सनातम धर्म में पौराणिक काल से ही यह परंपरा रही है कि मृत्यु के बाद जब मनुष्यों का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है तो मृतक की अस्थियों को संचित कर उसे गंगा जल में प्रवाहित या विसर्जित किया जाता है। लेकिन दोस्तों क्या आप जानते हैं कि आखिर मृतक की अस्थियों को गंगा जल में प्रवाहित करने के पीछे क्या वजह है।
आज हम आपको भगवान विष्णु द्वारा अस्थिविसर्जन के बारे में बताए गए एक कथा के बारे में बताने जा रहे है जिसका वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है।
गरुड़ पुराण के अध्याय 10 में वर्णित कथा के अनुसार पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु से पूछते हैं कि हे स्वामी जब भी किसी की मृत्यु हो जाती है तो मृतक के परिजन उसका दाह संस्कार कर देते हैं परंतु मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि वह मृतक की अस्थियो को संचित क्यों करते हैं। इसलिए कृपा कर बताइए कि क्या अस्थियों को संचित करना जरूरी है और आगर जरूरी है तो यह दाह संस्कार के कितने दिन बाद करना चाहिए, और यह भी बताइए की उन अस्थियो को देव नदी गंगा के जल में प्रवाहित या विसर्जित करने का क्या महत्व है।
अस्थि विसर्जन पूजा विधि
गरुड़ की बातें सुनकर भगवान विष्णु कहते हैं जब भी किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है और उसका दाह संस्कार कर दिया जाता है तो उसके परिवार वालों को चाहिए कि दाह संस्कार के चौथे दिन अस्थि संचन के लिए श्मशान भूमि में स्नान करके पवित्र हो जाएं। फिर चिता की राख से मृतक की अस्थियों को संचयित कर लें।
तत्पश्चात सर्वप्रथम चित्त स्थान को दूध से सींचे और उसके बाद उसे जल से सींच कर उसे पवित्र करें फिर संचयित अस्थियों को पलाश के पत्ते पर रख के दूध और जल से धोएं और पुनः मिट्टी के पात्र पर रखकर यथा विधी श्राद्ध पिंडदान करे। फिर चिता की आग को एकत्र करके उसके ऊपर तिपाई रखकर उस पर खुले मुख वाला जलपूर्ण घट स्थापित करें।
इसके बाद चावल पकाकर उसपर दही और घी तथा मिष्ठान मिलाकर जल के सहित प्रेत को यथा विधि बलि प्रदान करें।
हे खग फिर उत्तर दिशा में 15 कदम जाएं और वहां गड्ढों में उस अस्थि पात्र को स्थापित करें उसके ऊपर दाह जनित पीड़ा को नष्ट करने वाला पिंड प्रदान करें और उस अस्थि पात्र को निकाल कर उसे लेकर जलाशय जाए वह दूध और जल से उन अस्थियो का बार-बार पर्छालीत यानी धोकर उसपर चन्दन और कुमकुम का विशेष लेप लगाए।
फिर उन्हें एक दोने में रख कर ह्रदय और मस्तक में लगा कर उनकी परिक्रमा करे तथा उन्हें नमस्कार कर के गंगा जल में विसर्जित करे।
हे गरुड़ जिस मृत प्राणी की अस्थि 10 दिन के अंतर्गत गंगा जल में विसर्जित हो जाती है उसका ब्रह्मलोक से कभी भी पुनर गमन नहीं होता। गंगाजल में मनुष्य की अस्थि जब तक रहती है उतने हजारों वर्षों तक वह स्वर्ग लोक में विराजमान रहता है।
इतना ही नहीं गंगाजल की लहरों को छूकर हवा जब मृतक का स्पर्श करती है तब उस मृतक के सारे पाप तत्क्षण ही नष्ट हो जाते हैं।
हे गरुड़ जैसा कि तुम जानते हो कि महाराज भगीरथ ने उग्र तप कर गंगा देवी को अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए उन्हें ब्रह्मलोक से भूलोक पर लेकर आए थे और उसके बाद गंगाजल के स्पर्श मात्र से वस्मीभूत हुए राजा सगर के सभी पुत्र स्वर्ग पहुंच गए थे। तब से गंगा जी का पवित्र यश तीनों लोकों में विख्यात है।
इसके अलावा जो मनुष्य अपनी पूर्व अवस्था में पाप कर के मर जाते हैं और उनकी अस्थियों को गंगा में छोड़ दिया जाता है वह भी स्वर्ग लोग चले जाते हैं।
साथ ही यदि कोई मनुष्य सभी प्राणियों की हत्या करने वाला किसी व्याघ्र अर्थात बाग या सिंह के द्वारा मर जाता है, और जब वह जाने लगे तभी यदि उसकी अस्थियां गंगा जी में गिर जाती हैं तो वह दिव्य विमान पर चढ़कर देवलोक को चला जाता है।
इसलिए सत्पुरुष को स्वतः ही अपने माता या पिता की अस्थियों को गंगा जी में विसर्जित करना चाहिए या परिवार का कोई भी सदस्य अस्थि विसर्जन करने जा जकता है।
इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति विदेश में वन या चोरो के भय से मृत्यु को प्राप्त हो गया हो या उसका शव प्राप्त न हुआ हो। तो जिस दिन उसके निधन का समाचार सुने उसके परिवार वालों को चाहिए कि वह उसी दिन मृतक का कुश का पुतला बनाकर पूर्व विधि के अनुसार उसका दाह संस्कार करें
और उसके भस्म को लेकर गंगा जल में विसर्जित कर दें। इससे भी मृतक की आत्मा को इस मृत्यु लोक से मुक्ति मिल जाती है और वह स्वर्ग को चला जाता है।
हे गरुड़ जो भी मनुष्य मृतक के निमित्त उपरोक्त विधि का पालन करता है उसके मृत परिजन की आत्मा सारे पापों से मुक्त हो जाती है और वह आनंद पूर्वक स्वर्ग लोक में निवास करने लगता है।
अस्थि विसर्जन का वैज्ञानिक आधार
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार हड्डियों में फास्फोरस और कैल्शियम होता है जो की भूमि को उपजाऊ बनाने में मददगार है और जब हम गंगा नदी में या किसी और नदी में जो दूर तक बहती जाती है उस में अस्थियो (हड्डियां) को विसर्जित करते है तो ये पानी में मिल जाता है और नदी के आस पास की जमीनों को उपजाऊ बनाने में मददगार साबित होता है। साथ ही यह जल में रहने वाले जीवों के लिए एक पौष्टिक आहार है।
तो याह थी जानकारी की मृतक की अस्थियों को गंगा जल में क्यों प्रवाहित किया जाता है, इसकी विधि क्या है, अस्थि विसर्जन का महत्व क्या है और अस्थियो के विसर्जन का वैज्ञानिक कारण क्या है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो, इसे अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ साझा करें ताकि वह भी इस गूण रहस्य के बारे में जान सकें। साथ ही ऐसी कोई जानकारी या आप का कोई सुझाव हो तो वह भी हमें कमेंट में बता सकते है।