हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है इसीलिए मरने के बाद मृतक की आत्मा को मुक्ती और शांति दिलाने के लिए कई कर्म काण्ड भी किये जाते है। आप सभी ने देखा होगा की किसी रिश्तेदार के मरने पर हिन्दू धर्म में लोग अपना सर मुंडवा लेते है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है की मृत्यु के बाद क्यों है सर मुंडवाने की प्रथा, इसके पीछे का धार्मिक कारण क्या है, तो आइये अब जानते है की मुंडन क्यों किया जाता है।
हिन्दू धर्म में गरुड़ पुराण एक ऐसा पुराण है जो मृत्यु जैसे जटिल विषय पर भी बड़ी गहराई से प्रकाश डालता है इस पुराण में आत्मा के परलोक गमन की विस्तृत व्याख्या मिलती है।
गरुड़ पुराण के अनुसार रीती और नियम से किये गए कार्य से आत्मा को अगले जन्म अर्थात नए शरीर में उसके प्रवेश के द्वार खुलते है या फिर वो स्वर्ग में जाती है।
अब इन्ही कृत्यों में से एक है मृत्यु होने पर परिवार के पुरुष सदस्यों का मुंडन करवाना इस मुंडन पर सर और चेहरे के सारे बाल निकाल दिए जाते है। अगर वह परिजन अपने सर पर शिखा यानी की चोटी रखी होती है तो उसे काटने का प्रावधान नहीं है।
मृत्यु के बाद सिर मुंडवाने के कारण
आइये अब जानते है की ऐसा करते क्यों है
1. स्वच्छता – ऐसा स्वच्छता को ध्यान में रख कर किया जाता है क्यों की मृत्यु के बाद शरीर में सड़न शुरू हो जाती है और बहुत सारे जीवाणुओं का वो घर बन जाता है। रिश्तेदार और परिवार के लोग मृत्यु से ले के शमशान में जलाने तक उस शरीर को कई बार छूते है।
जिससे संभव है की रोगाणु उनके शरीर में भी आ गए हो इसलिए अंतिम संस्कार के बाद नाखून काटना, मुंडन, और स्नान जैसी प्रक्रिया साथ में ही की जाती है जिससे शरीर को स्वच्छ बनाया जा सके। मुंडन कराने से हमें कई तरह के संक्रमण से मुक्ती मिलती है और चूकि महिलाये शमशान में नहीं जाती हिन्दू धर्म में उनके मुंडन का प्रावधान नहीं है।
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2. कृतज्ञता का निशान – ऐसा माना जाता है की किसी रिश्तेदार की मृत्यु होने पर मुंडन करवाने के पीछे एक बड़ा कारण है की मृत व्यक्ती के प्रती श्रद्धा और सम्मान जाताना। मुंडन को मृतक के सम्मान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
मृतक ने अपने परिवार को उनके लिए बहुत कुछ करने के बाद उन्हें कई सालो तक प्यार करने और इतने समय के लिए कई मामलो में उनके साथ खड़े रहने के बाद उन्हें छोड़ दिया है इसीलिए सांसारिक कृतज्ञता के एक निशान के रूप में भी मुंडन कराया जाता है जिससे उनकी आत्मा को इस नियम के माध्यम से मिलने वाले सम्मान के कारण संतुष्टि मिलती है।
3. पातक का असर कम हो जाता है – जिस घर में बच्चे के जन्म के बाद सूतक लगता है उसी तरह परिवार में किसी के मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को पदक कहते है। ऐसा माना जाता है की व्यक्ति की मृत्यु होने के कुछ समय बाद तक उनके परिजनों में एक प्रकार का अशुचित्व अर्थात अपवित्रता या अशुद्धि रहता है।
मुंडन करवाने से इस अपवित्रता से मुक्ती मिल जाती है इसीलिए मृत व्यक्ति के परिजनो को 10 दिन तक तथा अंत क्रिया करने वालो को 12 से 13 दिन तक यानी की सपिंडीकरण करण करने तक पातक का पालन कड़ाई के साथ करना होता है।
इसी पुराण में ये भी बताया गया है की तेरवीं हो जाने के बाद मृतक की वस्तुओ को जरुरत मंदो में बाँट देना चाहिए। मूलतः यह कार्य सवा माह तक चलता है सवा माह तक कोई किसी के घर नहीं जाता सवा माह अर्थात 37 से 40 दिन। 40 दिनो में नक्षत्र का एक काल पूर्ण हो जाता है।
4. सभी भौतिक संपर्क तोड़ने के लिए – गरुण पुराण के अनुसार मृतक की आत्मा खुद की मृत्यु को तुरंत मानने के लिए तैयार नहीं होती पहले तो वो शव के अगल बगल घूमती है और फिर दाह संस्कार के बाद घर या परिजनों के आस पास परन्तु इन्द्रियों के अभाव के कारण उनका भौतिक संपर्क नहीं हो पाता और इस संपर्क को बनाने में सर के बाल सहायक सिद्ध होते है इसीलिए इस संपर्क को पूड़ी तरह तोड़ने के लिए ही सभी का मुंडन किया जाता है।
तो ये थे को प्रमुख कारण जिसके वजह से स्वजन की मृत्यु के बाद उनके परिजन मुंडन करवाते है। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे, और लेटेस्ट अपडेट के लिए हमें TELIGRAM में join करे।
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