गरुड़ पुराण का अठारह पुराणों में एक विशेष महत्व है इस पुराण के अधिष्ठाता देव भगवान श्री हरि विष्णु है इसे पुराण के एक वृतांत में भगवान विष्णु ने पक्षीराज गरुड़ जी को विभिन्न प्रकार की योनियों में जन्म लेने के पापों के बारे में विस्तार से बताया है इन दोनों के बीच हुए इस रोचक संवाद को आप अंत तक अवश्य पढ़िए।
गरुड़ पुराण धर्म काण्ड अध्याय 2 में बड़े ही विस्तार से वर्णित है की प्राणी अपने सतकर्म एवं दुष्कर्म के फलो के विविधता का अनुभव करने के लिए ही इस संसार में जन्म लेता है जो विभिन्न नर्को का भोग भोग कर पुनः इस पृथ्वी पर जिन लक्षणों से युक्त होकर जन्म लेते हैं वे इस प्रकार हैं।
किस पाप के कारण अगले जन्म में मिलती है कौन सी योनि
ब्राह्मण की हत्या करने वाले को मृग, अस्व, शुकर और ऊंट की योनि प्राप्त होती है, स्वर्ण की चोरी करने वाला क्रिमी, कीट, और पतंग की योनि में जन्म लेता है, गुरु पत्नी गामी चर्म रोगी होता है।
जो मनुष्य जिस प्रकार के महा पापियों का साथ करता है उसे भी उसी प्रकार का रोग होता है, रत्न की चोरी करने वाला निकृष्ट योनि में जन्म लेता है, धान्य चोरी करने वाला चूहा, यान चुराने वाला ऊँट तथा फल की चोरी करने वाला बन्दर की योनी में जाता है।
धर्मपत्नी का परित्याग करने वाला शब्द वेदी होता है, भक्ष और अभक्ष का विचार ना रखने वाला अगले जन्म में गंड माल नामक महा रोग से पीड़ित होता है, जो दूसरे की धरोहर का अपहरण करता है वह काना होता है, जो स्त्री के बल पर इस संसार में जीवन यापन करता है वह दूसरे जन्म में लंगड़ा होता है।
जो मनुष्य पती परायणा अपनी पत्नी का परित्याग करता है वह दूसरे जन्म में दुरभाग्यशाली होता है, मित्र की हत्या करने वाला उल्लू होता है, आसत्यवादी हकला कर बोलने वाला और झूठी गवाही देने वाला जलोदर रोग से पीड़ित रहता है।
विवाह में विघ्न पैदा करने वाला पापी मच्छर की योनि में जाता है यदि कदाचित उसे पुनः मनुष्य की योनी प्राप्त भी होती है तो उसका ओंठ कटा हुआ होता है, जो मनुष्य चतुश पथ पर मल-मूत्र का परित्याग करता है वह वृषल होता है।
कन्या को दूषित करने वाले प्राणी को नपुंसकता का विकार होता है, स्त्रियों के वस्त्र चुराने पर श्वेत कुष्ठ गुरुहन्ता क्रूरकर्मा बौना होता है।
दूसरे का मांस खाने वाला और ब्राह्मण के धन का अपहरण करने वाला पांडु रोगी होता है तथा मात्सर्य दोष से युक्त प्राणी को भ्रमर की योनि मिलती है।
घर आदि में आग लगाने वाला कोढ़ी, और किसी और की कोई प्रिय वस्तु छीनने वाला जो वह देना नहीं चाहता ऐसा व्यक्ति बैल बनता है, गायों की चोरी करने पर सर्प तथा अन्य की चोरी करने पर प्राणी को अजीर्ण रोग होता है, दूध की चोरी करने वाला और ब्राह्मणों को दान में बासी भोजन देने से कुबड़े की योनी प्राप्त होती है।
बिना किसी को दिए अकेले भोजन करने वाला व्यक्ति संतान हीन होता है, जो मनुष्य फल चुराता है उसकी संतति मर जाती है, पुस्तक की चोरी करने वाला प्राणी जन्मांत होता है तथा सन्यास, आश्रम का परित्याग करने वाला पिसाच होता है।
झूठी निंदा करने वाले लोगों को कछुए की योनि में जाना पड़ता है, अग्नि को पैर से स्पर्श करने पर प्राणी बिलौटा और जीवो का मांस खाने पर रोगी होता है, जो मनुष्य जल के स्रोत को विनिस्ट करता है वह मछली होता हैं।
जो लोग भगवान हरी की कथा और साधू जनो की प्रसस्ति नहीं सुनते उन मनुष्य को कारण मूल रोग होता है, जो व्यक्ति परायो के मुंह में स्थित अन्न का अपहरण करता है वह मंदबुद्धि होता है, दंभग के वशीभूत होकर जो प्राणी धरम चारण करता है उसको गज चर्म का रोग होता है।
विश्वासघाती मनुष्य के शरीर में शिरोत्तरी रोग होता है, ब्राह्मण को देने की प्रतिज्ञा करके जो नहीं देते उन्हें सिआर की योनि प्राप्त होती है और उनकी स्त्रियां भी पाप की भागनी होती है और इन्हें उन्ही जंतुओं की भार्या होना पड़ता है।
उक्त कर्मों के कुफल से प्राप्त नर्क का भोग करने के बाद मनुष्य इन्ही सब योनियों में प्रविष्ट होता है जिस प्रकार इस संसार में नाना भांति के द्रव्य विद्वमान है उसी प्रकार प्राणियों की विभिन्न जातियां भी है वह सभी अपने अपने विभिन्न कर्मो के प्रतीफल रूप में सुख-दुख एवं नाना योनियों का भोग करते हैं तात्पर्य यही है कि प्राणी को शुभ कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति और अशुभ कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती।
तो ये थी जानकारी की, किस पाप के कारण अगले जन्म में मिलती है कौन सी योनि। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे, साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते है।
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