं। 

श्रीमद्भागवत पुराण स्कन्द 5 में सुखदेव जी शेषनाग जी का विवरण देते हुए कहते हैं पाताल लोक के नीचे 30 हजार योजन की दूरी पर अनंत नाम से विख्यात भगवान की तामसी नित्य कला है। पांच रात्रि आगम के अनुयायी भक्तजन इसे संकर्षण कहते हैं। 

इन भगवान अनंत के 1000 मस्तक हैं उनमें से एक पर रखा हुआ यह सारा भूमंडल सरसों के दाने के समान दिखाई देता है। प्रलय काल उपस्थित होने पर जब इन्हे इस विश्व काउपसंहार करने की इच्छा होती है। तब इनकी क्रोध वश घूमती हुई मनोहर व्रिकुटियो के मध्य भाग से संकर्षन नामक रूद्र प्रकट होते हैं। उनकी व्यूह संख्या 11 है।

वे अनंत गुणों के सागर आदि देव अनंत अपने अमर्ष और रोष के वेग को रोके हुए वहां समस्त लोको के कल्याण के लिए विराजमान है। देवता, असुर, नाग, सिद्ध, गंधर्व, विद्याधर और मुनि गण भगवान अनंत का ही ध्यान किया करते हैं।  

भागवत पुराण के ही स्कंद 12 के अध्याय 4 में श्री सुखदेव जी राजा परीक्षित को चार प्रकार के प्रलयो का विवरण दे रहे होते हैं। एक जगह पर वे कहते हैं समय आने पर 100 वर्षों तक मेघ पृथ्वी पर वर्षा नहीं करते। प्रलयकालीन सावर्तक सूर्य अपनी प्रचंड किरणों से समुद्र, प्राणियों के शरीर और पृथ्वी का सारा रस खींच खींच कर सोख जाते हैं।  

उस समय संकर्षण भगवान के मुख से प्रलयकालीन संवरतक अग्नि प्रकट होती है वायु के वेग से वे और भी बढ़ जाती है और तल अतल आदी सातों नीचे के लोको को भस्म कर देती है। 

वहां के प्राणी तो पहले ही मर चुके होते हैं। नीचे से आग की लपटें और ऊपर से सूर्य के प्रचंड गर्मी उस समय ऊपर नीचे चारों ओर यह ब्रह्मांड जलने लगता है और ऐसा जान पड़ता है मानो गोबर का उपला जलकर अंगारे के रूप में दहक रहा हो।   

इसका तात्पर्य यह है कि श्री आदि शेष परम विध्वंसक और विनाशक है जो सृष्टि की प्रलय और उसके निर्माण दोनों समय वही होते हैं। शेषनाग जी ब्रह्मांडो के संरक्षण, निर्माण और विनाश इन तीनों कार्य को निष्ठा से करते हैं।

तो इसी के साथ समाप्त होती है ये जानकारी की शेषनाग कौन थे, उनकी उत्पत्ति कैसे हुई, उनकी तपस्या, शेषनाग ने क्यों किया पृथ्वी को अपने फन पर धारण, शेषनाग कितने शक्तिशाली थे, आदि। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे। साथ ही हमें भी कमेन्ट के माध्यम से बता सकते है।

Leave a Comment