रावण कौन था, वह कितना शक्तिशाली था, कितने युद्ध लड़े थे उसने | रावण के बारे में जानकारी, रावण जीवनी

आज हम विस्तार से जानेंगे कि आखिर रावण कौन था, रावण कितना शक्तिशाली था, कौन से अस्त्र-शस्त्र थे उसके पास, कितने वरदान प्राप्त थे उसे, कितने युद्ध लड़े थे उसने, और इतना शक्तिशाली होने पर भी उसकी पराजय कैसे हो गई, क्या रहस्य था इसका तो आइये जानते है  रावण के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।  

रावण कौन था?

रावण विश्रवा और कैकसी का सबसे जेष्ठ पुत्र था।

ऋषी विश्रवा ने दो विवाह किए पहली पत्नी का नाम कैकसी था जिससे रावण, कुंभकरण, विभीषण आदि राक्षस उत्पन्न हुए और दूसरी पत्नी वरवर्णिनी से यक्षों के स्वामी कुबेर उत्पन्न हुए थे।

राक्षस मायासुर से अपनी पुत्री मंदोदरी को रावण को उसके पराक्रम से डर कर ही भेट कर दिया था। रावण ने भी सहर्ष मंदोदरी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

रावण कौन था, वह कितना शक्तिशाली था, कितने युद्ध लड़े थे उसने | रावण के बारे में जानकारी, जीवन परिचय

रावण को कौन से वरदान प्राप्त थे? 

उत्तर कांड सर्ग 10 के अनुसार रावण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए निराहार रहकर ही वह निरंतर 10000 वर्षों तक तप करता रहा। हर 1000 वर्ष पूर्ण होने पर वह अपने एक सिर को काट कर उसकी आहुति देता था। 

जब 10000 वर्ष पूरे हो गए तो उसने अपना 10वां शिर भी काट कर अग्नि में डालना चाहा, तब उसके सामने ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उससे वर मांगने को बोले। रावण ने अमरता का वरदान मांगा जिसपर ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हें पूरा अमरत्व नहीं मिल सकता तुम कुछ और मांगो। 

तब रावण ने मांगा की गरुड़, सर्प, यज्ञ, यक्ष, दैत्य, दानव, राक्षस और देवताओं से सदा के लिए मुझे अवध्य कर दीजिए। इनके अतिरिक्त अन्य प्राणियों की मुझे चिंता नहीं और मनुष्य आदि को तो मैं तिनके के समान समझता हूं।

ब्रम्हाजी ने तथास्तु कहकर रावण से कहा कि मैं तेरे ऊपर बहुत प्रसन्न हूं अतः मै अपने ओर से भी तुझे वर देता हूँ जिन अपने सिरों को तूने काट कर अग्नि में होम दिया है वे सर फिर से जुड़ जायेंगे। एक और भी दुर्लभ मै तुम्हे वर देता हूँ जिस समय तू जैसा रूप धारण करना चाहेगा वैसा ही तेरा रूप हो जाएगा। 

रावण को मिलने वाले श्राप?

हलाकि रावण को कई श्राप भी मिले थे उनमें से प्रमुख था जब रावण ने अपनी ही बहू के समान रंभा यानी की कुबेर के बेटे नल कुबेर की पत्नी का बलात्कार किया था तब नल कुबेर ने उसे श्राप दिया था कि यदि रावण ने भविष्य में किसी भी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ जबरदस्ती करने का साहस किया तो उसका सात टुकड़ों में फट जाएगा। 

इनके अतिरिक्त उसे वेदवती, नंदीकेश्वर, नारद, वशिष्ठ, अग्नी, वृहस्पति आदि औरो से भी कई श्राप मिले थे। 

रावण को लंका कैसे मिली? 

इसका वर्णन हमें उत्तरकांड सर्ग 11 में मिलता है जिसके अनुसार रावण ने प्रहस्त को दूत बनाकर कुबेर के पास भेजा था तत्पश्चात कुबेर अपने पिता महर्षि विस्वा के पास गए और उन्होंने कुबेर को समझाया कि जब से रावण को वर मिला है तब से वह बड़ा दुष्ट बुद्धि हो गया है। आतेव तुम अब लंका छोड़कर कैलाश पर्वत में बस जाओ। 

कुबेर ने बिना किसी विरोध के लंका रावण को सौंप दी थी। 

रावण के अस्त्र-शस्त्र?

रावण के अस्त्र शस्त्रों की बात करें तो रावण हर प्रकार के युद्ध करने में निपुण था। धनुष, खड़क, भाला, और गदा चलाने में उसे महारत हासिल थी। रावण अपने आप में भी एक शस्त्र था। उसमें असीम शारीरिक बल था उसके पास वरूणास्त्र, आग्नेयअस्त्र, आसुरास्त्र, मायास्त्र, सौरास्त्र, गंधर्वास्त्र, नागास्त्र, ब्रम्हाजी का दिया हुआ एक दिव्य भाला, और वाल्मीकि रामायण के अनुसार उसके पास पशुपातस्त भी था। 

इनके अतिरिक्त वह इंद्रजीत की तरह कई मायावी शक्तियों का ज्ञाता भी था। 

रावण द्वारा लड़े गए युद्ध

रावण और कुबेर का युद्ध

रावण ने सबसे पहला युद्ध अपने भाई कुबेर के विरुद्ध ही लड़ा था। रावण के शक्तिशाली राक्षसों ने कुबेर की यक्ष सेना को पराजित कर दिया। इसके उपरांत रावण ने कुबेर के शक्तिशाली द्वारपाल सूर्य भानु नामक यक्ष को पराजित कर दिया। 

फिर उसका कुबेर के साथ विषण युद्ध हुआ दोनों ने एक दूसरे पर कई दिव्यास्त्र चलाए परन्तु कुछ समय में ही रावण के पराक्रम को देखकर कुबेर पीछे हैट गए और रावण ने कुबेर से तब उनका पुष्पक विमान छीन लिया था। 

कुबेर पर विजय प्राप्त करने के उपरांत रावण भगवान शिव के निवास स्थान पर पहुंचा अपने रास्ते में रुकावट देखकर रावण ने तुरंत ही अपनी भुजाएं पर्वत के नीचे घुसेड़ दी और पर्वत को उठाने लगा। वह पर्वत कापने लगा तब महादेव जी ने बिना किसी प्रयास के अपने पैर के अंगूठे से उस पर्वत को को दबा दिया। 

पर्वत के दावते ही रावण की भुजाएं दब गई और वह जोर से चिल्लाया तब रावण ने सामवेद के विभिन्न मंत्रों से भगवान शिव की स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उसको भुजाएं निकालने दी और उसे वर स्वरूप चंद्रहास तलवार भी दी। 

यह वृतांत दर्शाता है कि रावण के शरीर और उसकी भुजाओं में कितना बल था। जहां स्वयं भगवान शिव विराजमान थे चाहे थोड़ा ही सही परंतु उस पर्वत को उठा लेना कोई छोटी बात ना थी। 

एक समय रावण ने पृथ्वी के सारे राजाओं को पराजित करने का मन बना लिया दुष्यंत, सुरत, और पुरुरवा को पराजित करने के बाद वह अयोध्या पहुंचा जहां उस समय राजा अनरण्य का राज था। वहाँ रावण और अनरण्य ने अपनी पूरी शक्ति के साथ एक दूसरे के साथ युद्ध किया। 

रावण के घातक बाणों से घायल हुए अनरण्य ने वहाँ मरने से पहले रावण को श्राप दिया था कि आगे चलकर अयोध्या में ही जन्मे मनुष्य के हाथों ही तेरी मृत्यु होगी। 

इसके उपरांत रावण ने पृथ्वी के सभी राजाओं को अपने अधीन कर लिया था। 

रावण और यमराज का युद्ध

अगला युद्ध उसका यम के साथ हुआ था जब यमलोक पहुंचकर रावण ने यमराज को चुनौती दे दी थी तो यमराज के महाबली सैनिक रावण पर टूट पड़े थे। हजारों योद्धा एक साथ रावण के ऊपर शस्त्र प्रहार कर उसे पीड़ित करने लगे। 

रावण ने तब उन पर पाशुपतास्त्र चलाकर उन्हें भस्म कर दिया। 

तब याम अपनी गदा तथा पाश लेकर रावण पर टूट पड़े लंबे समय तक उन दोनों का युद्ध चला पर कोई विजय ना हो सका तदन्तर यमराज ने क्रोधित होकर काल दंड उठा लिया जब यमराज रावण पर कल दंड चलाने ही वाले थे, तब ब्रह्माजी उनके समीप आकर बोले हे यमराज तुम इस दण्ड को चला कर इस राक्षस को ना मारो क्योंकि मैं इसे वरदान दे चुका हूं अतः मेरी बात तुम्हे असत्य नहीं ठहरानी चाहिए। 

ब्रम्हाजी के कहने पर यमराज ने अपना काल दण्ड वापस ले लिया तब वहां रावण स्वयं को ही विजई घोषित कर यमपुरी से चल दिया। 

उसके बाद रावण रसातल में घुस गया वहां उसने सभी सांपों तथा दैत्यों पर विजय पाई फिर उसका सामना वासुकी, तक्षक आदि नागो से हुआ वे भी अधिक समय तक रावण के सामने टिक नहीं पाए और पराजित हो गए। 

फिर रावण निवात कवच के साथ युद्ध करने पहुंचा उनके साथ लड़ते लड़ते 1 वर्ष बीत गया तब वहां ब्रम्हाजी पहुंचे और निवाद कवचो को रोक कर बोले इस रावण को युद्ध में सुर या असुर कोई भी जीत नहीं सकता और आपको भी कोई नहीं मार सकता अतः मैं चाहता हूं कि आपकी रावण के साथ मैत्री हो जाए। 

तब रावण की उनके साथ मित्रता हो गई और उनसे रावण ने 100 प्रकार की माया सीखी। 

इसके उपरांत रावण कालकेय दैत्यों के नगर पहुंचा उनको भी रण में मार गिराया। 

इसी युद्ध में रावण ने अपने बहनोई अर्थात सूर्पनखा के पती को भी तलवार से काट डाला था और इस प्रकार कालकेय को भी पराजित कर संपूर्ण रसातल पर रावण का आधिपत्य हो गया। 

इसके बाद रावण ने अगला आक्रमण वरुणदेव पर किया वहां  रावण ने भयंकर युद्ध कर पहले वरुण देव के पुत्रों को पराजित किया और फिर वरुण देव पर टूट पड़ा। 

रावण के बाणो से पीड़ित होने पर वरुण देव युद्ध छोड़कर ब्रह्मा जी के निवास को चले गए, रावण ने तब वरुणदेव  के भवन को अपने अधीन कर लिया। 

रावण और इन्द्र का युद्ध

अंत में उनकी नजर इन्द्र की नगरी अमरावती पर पड़ी उसने उस नगरी को चारों ओर से घेर लिया। रावण के साथ  कुंभकरण, मेघनाथ, प्रहस्त मारीच आदि और भी कई शक्तिशाली राक्षस थे। 

इंद्र के साथ भी आदित्य, रूद्र, साध्य, मारुत आदि देव थे वहां बड़ा ही भयंकर युद्ध हुआ उस युद्ध में रावण इंद्र के वज्र के प्रहार को भी सह गया था। अंत में उस युद्ध में रावण ही विजई हुआ था। 

देवताओं द्वारा चलाए गए विष्णु जी का चक्र भी रावण पर विफल हो गया था। वह केवल उसके शरीर पर घाव ही दे पाया था। 

राक्षस मायासुर से अपनी पुत्री मंदोदरी को रावण को उसके पराक्रम से डर कर ही भेट कर दिया था। रावण ने भी सहर्ष मंदोदरी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था। 

भगवान राम और रावण का युद्ध

जब रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था तो श्री राम ने रावण की ओर कूच कर दिया था। रावण की राम जी की सेना में पहली भिड़ंत हनुमान जी के साथ ही हुई थी। 

रावण ने जोरदार प्रहार हनुमान जी पर किया था जिससे वह कुछ क्षण के लिए डगमगा गए थे जवाब में हनुमान जी ने भी एक शक्तिशाली प्रहार रावण पर किया जिसने रावण को पूरा हिला दिया। वहां रावण के मुख और कान से खून निकल आया था। 

इसके बाद रावण ने फिर से एक प्रहार हनुमान जी के छाती पर किया जिससे अभी हनुमान जी सभल ही पा रहे थे कि रावण नल से युद्ध करने लगा। वहां आग्नेय अस्त्र चलाकर रावण ने नल को पराजित किया था और बाकी वालों को भी वहां से भागने को मजबूर कर दिया था। 

युद्ध के दूसरे दिन सुग्रीव ने रावण को युद्ध के लिए चुनौती दी थी पर वह भी रावण के आगे अधिक समय तक टिक नहीं पाया था और पराजित हो गया था। 

इसके बाद रावण की भिड़ंत लक्ष्मण जी स्व हुई थी। लक्ष्मण जी और रावण का युद्ध प्रलयंकारी था। दोनों ने एक दूसरे पर कई दिव्यास्त्र चलाये थे और एक दूसरे के कई दिव्यास्त्रों को अपने अस्त्रों से काट दिया था। 

अंततः रावण ने ब्रह्मा जी का एक भाला लक्ष्मण पर चला दिया था जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे। 

लक्ष्मण जी पर विजय पाने के बाद रावण लंका लौटाया। 

प्रभु श्री राम के साथ उसका अंतिम युद्ध लगातार सात दिन और 7 रात तक चला था। रावण ने कई दिव्यास्त्र भी श्रीराम पर चलाए थे जिन्हें श्रीराम ने निष्प्रभावी कर दिया था। उसी तरह श्री राम के कई अस्त्रों को रावण ने निष्क्रिय किया था और अपने बाणो के प्रभाव से श्री राम को चोट पहुंचाई थी।

रावण रुद्रास्त्र  के प्रहार को भी सह गया था। जिस बाण से श्री राम ने बाली को मारा था वह भी रावण का कुछ नहीं बिगाड़ पाया था। यहां तक कि जिस ब्रम्हास्त्र से श्री राम ने खर और मारीच को मारा था वह भी रावण पर विफल हो गया था। 

अंत में महर्षि अगस्त द्वारा दिए गए ब्रह्मा जी के एक दिव्य बाण के द्वारा श्री राम ने रावण का वध कर दिया था। 

तो ये थी रावण के बारे में सम्पूर्ण जानकारी। अगर आपको यह अच्छी लगी हो तो इसे अपने तक ही सीमित ना रखें बल्कि अपने दोस्तों एवं प्रियजनों के साथ भी शेयर करें और लेटेस्ट अपडेट के लिए हमारे TELIGRAM चैनल को join करे।

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