बाली कौन था, बाली कितना शक्तिशाली था | वानर राज बाली के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

इन्द्र पुत्र बाली अपने असीम शारीरिक बल तथा समय-समय पर दिखाए गए उनके अविश्वसनीय पराक्रम के लिए प्रख्यात थे वे निश्चित ही रामायण काल के सर्वाधिक बलशाली योद्धाओं में से एक थे। कितना बल था उनमें, और क्या कोई अस्त्र भी थे उनके पास, कितने युद्ध लड़े थे बाली ने, आइए विस्तार से जानते हैं।

बाली कौन था ? (Bali kaun Tha)

बाली के पिता का नाम वानर श्रेष्ठ रीक्ष था। वाली के धर्म पिता देवराज इंद्र थे बालि का विवाह तारा से हुआ था तथा अंगद उन्हीं का पुत्र था। 

रावण और बाली का युद्ध 

उत्तरकांड अध्याय 34 के अनुसार एक समय रावण किष्किंधा पूरी में पहुंचा और उसने बाली को लड़ने के लिए बुलाया वहा बाली के मंत्री तार ने रावण को बताया बाली दक्षिण समुद्र की ओर गया है रावण भी पुष्पक विमान पर सवार होकर तुरंत वहां पहुंच गया। 

बाली ने रावण को देख लिया और रावण के वहां आने का अभिप्राय भी भाप गए। उस समय एक दूसरे को पकड़ने की कामना से वानर राज और राक्षस राज प्रयत्न करते हुए अपने बल का प्रदर्शन करने लगे और एक समय बाली ने रावण को पकड़कर अपनी काख में दबा लिया फिर वे बड़े जोर से आकाश में उड़ गए। 

बाली रावण को बार-बार दबाकर पीड़ित करते थे और उसे नोचते खसोटते हुए फिर रहे थे। रावण को छुड़ाने के लिए उनके मंत्री बाली के पीछे भागे परंतु बाली की जंघाओं और भुजाओं के वेग को वो पा ना सके और थककर बीच में ही रह गए। 

बाली रावण को बगल में दबाए हुए कितने ही हजार योजन वैसे ही घसीटते रहे। वैसे ही दबोचे हुए बाली चारों समुद्रों की यात्रा कर किष्किंधा लौट आये और रावण को काख से आजाद कर दिया। तब रावण ने वहां बोला हे वानरराज  तुम्हारा बल और पराक्रम अतुलनीय है तुमने मुझे पशु की तरह चारों समुद्र में घुमा डाला। मन, वायु, गरुड़ केवल इन तीनों में इतनी गति है तब रावण ने बाली की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया था। 

बाली कौन था, बाली कितना शक्तिशाली था | वानर राज बाली के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

श्री राम और सुग्रीव की मित्रता

वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड सर्ग 8 के अनुसार श्री राम की भेट सुग्रीव से हुई थी तो उस समय सुग्रीव श्रीराम से कहते हैं कि वे बाली के भय से अपने अनुयायियों के साथ ऋषिमुख पर्वत में रहते हैं। बाली ने मेरी स्त्री भी छीन ली है। 

आगे वाली के बारे में बताते हुए सुग्रीव कहते हैं पिताजी के देहांत के बाद बाली को जेष्ट समझकर मंत्रियों ने उसे राज सिंहासन पर बैठाया। एक बार मायावी दानव किष्किंदा नगर में आकर बाली को युद्ध के लिए ललकाराने लगा  क्रोध में भरकर बाली बड़ी तेजी से उसे मारने के लिए घर से निकला सुग्रीव भी उसके साथ हो लीए।

तदन्तर वह असुर बाली को देखकर डर गया और पृथ्वी के एक दुर्गम बिल में घुस गया। बाली वहां सुग्रीव से बोले जब तक मै इस शत्रू को मार के बाहर ना आ जाऊ तुम यहीं खड़े रहना। जब वाली उस गुफा में घुसे हुए 1 वर्ष हो गया तो सुग्रीव ने बाली को मृत जानकर उस गुफा को बड़ी सी शीला के साथ ढक दिया और वापस किष्किंधा आ गए। तदन्तर सब मंत्रियों ने मिलकर सुग्रीव का राज्य अभिषेक कर दिया। 

इतने में ही उस महा असुर को मार कर बाली वापस लौट आए और सुग्रीव को राजसिंघासन पर बैठा देख क्रोधित होकर बोले मैं यह जानकर कि मेरा भाई तो द्वार पर मौजूद है। मैं उस गुफा में घुस गया और वहां जाकर उस दानव को ढूंढने में ही 1 साल लग गया। जब वह भयावय शत्रु मुझे दिख पड़ा तो मैंने सापरिवार उसको मार डाला। 

जब मैं उसको मार कर वापस आया तो गुफा का द्वार बंद पाया मैंने सुग्रीव सुग्रीव कहकर पुकारा जब किसी ने उत्तर नहीं दिया तो मुझे दुख हुआ मैंने लातों से ही उस पत्थर को तोड़ डाला और यहाँ नगर में आया। इस क्रूर सुग्रीव ने राज्य पाने के लोभ से मुझे गुफा में बंद कर दिया।

सुग्रीव ने भी अपनी स्थिति को बाली को समझाने का बहुत प्रयास किया तो भी बाली ने सुग्रीव को वहां से निकाल दिया और उसकी स्त्री को भी रख लिया। 

बाली कितना शक्तिशाली था?

वाल्मीकि रामायण किष्किंधा कांड सर्ग 10 में सुग्रीव बाली के पौरूष तथा प्रक्रम को बताते हुए कहते हैं कि बाली सूर्य उदय होने से पूर्व पश्चिम तट से पूर्व समुद्र तक और दक्षिण समुद्र से उत्तर समुद्र के किनारे तक घूम आता है किंतु इतनी दूर चलकर भी वह थकता नहीं वह महापराक्रमी बाली पर्वतो में चढ़ उनके बड़े-बड़े शिखरों को हाथ से गेंद सा बनाकर उछाल कर फेक देता है वनो के बड़े-बड़े वृक्षों को उखाड़ के फेंक देता है। 

इन सब बातों से हमें ज्ञान हो जाता है कि बाली की भुजाओं में कितना बल था। 

एक समय दुंदुभि नाम का विशालकाय पराक्रमी भैसा जो अपने शरीर में एक हजार हाथियों का बल रखता था अपने शारीरिक बल और वरदान के घमंड में वह किष्किंधा नगरी पहुंच गया। वह असुर भयानक भैंसे का रूप धारण किए हुए था। 

वहां सब तहस-नहस कर उसने बाली को ललकारा और कहा आज मैं तेरा हंकार दूर करके तुझे मार डालूंगा। 

बाली ने उस पहाड़ जैसे आकार के दुंदुभी के सींग को पकड़कर दूर फेंक दिया। बाली ने उसको इतने जोर से पटका था कि उसके कानों से रक्त बहने लगा तदनंतर उन दोनों में घोर युद्ध हुआ। 

जब दुंदुभी का साहस, बल, धैर्य और पराक्रम मंद पड़ गया तो बाली ने उसे फिर से जमीन पर पटक दिया और वह वही मर गया। बलवान बाली ने उसे मृत दुंदुभी को उठाकर एक योजन दूर फेंक दिया था। 

बाली और सुग्रीव से लड़ाई (Vali vs Sugriva)

जब श्रीराम के कहने पर सुग्रीव ने किष्किंधा जाकर बाली को ललकारा तो वहां दोनों में भयानक युद्ध हुआ कुछ ही समय में बाली ने सुग्रीव को बुरी तरह से पीट डाला। दोनों की शक्ल सूरत एक जैसी थी इसी कारण श्रीराम शत्रु के प्राण को हरने वाले उस बाण को ना छोड़ पाए। 

बाली द्वारा छत विकक्षित होने पर सुग्रीव भागकर वन में चले गए। सुग्रीव तब श्रीराम से बोले अगर आपको बाली को मारना ही नहीं था तो मुझे क्यों पिटवाया। तब श्रीराम ने बताया कि तुम दोनों की शक्ल एक से होने के कारण मैं दुविधा में पड़ गया था अगर हड़बड़ी में वह तीर तुम्हे लग जाता तो। 

तब उन्होंने सुग्रीव के गले में नाग पुष्पी माला बांध दी और पुनः सुग्रीव किष्किंधा जाने के लिए बोला वहां पहुंचकर सुग्रीव ने क्रोध में भरकर फिर से बाली को ललकारा उस समय श्रीराम पेड़ों की आड़ में खड़े हो गए। 

सुग्रीव के इस प्रकार बुलाने पर बाली क्रोध में भरकर वहां जाने को उद्युत हुआ यह देख तारा घबराकर बाली से बोली यह सुग्रीव हाल ही में पिट कर तुम्हे बुला रहा है इससे मेरे मन में संदेह उत्पन्न हो रहा है बिना सहायता पाए सुग्रीव यहां आने वाला नहीं है वह बड़ा ही चतुर है परंतु बाली ने तारा की एक न सुनी और सुग्रीव से युद्ध करने के लिए पहुंच गया। 

पहले की ही तरह उन दोनों में भीषण युद्ध हुआ दोनों एक दूसरे पर घात कर रहे थे इसी बीच बाली का पराक्रम बढ़ रहा था और सुग्रीव का घटता जा रहा था और वह इधर उधर देख रहा था। 

बाली का वध (Bali Vadh)

तब श्रीराम ने बाण चला दिया जो सीधा बाली के छाती में लगा और वह वहीं गिर पड़ा। गिरने के पश्चात भी बाली के शरीर की शोभा, प्राण, तेज और पराक्रम नष्ट ना हुआ क्योंकि इंद्र द्वारा दी गई माला ने बाली के प्राणों को तेज को और शोभा को रोक रखा था। उस स्वर्ण की माला ने उस समय तक उसके प्राणों को निकलने नहीं दिया था। 

राम बाली संवाद

उस समय बाली श्रीराम से बोला मैं तो तुम्हें श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न हुआ मानता था अथवा दूसरे से युद्ध में प्रवृत्त हुए मुझ पर तुम बाण नहीं छोड़ोगे मेरा यही विचार था। मैंने तो तुम्हें देखा भी नहीं था परंतु अब मैंने जान लिया कि तुम कोई धर्म की ध्वजा उड़ाने वाले अधर्मी और पाप चारी हो। 

मैंने तुम्हारा और तुम्हारे नगर का कोई बुरा काम नहीं किया फिर भी तुमने मुझे मारा है ऐसा घृणित कर्म करके तुम सज्जनों के बीच क्या कहोगे। हे राम यदि तुम अपना प्रयोजन सुग्रीव से ना कह कर मुझे बतला देते तो मैं एक ही दिन में सीता को ले आता। 

यही नहीं उस रावण को संग्राम में मारकर उसका गला बांधकर तुम्हारे पास ले आता। 

श्रीराम ने उत्तर दिया कि तुमने सनातन धर्म छोड़कर अपने भाई की भार्या को अपनी भार्या बना लिया। तुमने काम सख्त हो धर्म मार्ग का उल्लंघन किया है इसीलिए मैंने तुम्हें दंड दिया है। तुम्हारा वध धर्म अनुसार ही किया गया है। 

जय श्री राम !!

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