सावन (श्रावण) सोमवार व्रत कथा | Sawan Somvar Vrat Katha 2023 in Hindi

जो माया मै इस संसार में चिरकाल तक सुख पूर्वक विहार करके देहवसान होने पर मोक्ष चाहते हैं उनके लिए यह धर्म बताया गया है कि संसार में भगवान शिव की पूजा सदा ही स्वर्ग और मोक्ष का हेतु है यदि प्रदोष आदि के गुणों से युक्त सोमवार के दिन ये पूजा की जाए तो उसका विशेष महत्व है। 

सोमवार का उपवास करके पवित्र हो वैदिक एवं लौकिक मंत्रो से विधि पूर्वक भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए ब्रह्मचारी, गृहस्थ, कन्या, सुहागन स्त्री, अथवा विधवा कोई भी क्यों ना हो भगवान शिव की पूजा करके मनोवांछित वर पाता है। 

जाने – सावन सोमवार व्रत पूजा विधि

सोमवार व्रत कथा 

इस विषय में एक कथा स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर के अंतर्गत हमें मिलती है जिसको सुनकर मनुष्य मोक्ष पाते हैं और उनके मन में भगवान शिव की भक्ति होती है। 

आर्यव्रत में चित्र वर्मा नाम से प्रसिद्ध एक राजा थे वो दुष्टों को दंड देने के लिए यमराज के समान और धर्म मर्यादाओं के रक्षक समझे जाते थे। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने उनकी बड़ी भक्ति थी राजा चित्र वर्मा ने अनेक पुत्रों के बाद एक कन्या को प्राप्त किया था। 

Sawan Somvar, सावन (श्रावण) सोमवार व्रत कथा

एक दिन राजा श्रेष्ठ ब्राह्मणों को बुलाकर कन्या की जन्मकुंडली के अनुसार भावी फल पूछने लगे उन ब्राह्मणों में से एक विद्वान ने कहा कि कन्या सीमंतनी के नाम से प्रसिद्ध होगी ये भगवती उमा के भाती मंगलमई, दमयंती के भाती परम सुंदरी, सरस्वती के समान सब कलाओं को जानने वाली तथा लक्ष्मी के भाती अत्यंत सद्गुणों से सुशोभित होगी। 

ये दस हजार वर्षों तक अपने स्वामी के साथ आनंद भोगेगी और आठ पुत्रों को जन्म देकर उत्तम सुख का उपभोग करेगी। 

तत्पश्चात एक दूसरे ब्राह्मण ने कहा यह कन्या 14वे वर्ष में ही विधवा हो जाएगी यह वचन सुनकर राजा चिंता में डूब गए। तब सभी ब्राह्मणों को विदा कर के राजा ने विचार किया कि सबकुछ भाग्य के अनुसार ही तो होता है और इस बात की चिंता छोड़ दी। 

सीमंतनी धीरे धीरे सयानी हुई अपनी सखी के मुख से भावी वैद्यव्य की बात सुनकर उसे बड़ा खेद हुआ। उसने चिंतित होकर याज्ञवल्क्य मुनि की पत्नी मैत्रई से पूछा माता जी मैं आपकी शरण में आई हूं आप मुझे सौभाग्य बढ़ाने वाले सत्कर्म का उपदेश दीजिए। 

मैत्रई ने कहां कि तुम शिव सहित पार्वती जी की शरण में जाओ और सोमवार को एकाग्रचित हो स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके शिव पार्वती का पूजन करो हर सोमवार को ऐसे ही करती रहना जिससे तुम किसी भी बड़ी आपत्ति पड़ने पर उससे मुक्त हो जाओगी घोर महा कलेश में पढ़कर भी शिव पूजा ना छोड़ना। 

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राजकुमारी ने उनके कथना अनुसार ही भगवान शिव का पूजन प्रारंभ कर दिया कुछ समय उपरांत राजा चित्र वर्मा ने राजकुमार चंद्रागत के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया विवाह के पश्चात चंद्रागत कुछ काल तक ससुराल में ही रहे। 

एक दिन राजकुमार अपने मित्रों के साथ नाव ओर सवार हो यमुना को पार कर रहे थे पर वह नाव भवर में मल्लाहो  सहित ही डूब गई डूबने वालों में कुछ मर गए तथा राजकुमार आदि कुछ लोग उस महाजल में अदृश्य हो गए। 

यह समाचार सुनकर चित्र वर्मा व्याकुल हो यमुना किनारे आकर मूर्छित होकर गिर पड़े सीमंतनी ने भी जब ये सब सानाचार सुना तब वह भी अचेत होकर धरती पर गिर पड़ी। 

राजा इंद्रसेन भी अपने पुत्र चंद्रागद का समाचार सुनकर सुध बुध खो कर गिर पड़े तदनंतर बड़े बूढ़ों के समझाने पर राजा चित्र वर्मा नगर में आए और अपनी पुत्री को धीरज बंधाया। राजा चित्र वर्मा ने जल में डूबे हुए अपने दामाद का और्थव देही  कृत्य करवाया। 

पतिव्रता सीमंतनी ने चिता में बैठकर पती लोक में जाने का विचार किया किंतु पिता ने स्नेह बस उसे रोक दिया तब वह विधवा जीवन व्यतीत करने लगी। मुनि पत्नी मैत्रई के आदेशानुसार उसने सोमवार का व्रत नहीं छोड़ा इस प्रकार 14वे वर्ष की आयु में अत्यंत दारुण दुख पा कर भी वह भगवान शिव का चिंतन करने लगी। 

भगवान शिव की आराधना करते करते 3 वर्ष व्यतीत हो गए उधर पुत्र शोक में पड़े हुए राजा इंद्रसेन को दबाकर उनके भाइयों ने उनसे सारा राज्य छीन कर उनको कारागार में डाल दिया। 

इंद्रसेन का पुत्र जल में डूबने पर नीचे ही नीचे गहराई में उतरते हुए नाग लोक में जा पहुंचा वहां उसने नाग वधुओ  को जल क्रीड़ा में निमगन देखा। वे चंद्रागत को तक्षक नाग के अत्यंत रमणीय नगर में ले गई वह महान इंद्रदेव के महल की तरह रमणीय और रत्नों से प्रकाशमान था। 

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चंद्रागत ने वहां तेजस्वी तक्षक नाग को प्रणाम किया और खड़े हो गए नागराज ने राजकुमार से उनका परिचय पूछा राजपूत्र ने कहा राजन भू मंडल पर निषध नाम के देश के राजा इंद्रसेन का मै पुत्र हूँ, चन्द्रागद मेरा नाम है अभी मेरा विवाह होकर मै ससुराल में ही था कि जल में विहार करते हुए डूब गया। 

यह नाग पत्नियाँ मुझे आपके पास ले आई जन्मांतर के पुण्यो के प्रभाव से ही मुझे आप का दर्शन प्राप्त हुआ मैं धन्य हुआ। राजकुमार के मनोहर वार्तालाप से तक्षक राज प्रसन्न हुए और बोले तुम भय ना करो धैर्य रखो और बताओ तुम किसकी पूजा करते हो। 

राजकुमार ने कहा जो संपूर्ण देवों में महादेव कहे जाते हैं उन्हें शिव का मै पूजन करता हूं जो विधाता के भी विधाता, तेजो के भी तेज है वही विश्वात्मा भगवान सदा शिव मेरे लिए पूजनीय हैं। 

राजकुमार की ये बात सुनकर तक्षक राज का चित्त प्रसन्न हो गया और वे बोले राजेंद्र नंदन क्योंकि तुम इतनी छोटी आयु में ही शिव तत्व को जानने वालों में से हो मैं तुम पर अति प्रसन्न हूं। देखो ये रतन मै लोक हैं यहां बुढ़ापा, रोग, और मृत्यु नहीं होती तुम यथा योग्य सुखों का उपभोग करते हुए यहीं रहो। 

नागराज के यूं कहने पर राजकुमार ने हाथ जोड़कर कहा राजन मैंने समय पर विवाह किया मेरी पत्नी उत्तम व्रत का पालन करने वाली है और शिव पूजा में विलीन रहती है मैं अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र हूं वे सब लोग बहुत शोक कर रहे होंगे आप कृपा करके मुझे उसी मनुष्य लोग में पुनः पहुंचा दीजिए। 

नागराज तक्षक ने कहा ठीक है राजकुमार तुम्हें जब भी मेरी याद आएगी मैं तुम्हारे आगे उपस्थित हो जाऊंगा ऐसा कहकर उन्होंने राजकुमार को एक सुंदर अश्व और बहुत से आभूषण और दिव्य वस्त्र भेंट किए और उन्हें प्रेम पूर्वक विदा कर दिया। 

चंद्रागद उस घोड़े पर सवार हो शीग्र ही जमुना के जल से बाहर निकल आए और उसके तट पर घूमने लगे तभी वहां पतिव्रता सीमंतनी अपनी सखियों के साथ स्नान करने के लिए आई और उसने मनुष्य रूप धारी नाग कुमार के साथ राजकुमार चंद्रा को देखा राजकुमार को देख उसने मन ही मन में ये विचार किया ऐसा जान पड़ता है कि मैंने पहले भी कहीं देखा है। 

तत्पश्चात राजकुमार घोड़े से उतरकर सीमंतनी का परिचय पूछने लगे उसकी सखी ने पूरा परिचय राजकुमार को दिया और राजकुमार को यह भी बताया कि राजकुमारी के ससुर कैद में पड़े हैं। 

फिर राजकुमारी सीमंतनी ने राजकुमार से उनका परिचय पूछा जब उसे पता चला कि वे ही राजकुमार चंद्रागद है तो उसने सोचा कि हो ना हो यह मेरे सोमवार व्रत का ही फल है जो मुझे अभागिन को अपने मरे हुए पति के दर्शन हुए राजकुमार ने फिर मिलने का कहं कर अपने माता-पिता से मिलने के लिए प्रस्थान किया। 

अपने नगर में पहुंचकर उन्होंने देखा कि उन्हीं के बंधु राजसिंघासन पर अधिकार जमाए हुए बैठे हैं राजकुमार ने नागराज के पुत्र को संदेश देकर भेजा कि महाराज के पुत्र चंद्रागद पाताल लोक से लौट आए हैं अब तुम सिहासन छोड़कर हट जाओ अगर तुम ने आनाकानी की तो चंद्रागद के पार कर लेंगे। 

नाग कुमार की कही हुई बातें सुनकर शत्रुओं ने बहुत अच्छा कहकर उनकी आज्ञा स्वीकार कर ली महाराज महारानी सब नागरिक राजकुमार के आने का समाचार सुनकर बहुत आनंदित हुए। 

राजकुमार ने सब को सारा वृत्तांत कह सुनाया राजा इन्द्रसेन ने सब सुनकर यही माना की मेरी पुत्रवधू ने भगवान महेश्वर की आराधना करके इस अनुपम सौभाग्य का अर्जन किया है। राजा ने दूतो को भेजकर महाराज चित्रवर्मा को सारा समाचार कहला दिया। 

यह समाचार सुनकर महाराज आनंद से वेहबल हो उठे और अपनी पुत्री से वैधव्य के चिन्हो का परित्याग करवाया उसे नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषित किया और उसे चंद्रागद के साथ विदा किया। राजा इन्द्रसेन ने चंद्रागद को राज सिंघासन पर बैठाया। 

राजा चंद्रागद ने अपनी धर्मपत्नी सीमंतनी के साथ 10,000 वर्षों तक नाना प्रकार के विषयों का उपभोग किया उन्होंने आठ पुत्रों और एक कन्या को जन्म दिया। 

सीमंतनी प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करते हुए अपने पति के साथ सुख पूर्वक रहने लगी उसने सोमवार के व्रत के प्रभाव से अपना खोया हुआ सौभाग्य प्राप्त कर लिया। 

प्रेम से बोलिए भोले भंडारी भगवान शिव की सदा ही जय !

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