गरुड़ देव जिन्हे अधिकांश लोग पक्षियों के राजा और भगवान विष्णु के वाहन के रूप में ही जानते हैं। पौराणिक सनातनी महाकाव्य में सिर्फ यही तक सीमित नहीं थे। आज हम आपको गरुड़ देर से जुड़े रोचक तथ्य बताएंगे जिनसे आप भी जान पाएंगे की क्यों वे अकेले ही सौ इन्द्रो के बराबर माने जाते थे।
गरुड़ का जन्म कब और कैसे हुआ?
महाभारत के अदि पर्व अध्याय 31 के अनुसार प्रजापति कश्यप जी पुत्र की कामना से यज्ञ कर रहे थे। उसमें ऋषिओ, देवताओं, तथा गंधर्व ने भी उन्हें बड़ी सहायता दी। उस यज्ञ में कश्यप जी ने इंद्र को समिधा लाने के लिए काम पर नियुक्त किया था। बाल खिल्य मुनियों तथा अन्य देवगणो को भी यही कार्य सौंपा गया।
इंद्र शक्तिशाली थे उन्होंने अपने बल के अनुसार लकड़ी का एक पहाड़ जैसा बोझ उठा लिया उन्होंने मार्ग में बहुत से ऐसे ऋषियों को देखा जो कद में बहुत ही छोटे थे वे सब मिलकर पलाश की एक बाती छोटी सी टहनी लिए आ रहे थे। अपने बल के घमंड में मतवाले इन्द्र हंसी उड़ाते हुए शीघ्रता के साथ आगे बढ़ गए।
इन्द्र के इस व्यव्हार से मुनियों को बड़ा आक्रोश हुआ उनके हृदय में भरी क्रोध का उदय हो गया। अतः उन्होंने उस समय एक ऐसे महान कर्म का आरंभ किया जिसका परिणाम इंद्र के लिए भयंकर था तब यज्ञ में वे महर्षि यह संकल्प करते थे कि संपूर्ण देवताओं के लिए कोई दूसरा ही इंद्र उत्पन्न हो जो वर्तमान देवराज के भय दायक इन्द्र से वह 100 गुना बढ़कर हो हमारी तपस्या के फल से ऐसा ही वीर प्रकट हो।
इसी समय दक्ष कन्या विनता देवी पुत्र की कामना से तपस्या पूर्वक ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करने लगी उस समय कश्यप जी ने उनसे कहा देवी तुम्हारा यह अभीष्ट समारंभ अवश्य सफल होगा। तुम ऐसे दो पुत्रों को जन्म दोगी जो बड़े वीर और तीनों लोगों पर शासन करने की शक्ति रखने वाले होंगे इच्छा अनुसार रूप धारण करने में समर्थ और लोक संभावित वीर होंगे।
कुछ समय उपरांत विनता ने दो पुत्र उत्पन्न किए अरुण और गरुड़ आगे बढ़ने से पहले हम आपको यह बताना चाहते हैं कद्रू और विनता दोनों कश्यप जी की पत्नियां थी। वह दोनों सगी बहनें भी थी कद्रू से नागो की उत्पत्ति हुई थी और विनीता ने गरुड़ और अरुण को जन्म दिया था।
एक शर्त हार जाने के कारण विनता और उसके पुत्रों को कद्रू के दास बनना पड़ गया था।
महा तेजस्वी गरुड़ माता की सहायता के बिना ही अंडे फोड़ कर बाहर निकल आए वे अपने तेज से संपूर्ण दिशाओं को प्रकाशित कर रहे थे। उनका प्राकट्य आकाश जारी पक्षी के रूप में हुआ था उनका शरीर थोड़ी देर में बढ़कर विशाल हो गया।
गरुड़ ने देवताओं से अमृत क्यों छीना?
कुछ समय उपरांत उन्होंने अपनी माता से पूछा कि आप और मुझे इन सर्पो की आज्ञा का पालन क्यों करना पड़ता है। तब विनता ने गरुड़ को सब बताया वह इसके निवारण के लिए उन सर्पो के पास जाकर बोले मै तुम्हे क्या लाके दे दूँ, किस विद्या का लाभ करा दूँ, अथवा यहां कौन सा पुरुषार्थ करके दिखा दूं जिससे मुझे तथा मेरी माता को तुम्हारी दासता से छुटकारा मिल जाए।
गरुड़ की बात सुनकर सर्पो ने कहाँ गरुड़ तुम पराक्रम करके हमारे लिए अमृत ला दो इससे तुम्हें दास्य भाव से छुटकारा मिल जाएगा। माता विनता से मिलकर और बाद में ऋषि कस्यप से आशीर्वाद ले कर वे अमृत लेने के लिए निकल पड़े।
उनके इंद्र लोक पहुंचते ही आकाश में पड़ी भारी आवाज से गर्जना होने लगी बहुत सी धूले उड़कर देवताओं के मुकुटों को मलीन करने लगी। यह भयंकर उत्पात देखकर देवताओं सहित इंद्र भय से व्याकुल हो गए और बृहस्पति जी से इंद्र ने कहां भगवन सहसा ये भयंकर उत्पात क्यों होने लगे हैं।
वृहस्पति जी ने कहां देवराज इंद्र कश्यप मुनि और विनता के पुत्र पक्षीराज गरुड़ अमृत का अपहरण करने के लिए आ रहे हैं। वे बड़े बलवान और इच्छा अनुसार रूप धारण करने में समर्थ हैं। इंद्र के कहने पर समस्त देवता गण अमृत को चारों ओर से घेर कर खड़े हो गए। प्रतापी इंद्र भी हाथ में वज्र लेकर वह डट गए बाकी देवो ने ना-ना प्रकार के भयंकर अस्त्र-सस्त्र हाथो में ले रखे थे।
गरुड़ और देवताओं का युद्ध
उसी समय पक्षीराज गरुड़ तुरंत ही देवताओं के पास जा पहुंचे उन अत्यंत बलवान गरुड़ को देखकर संपूर्ण देवता कांप उठे उनके सभी आयुद्ध आपस में ही आघात-प्रत्याघात करने लगे वहां तेजस्वी विश्वकर्मा जी अमृत की रक्षा कर रहे थे पर वह क्षण भर भी पक्षीराज के सामने टिक ना पाए उनको गरुड़ देव ने बुरी तरह से घायल कर दिया।
तदन्तर पक्षीराज ने पंखो की प्रचंड वायु से बहुत धूल उड़ा कर वहां अंधकार फैला दिया। अमृत की रक्षा करने वाले देवता भी इसी प्रकार धूल से ढक जाने के कारण कुछ देख नहीं पा रहे थे इस तरह गरुड़ देव ने पंखो तथा चोचो की मार से देवताओं का अंग अंग विदीर्ण कर डाला।
तब इंद्र देव के कहने पर वायु देव ने बड़े वेग से उस धूल को दूर उड़ा दिया अब देवता उन पर पटीश, परिघ, शूल, और गधा आदि नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों द्वारा प्रहार करने लगे तो भी पक्षीराज गरुड़ देवताओं के साथ तुमुल युद्ध करते हुए तनिक भी विचलित नहीं हुए।
आकाश में खड़े-खड़े ही पंखों और छाती के धक्के से उन सब को चारों ओर मार गिराया गरुड़ से पीड़ित और दूर फेंके गए देवता इधर-उधर भागने लगे। पक्षीराज से पराजित हुए सव्य और गंधर्व पूर्व दिशा की ओर भाग चलें, वसुओं तथा रूद्रो ने दक्षिण दिशा की शरण ली, आदित्य गण पश्चिम दिशा की ओर भागे तथा अश्विनी कुमारों ने उत्तर दिशा का आश्रय लिया।
इसके बाद गरुड़ जी ने नौ यक्षों के साथ युद्ध किया क्रोध में भरकर उन सबको पंखो, नखों और चोंच के अग्रभाग से विदीर्ण कर डाला। अमृत की रक्षा के लिए दो श्रेष्ठ सर्प नियुक्त किए गए थे गरुड़ ने उन दोनों को देखा और वेग पूर्वक आक्रमण करके उन दोनों सर्पो के शरीर को बीच से काट डाला।
फिर वो अमृत की ओर झपटे और उसकी रक्षा में लगे चक्र को तोड़-फोड़ कर अमृत के पात्र को उठाकर बड़ी तेजी के साथ वहां से उठ चलें उन्होंने स्वयं अमृत को नहीं पिया केवल उसे लेकर शीघ्रता पूर्वक वहां से निकल गए।
गरुड़ कैसे बने भगवान विष्णु के वाहन?
उस समय आकाश में गरुड़ की भगवान विष्णु से भेंट हो गई भगवान नारायण के पराक्रम से बहुत संतुष्ट हुए थे विष्णु जी बोले मैं तुम्हें वर देना चाहता हूं। गरुड़ ने ये वर माँगा प्रभो मैं आपके ऊपर ध्वज में स्थित हो जाऊं तथा मैं अमृत पिए बिना ही अजर-अमर हो जाऊं। तब भगवान विष्णु ने गरुड़ से कहां एवमस्तु! ऐसा ही हो।
वे दोनों वर ग्रहण करके गरुड़ ने भगवान विष्णु से कहां देव मैं भी आपको भर देना चाहता हूं भगवान कोई भी वर मांगे। तब श्री हरी ने गरुड़ से अपना वाहन होने का वर मांगा। भगवान विष्णु ने गरुड़ को अपना ध्वज बना लिया और उन्हें ध्वज के ऊपर स्थान दिया और कहां इस प्रकार तुम मेरे ऊपर रहोगे।
तदन्तर उन भगवान नारायण से एवमस्तु! कहकर पक्षी गरुड़ वहां से वेद पूर्वक चले गए।
गरुड़ और इंद्र का युद्ध
रास्ते में इंद्र ने रोष में भरकर उनके ऊपर वज्र से आघात किया। गरुड़ ने उस युद्ध में वज्रआहत होकर भी हंसते हुए मधुर वाणी में इंद्र से कहां देवराज जिनकी हड्डी से यह वज्र बना है उन महर्षि का सम्मान में अवश्य करूंगा। ऋषि के साथ-साथ मै तुम्हारा और तुम्हारे वज्र का भी आदर करूंगा।
इसीलिए मैं अपनी एक पांख त्याग देता हूं तुम्हारे वज्र के प्रहार से मेरे शरीर में कुछ भी पीड़ा नहीं हुई है। गरुड़ पर वज्र भी निष्फल हो गया था।
यह महान आश्चर्य की बात देखकर सहस्र नेत्रों वाले इंद्र ने मन ही मन विचार किया यह पक्षी रूप में कोई महान प्राणी है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ देव से कहां विहंग प्रबल मैं तुम्हारे सर्वोत्तम उत्कृष्ट बल को जानना चाहता हूं और तुम्हारे साथ ऐसी मैत्री स्थापित करना चाहता हूं जिसका कभी अंत ना हो।
गरुड़ ने कहा जैसी तुम्हारी इच्छा है उसके अनुसार तुम्हारे साथ मेरी मित्रता स्थापित हो।
गरुड़ कितने शक्तिशाली थे?
मेरा बल भी जान लो इंद्र पर्वत, वन, और समुद्र सहित सारी पृथ्वी को और इसके ऊपर रहने वाले आपको भी अपने एक पंख पर उठाकर मैं बिना परिश्रम के उड़ सकता हूं अथवा संपूर्ण चराचर लोगों को एकत्रित करके यदि मेरे ऊपर रख दिया जाए तो मैं सब को बिना परिश्रम के ढ़ो सकता हूं इससे तुम मेरे महान बल को समझ लो।
इसके उपरांत अमृत लेकर वे अपने माता के समीप पहुंचे। वे समस्त सर्पो से बोले मैंने तुम्हारे लिए अमृत ला दिया है आज से मै और मेरी माता से मुक्त हो जाएं।
हलाकि इंद्र और गरुड़ देव ने पहले ही एक योजना बना ली थी पुनः अमृत को हरने की वह अमृत वहीं वापस पहुंच गया था।
वह गरुड़ ही थे जिन्होंने ने वास्तव में इंद्रजीत के नागपाश से लक्षमण जी को मुक्त किया था।
भगवत गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं वो पक्षियों में श्रेष्ठ गरुड़ है।
महाभारत में श्री कृष्ण भी इन्ही पर सवार होकर अपने कितने शत्रुओं का संघार करने को निकलते थे।
तो ये थी जानकारी की गरुड़ का जन्म कब और कैसे हुआ, गरुड़ ने देवताओं से अमृत क्यों छीना, गरुड़ कैसे बने भगवान विष्णु के वाहन, गरुड़ कितने शक्तिशाली थे। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे। साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते है।