कुम्भकर्ण रामायण के प्रमुख पात्रो में से एक का नाम है। कुंभकरण ने अपने भाई रावण को इंद्र पर विजय पाने में सहायता की थी आइये विस्तार से जानते हैं इस अत्यंत शक्तिशाली राक्षस के बारे में की कुंभकर्ण कौन था, वह कितना शक्तिशाली था,उसे क्या श्राप मिला था, रामायण में कुम्भकर्ण की भूमिका
कुंभकर्ण कौन था? (Kumbhakarna Story in Hindi)
कुंभकर्ण ऋषि व्रिश्रवा और राक्षसी कैकसी के पुत्र तथा रावण के छोटे भाई थे। वह उस समय के सबसे विशालकाय राक्षस थे जिनको युद्ध में पराजित करना लगभग असंभव था। कुम्भकर्ण बिना किसी वरदान के प्राकृतिक रूप से ही शक्तिशाली थे। देवासुर संग्राम में उसने आदित्यो एवं रुद्रो को परास्त किया था इनके साथ साथ उसने यम को भी एक भीषण युद्ध में पराजित किया था।
बाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड सर्ग 61 के अनुसार जब सर्वप्रथम कुंभकरण युद्ध भूमि में आए थे तो श्रीराम वहां विभीषण से बोले यह विशाल श्रीधारी कोई राक्षस है अथवा अशुर मैंने तो इस प्रकार का जीव इससे पूर्व कभी नहीं देखा।
तो इसके उत्तर में विभीषण ने प्रभु राम को कुंभकरण के बारे में बताना आरंभ किया और वे बोले जिसने युद्ध में यमराज और इंद्र को भी परास्त कर दिया वहीं विश्रवा मुनि का पुत्र यह प्रतापी कुंभकरण है इस के बराबर लंबा और मोटा दूसरा कोई राक्षस नहीं है। इसने युद्ध में कितनी बार हजारों देवताओं, गंधर्व, मांस भक्षी दानवो, यक्षों, विद्याधरो, और किन्नरों को परास्त किया था।
दूसरे राक्षसों को तो वरदान का बल है किन्तु यह महाबली कुंभकर्ण तो स्वाभाव से ही तेजस्वी है। कुम्भकर्ण ने जन्म लेते ही भूख से बिकल हो बहुत से हजारों जीवो को खा लिया था।
उसके इस कृत्य से प्रजा बहुत ही डरी और विकल हुई फिर वे इंद्र के पास गई और सारा वृत्तांत उनसे कहां तबवज्र धारी इंद्र ने कुपित होकर अपना वज्र कुंभकर्ण पर चलाया।
कुंभकर्ण वज्र लगने पर कुछ विचलित तो हुआ किन्तु क्रोध में भर बड़े जोर से गरजा और उसकी गर्जना सुन प्रजा और भी भयभीत हो गई उधर महाबली कुंभकरण ने इंद्र के ऐरावत हाथी का दांत उखाड़ कर इंद्र के ही छाती में ही दे मारा।
कुंभकरण के प्रहार से पीड़ित हो इंद्र अत्यंत कुपित हुए इंद्र को घायल देख अन्य देवता, ब्रम्ह ऋषि और दानव सब बहुत दुखी हुए और इंद्र सहित समस्त प्रजा को साथ ले ब्रह्मलोक में गए और वहां जा कुंभकरण की सारी दुष्टता ब्रह्मा जी को कह सुनाई। वे बोले यदि वह इसी तरह नित्य प्रजाओं का भक्षण करता रहा तो थोड़े ही दिन में संसार तो सुना हो जाएगा।
कुम्भकर्ण का श्राप
कुंभकरण को देख ब्रह्मा जी भी डर गए थे फिर कुंभकरण को देख और लुभा कर ब्रह्माजी ने उससे कहा हे कुंभकरण निश्चय ही संसार का नाश करने के लिए ही व्रिश्रवा मुनि ने तुझे उत्पन्न किया है अतः आज से मुर्दे की तरह पड़ा सोया करेगा।
इस प्रकार ब्रह्मा जी का श्राप होते ही वह उन्ही के सामने गिर पड़ा यह देख कर रावण ने कहा हे प्रजापते यह वृक्ष फूलने योग्य हुआ तब आपने इसे काट डाला महाराज यह तो आपका ही पौत्र हैं आप को इस प्रकार का श्राप देना उचित नहीं है आप का वचन तो मिथ्या हो ही नहीं सकता और निशांशय ये उसी प्रकार सोये गा भी किन्तु आप इसके सोने और जागने का समय नियत कर दे।
रावण के इन वचनों को सुन ब्रम्हा जी बोले यह 6 मास तक सोएगा और एक दिन जागेगा उसी 1 दिन में यह वीर भूख के मारे विकल हो पृथ्वी पर घूमेगा और प्रदीप्त अग्नि की तरह मुंह फैला कर अनेक लोगों को खाया करेगा।
कुंभकरण के सोने को लेकर कई प्रकार की किंबदंतीया फैली हुई है लेकिन वाल्मीकि रामायण के अनुसार कुंभकरण के सोने की वजह जो हमने ऊपर बताई है वही है।
कुम्भकर्ण कितना शक्तिशाली था?
लंका युद्ध के दूसरे दिन श्री राम और रावण के बीच हुए युद्ध में रावण को श्री राम ने परास्त कर उसे जीवनदान दे दिया था इस बात से क्रोधित होकर उसने अपने मंत्रियों से बलशाली कुंभकरण को जगाने का आदेश दिया था रावण और अन्य राक्षसों से मिलकर वह अति विशाल कुंभकरण प्रभु राम और समस्त वानर सेना के सामने आया था।
युद्ध में कुम्भकर्ण के एक प्रकार से ही हजारों वानर धराशाई होने लगे इसके साथ वह एक ही बार में हजारों वाहनों को पकड़कर खाने लगा।
कुम्भकर्ण और हनुमान जी का युद्ध
तब वहा हनुमान जी भी आ गए और कुंभकरण पर वृक्ष एवं पर्वत शिखर बरसाने लगे पर कुंभकरण उन सबको अपने शूल से चूर कर डाला।
इसके उपरांत जैसे ही अपना शूल उठाकर वह वानर सेना पर छपटा हनुमान जी ने एक भारी पर्वत खींचकर कुंभकरण पर दे मारा जिससे वह घायल हो गया और खून और चर्बी से नहा उठा इससे क्रोधित हुए कुम्भकर्ण ने अपने शूल से हनुमान जी की छाती पर जोरदार प्रहार किया उस प्रहार से हनुमान जी विकल हो गए और उनके भी मुख से लहू निकला आया था पर इस पर भी उस महासमर में हनुमान जी भयंकर गर्जना करने लगे थे।
यह वृतांत दर्शाता है कि सर्व शक्तिशाली हनुमान जी को भी उसने घायल कर दिया था।
उसी युद्ध में कुम्भकर्ण ने अकेले ही वानर सेना के कई प्रमुख सेनापति जैसे ऋषभ, नील, गवाक्ष आदि को बड़ी आसानी से पराजित कर दिया था।
अंगद को भी अपने मुष्टिका के प्रहार से मूर्छित कर दिया था हालांकि अंगद के प्रहार से वह भी कुछ समय के लिए अचेत हुआ था।
सुग्रीब पे अपनी शक्तिशाली शूल चलाई थी पर इससे पहले कि वह सुग्रीब तक पहुँचती उसे पहले ही हनुमान जी ने पकड़कर तोड़ दिया था जिससे वह इतना क्रोधित हो गया था कि एक विशाल पर्वत को उठा कर सुग्रीब पर चला दिया था इस प्रहार से सुग्रीव भी मूर्छित होकर वहीं गिर पड़े थे।
श्री राम और कुम्भकर्ण का युद्ध (कुंभकरण वध)
श्री राम के साथ हुए अंतिम युद्ध में उसने प्रभु राम को भी अपने बल एवं पराक्रम से अचंभित कर दिया था। जिन बाणो के प्रहार से उन्होंने साल वृक्षों को भेज दिया था और बाली जैसे शक्तिशाली वानर को मार गिराया था। वह बाण भी कुम्भकर्ण पर विफल हो गए थे जिसे देख श्रीराम भी हैरान हो गए थे।
सर्बप्रथम श्रीराम ने वायव्य अस्त्र चला कर उसकी एक भुजा को काट दिया इस पर भी कुंभकरण रुका नहीं उसने दूसरे हाथ से एक वृक्ष उखाड़ा और श्रीराम की ओर झपटा और श्री राम ने इन्द्रास्त चलाकर उसकी दूसरी भुजा भी काट डाली।
इस पर श्री रामचंद्र जी ने देखा कि दोनों भुजाओं के कट जाने पर भी वह राक्षस चला ही आ रहा है तब उन्होंने अर्धचन्द्राकार पैने बाणो को निकाल कर उसके दोनों पैर काट डाले।
दोनों पैर और भुजाएँ कट जाने के बाद भी अपना मुख खोल श्री राम राम की ओर छपता श्री राम ने उसके मुंह को बड़ों से भर दिया जिसके कारण वह कुछ बोल भी ना सका।
अंत में श्री राम ने एक और इन्द्रास्त चलाकर उसका मस्तक काट डाला था।
जिसके वध के लिए विष्णु अवतार को इतना बल झोकना पड़ा चार दिव्यास्त्र चलाने पड़े वह निश्चित ही कोई आम राक्षस ना था।