7 चिरंजीवी के नाम, क्या ये आज भी जीवित है | 8 चिरंजीवी के नाम, कलयुग में ये कहाँ रहते है

हमारे सनातनी धर्म ग्रंथो में 7 चिरंजीवीओं का वर्णन आता है उनके इतिहास के बारे में हम में से अधिकतर लोग जानते हैं पर सब में यह जिज्ञासा अवश्य होती है की अगर वह सब चिरंजीवी है तो वे कलयुग में भी अवश्य होंगे परंतु कलयुग में वह कहां निवास कर रहे हैं। तो चलिए जानते है सात चिरंजीवी कौन-कौन हैं, और कलयुग में इनके निवास स्थान के बारे में। 

हमारे धर्म ग्रंथो में दिए इस श्लोक से इनके नामो का पता चलता है साथ ही इस श्लोक को पढ़ने से क्या लाभ होगा इसके बारे में भी बताया गया है।  

7 चिरंजीवी श्लोक (7 Chiranjeevi Shloka)

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित॥

इस श्लोक की पहली दो पंक्तियों के अनुसार अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये सात चिरंजीवी है। 

इसके बाद अगली पंक्तियों का अर्थ यह है कि इन सात के साथ ही मार्कडेय ऋषि के नाम का जाप करने से व्यक्ति निरोगी रहता है और शतायु अर्थात लंबी आयु प्राप्त करता है।

इस श्लोक में सात चिरंजीवी के साथ-साथ ऋषि मार्कंडेय को आठवें चिरंजीवी के रूप में बताया गया है तो अब आइये इनके बारे में जानते है। 

7 चिरंजीवी के नाम, क्या ये आज भी है जीवित | 8 चिरंजीवी के नाम,

8 चिरंजीवी के नाम (List Of Eight Immortals)

परशुराम जी 

एक समय जब क्रोध में भरे उनके पिता जमदग्नि ऋषी ने परशुराम जी से उनकी माता का वध करने को कहा था तब परशुराम जी ने फरसा लेकर उसी क्षण माता का मस्तक काट डाला इससे महात्मा जमदग्नि का क्रोध सहसा शांत हो गया और उन्होंने प्रसन्न होकर परशुराम जी से कुछ भी मांगने को कहा था। 

तब परशुराम जी ने मांगा था कि युद्ध में मेरा सामना करने वाला कोई ना हो और मैं बड़ी आयु प्राप्त करूं। जमदग्नि ऋषि से ही उन्हें चिरंजीवी होने का वर प्राप्त हुआ था। रामायण काल में श्रीराम ने परशुराम जी की संपूर्ण तपस्वी योग्यता भंग करती थी और उनसे विष्णु तत्व भी छीन लिया था इसके उपरांत वह श्री राम की आज्ञा लेकर महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए थे। 

7 चिरंजीवी के नाम- परशुराम जी

महाभारत काल में भी उनका निवास महेंद्र पर्वत में ही था और कलयुग में भी वह महेंद्र पर्वत पर ही हैं भगवान विष्णु के अंतिम अवतार भगवान कल्कि के उपदेशक के रूप में वह पुनः उपस्थित होंगे। 

राजा बलि 

असुरो के राजा बलि अपार शक्तियों के स्वामी लेकिन धर्मात्मा है एक बार राजा बलि बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे थे यह यज्ञ असीम शक्तियों की प्राप्ति के लिए था सभी देवता इस यज्ञ से चिंतित हो उठे तब भगवान विष्णु के अवतार वामन ब्राह्मण वेश में वहां दान लेने पहुंचे। 

वामन के दान मांगने पर उनको तीन पग भूमि दान में दे दी तब ब्राह्मण वेश में वामन भगवान ने अपना विराट रूप दिखा दिया एक पग में भूमंडल नाप लिया और दूसरे में स्वर्ग और तीसरे के लिए बलि से पूछा कि अब तीसरा कहां रखूं। पूछने पर राजा बलि ने मुस्कुरा कर कहा अब तो मेरा सिर बचा है।

7 चिरंजीवी के नाम- राजा बलि
इस प्रकार विष्णु भगवान ने उसके सिर पर तीसरा पैर रख दिया देवी भागवत के अनुसार उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल में सुतल लोक में बसाया था जिसे इंद्र आदि देवता भी नहीं पा सकते वह अमित लक्ष्मी इनके पास है।

इस समय सुतल लोक में बलि का आधिपत्य हैं वे अब भी सुतल लोक में विराजमान हैं। कलयुग के अंत तक वह इसी लोक में रहेंगे और आने वाले मन्वंतर में वे श्री विष्णु जी की कृपा से इंद्र बनेंगे। 

हनुमान जी

बजरंगबली ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं इनकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढ़ती है। हनुमान जी कालजई चिरंजीवी देवता है। 

हनुमान जी कहां रहते हैं इस बात का वर्णन महाभारत के वन पर्व अध्याय 151 में मिलता है इसके अनुसार जब भीमसेन द्रोपदी के लिए सुगंधित कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत पर गए तब वहां उनकी भेंट हनुमान जी से हुई जो उस समय वहां कदली वन में ही रहते थे। 

7 चिरंजीवी के नाम - हनुमान जी

हनुमान जी ने यह सोच कर कि भीमसेन इसी मार्ग से स्वर्ग लोक की ओर ना चले जाएं वहां हनुमान जी उनकी राह रोकी थी इसके उपरांत श्री हनुमान और भीम सेन का संवाद हुआ हनुमान जी ने भीम सेन को अपने विशाल रूप का दर्शन दिया था और चारों युगों के धर्मों का वर्णन भी किया। 

जब भीमसेन वहां से विदा लेने लगे तब हनुमान जी बोले वीर अब तुम अपने निवास स्थान पर जाओ बातचीत के प्रसंग में कभी मेरा भी स्मरण करते रहना। कुरुश्रेष्ठ इस स्थान पर रहता हूं यह बात कभी किसी से ना कहना ऐसा कहकर हनुमान जी अंतरध्यान हो गए। 

इस वृतांत से हमें यह ज्ञात होता है कि हनुमान जी कलयुग में भी गंधमादन पर्वत पर ही निवास करते हैं और जहां जहां प्रभु श्री राम का नाम लिया जाता है वहां उपस्थित रहते हैं। 

विभीषण 

रावण के छोटे भाई विभीषण उन्होंने अपने भाई के ही विरुद्ध जाकर श्रीराम का साथ दिया था उन्हें वहां नैतिकता और धार्मिकता बनाए रखने और दुनिया भर के लोगों को धर्म का मार्गदर्शन करने के लिए इस महा युग के अंत तक जीवित रहने का वरदान प्राप्त हुआ था। 

7 चिरंजीवी के नाम- विभीषण

उनके रामायण काल के बाद भी जीवित होने का प्रमाण हमें महाभारत में भी मिलता है युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के दौरान सहदेव विभीषण से मिले थे और विभीषण ने सहदेव को उपहार भी दिए थे यह बात तो निश्चित है कि अगर वे द्वापर युग में भी जीवित थे तो कलयुग में भी मौजूद है। 

परंतु इस बात का वर्णन किसी भी प्रमाणिक हिंदू ग्रंथ में हमें नहीं मिला हो सकता है वह किसी दूसरे आयाम में हो। 

अश्वत्थामा

महाभारत में गुरु द्रोण पुत्र अश्वत्थामा को श्रीकृष्ण से कल्पांत तक भटकने का श्राप मिला था। अश्वत्थामा का अंतिम बार उल्लेख उनके काम्यक वन व्यास जी के आश्रम में होने का किया गया है। बाकी उन पर कई किस्से कहानियां और लोक कथाएं प्रचलित हैं कि उन्हें विभिन्न स्थानों पर देखा गया है पर हम इस बात की पुष्टि नहीं करते क्योंकि हमें कोई प्रमाण नहीं मिला। 

7 चिरंजीवी के नाम- अश्वत्थामा

विष्णु पुराण के अंश 3 अध्याय 2 के अनुसार आठवे मन्वंतर में दीप्तिमान, गालव, राम, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, व्यास जी और ऋषयशृंग यह सब सप्त ऋषि होंगे जिससे यह साबित होता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। 

कृपाचार्य 

7 चिरंजीवी के नाम- कृपाचार्य

महाभारत में कृपाचार्य को भी अश्वत्थामा की तरह अमर बताया गया हैं। ये कौरवों और पांडवो के कुलगुरू थे इनकी बहन का नाम कृपी था जिसका विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था इसलिए ये अश्वथामा के मामा हैं।  महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने कौरवों का साथ देते हुए पांडवों के विरुद्ध युद्ध किया था।

ऋषी वेद व्यास 

व्यास जी ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। बाद में सत्यवती ने शान्तनु से विवाह किया था , जिनसे उनके दो पुत्र हुए, चित्रांगद और विचित्र वीर्य। 

7 चिरंजीवी के नाम- ऋषी वेद व्यास

वेद व्यास ने ही चारों वेद- ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद लिखा है और इन्होंने ही 18 पुराणों की भी रचना की है।

ऋषि मार्कंडेय

8 चिरंजीवी के नाम- ऋषि मार्कंडेय

ऋषि मार्कंडे सप्तचिरंजीवियों के साथ ही आठवें चिरंजीवी हैं, मार्कंडेय अल्पायु थे उन्होंने ही महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और भगवान शिव की तपस्या करने लगे, उनके तप से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें चिरंजीवी हो ने का वरदान दिया था।

तो ये थी जानकारी की 8 चिरंजीवी कौन कौन है, इनके क्या नाम है, क्या ये आज भी है जीवित है। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे, साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते है।

ये भी पढ़े :-

Leave a Comment