दैत्यराज बलि का पुत्र बाणासुर बचपन से ही शक्तिशाली था पर उसकी महत्वाकांक्षा सबसे अधिक शक्तिशाली बनने की थी इसके लिए उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे सहस्त्रबाहु (1000 हाँथ) और महाशक्तिशाली होने का वरदान दिया।
बाणासुर ने भगवान शिव से यह भी मांगा कि जब भी कभी उसे जरूरत पड़े तो वह उसकी मदद के लिए आए। इसी बाणासुर की वजह से एक बार भगवान शिव और श्री कृष्ण में युद्ध छिड़ गया था। तो जानते हैं पूरा किस्सा भागवत पुराण और हरिवंश पुराण में इसका वर्णन है।
बाणासुर के कितने नाम थे
बाणासुर के अन्य नाम जैसे महाकाल, सहस्रबाहु तथा भूतराज, असुरराज से भी जाना जाता था।
युद्ध का कारण
श्री कृष्ण के पोते अनिरुद्ध और बाणासुर की बेटी उषा आपस में प्रेम करते थे पर बाणासुर ने श्री कृष्ण के साथ अपनी दुश्मनी के चलते इन दोनों के रिश्ते को नामंजूर कर दिया अनिरुद्ध एक बार उषा से मिलने के लिए शोणितपुर गये।
वहां बाणासुर को इसका ज्ञात हो गया और उसने अनिरुद्ध को बुरा भला कहा और उसको युद्ध करने की चुनौती दे डाली अनिरुद्ध के पास युद्ध करने के सिवा और कोई चारा नहीं था।
अनिरुद्ध और बाणासुर का युद्ध
अनिरुद्ध और बाणासुर के बीच युद्ध छिड़ गया अनिरुद्ध ने बड़ी ही बहादुरी से युद्ध लड़ा और बाणासुर पर हावी भी हो गये थे।
वह बाणासुर को परास्त ही करने वाले थे तभी बाणासुर ने अपनी माया शक्ति का उपयोग किया और अनिरुद्ध को बंदी बनाकर उसे कारागार में डाल दिया।
जब श्रीकृष्ण को इस बात का ज्ञात हुआ तो वो अति क्रोधित हुए अपना सारंग धनुष उठा उन्होंने सोनितपुर जाने का निर्णय लिया। बलराम और प्रद्युम्न भी उनके साथ हो लिए। तीनों गरुड़ पर सवार हो शोणितपुर की तरफ उड़ चले।
बाणासुर ने जब श्री कृष्ण को आते हुए देखा तो उसने भगवान से प्रार्थना की श्री कृष्ण से मेरा युद्ध होने वाला है और आप मेरी सहायता कीजिए जैसा कि हमने बताया था बाणासुर ने भगवान शिव से वरदान दिया था कि वह किसी भी विकट स्थिति में उसकी और उसके राज्य की रक्षा करेंगे।
श्री कृष्ण और उनकी सेना ने बाणासुर के राज्य के सामने डेरा डाल लिया। बाणासुर भी वहां आ गया और वहां युद्ध छिड़ गया भगवान शिव ने अपने कई भूत, प्रेत, गण, पिशाच, श्रीकृष्ण को पकड़ने के लिए भेजें पर उन सबको तीरों की वर्षा कर श्री कृष्ण ने भगा दिया।
उनको ऐसे परास्त हुए भागते देख भगवान शिव ने अपने पुत्र कार्तिकेय को श्रीकृष्ण को वश में करने के लिए भेजा। मोर पर सवार कार्तिकेय ने श्री कृष्ण बलराम और प्रद्युम्न पर हमला बोल दिया। गरुड़ ने जब कार्तिकेय की सवारी मोर को बुरी तरह से घायल कर दिया तो डर के मारे वह कार्तिकेय जी को छोड़कर वहां से भाग गया।
कार्तिकेय और प्रद्युम्न का युद्ध
गरुड़ के इस कार्य से कार्तिकेय क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपना भाला गरुड़ की ओर चला दिया पर उसको बीच हवा में ही प्रद्युम्न ने नष्ट कर दिया।
कार्तिकेय और प्रद्युम्न का युद्ध शुरू हो गया काफी देर तक वह एक दूसरे पर तीर चलाते रहे लंबे समय तक चली मुठभेड़ के बाद प्रद्युम्न कार्तिकेय पर हावी हो गए और कार्तिकेय उसके तीनों को और झेल नहीं पाए और वो युद्ध छोड़ कर वापस कैलाश चले गए।
भगवान शिव ने तब अपनी ज्वर प्रकट की और श्री कृष्ण और उनकी सेना की ओर छोड़ दी। प्रद्युम्न ने उस ज्वर से लड़ने की कोशिश की पर वो ज्वर उनके सभी अस्त्र-शस्त्र निगल गई और उसके शरीर में प्रवेश कर गयी जिससे प्रद्युम्न कमजोर होकर वहीं गिर पड़े।
तब उस ज्वर ने बलराम का रुख किया और उनका भी प्रद्युम्न जैसा ही हाल कर श्री कृष्ण की ओर बढ़ चली।
श्री कृष्ण का ज्वर से युद्ध होने लगा वह ज्वर श्रीकृष्ण के अंदर भी घुस गई और उनके अंगों को कमजोर करना शुरू कर दिया। तब इसकी काट के लिए श्री कृष्ण ने नारायण ज्वर का आह्वान किया और उसने शिव की ज्वर का असर कम कर दिया और भगवान शिव की ज्वर वहां से चली गई।
क्यों हुआ भगवान शिव और श्री कृष्ण का युद्ध
तब स्वयं भगवान शिव नंदी पर सवार हो युद्ध क्षेत्र में आए अपने पिनाक धनुष से उन्होंने कृष्ण पर पिशाच, राक्षस, रौद्र और अंगीरस नामक चार घातक बाण छोड़े जिनका प्रतिकार करने के लिए श्री कृष्ण ने व्याव्य, सुइत्र, वसाभ, और मोहन बाण चलाए।
अब श्री कृष्ण ने वैष्णव अस्त्र भगवान शिव की ओर चलाया पर उसको शिवजी ने अपने पाशुपतास्त्र से निष्क्रिय कर दिया।
श्री कृष्ण को तब तक समझ आ चुका था कि भगवान शिव अपने आप के लिए नहीं बल्कि बे मन शोणितपुर की रक्षा हेतु लड़ रहे हैं।
हरिबंश पुराण के मुताबिक तब श्री कृष्ण ने जृंभानास्त का उपयोग कर भगवान शिव को निद्रा में भेज दिया।
इस वाक्य का वर्णन शिवपुराण में भी है जब किसी भी तरह से श्री कृष्ण भगवान शिव का पार नहीं पा रहे थे और श्री कृष्ण के हर अस्त्र के जवाब दे रहे थे तब वही मन में उन्होंने शिव की तपस्या की जिस पर उन्होंने श्रीकृष्ण को भी वर मांगने को कहा और श्री कृष्ण ने कहा कि आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए जिससे मैं आपको परास्त कर सकूं।
भगवान शिव तब मुस्कुराए और उन्होंने श्रीकृष्ण को जृंभानास्त चलाने को बोला। तब श्रीकृष्ण ने वो अस्त्र चला भगवान शिव को निद्रा में भेज दिया।
हरिवंश पुराण और शिव पुराण में बस इस वाक्य में ही थोड़ा अंतर है बाकी पूरी घटना समान ही है।
बाणासुर और कृष्ण का युद्ध
भगवान शिव को ऐसे बेहोश देखकर बाणासुर भी अपने रथ पर सवार हो श्री कृष्ण की ओर बढ़ा और फिर उन दोनों में युद्ध छिड़ गया। बाणासुर ने अपने सहस्त्रो बाहों से विभिन्न अस्त्र-शस्त्र श्रीकृष्ण की ओर चलाएं।
एक-एक को श्री कृष्ण ने अपने बाणों से नष्ट कर दिया। श्री कृष्ण ने जब सुदर्शन चक्र का आह्वान कर बाणासुर पर चला दिया जिसने बाणासुर की चार भुजाओं को छोड़ बाकी 996 भुजाएं काट डाली तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को बाणासुर का सर काटने के लिए छोड़ा।
तब तक भगवान शिव निद्रा से बाहर आ चुके थे और उन्होंने उसको रोक दिया और श्री कृष्ण से बाणासुर को क्षमा कर देने का आग्रह किया।
तब भगवान शिव और श्री कृष्ण ने एक दूसरे को गले से लगाया और युद्ध की समाप्ति की घोषणा की। श्री कृष्ण ने तब आदर सहित भगवान शिव को प्रणाम किया।
बाणासुर ने भी अनिरुद्ध को रिहा कर दिया और अपनी बेटी की शादी अनिरुद्ध से करने को तैयार हो गया और इस तरह बाणासुर का घमंड भी चूर-चूर हो गया।
उस ज्वर के असर से प्रद्युमन और बलराम अभी भी बेहोश पड़े थे तब श्रीकृष्ण ने कुछ मंत्रो का उच्चारण किया और उन दोनों का उपचार किया और दोनों को लेकर श्री कृष्ण द्वारका लौट गए।
इस युद्ध में इन दोनों में किसी की भी हार या जीत नहीं हुई बल्कि धर्म ने अधर्म को परास्त किया था। बाणासुर का शक्तिशाली होने का घमंड तोड़ना अति आवश्यक था। शिव और विष्णु जी कभी भी एक दूसरे को अलग रखकर नहीं देखते दोनों एक दूसरे को अपना आराध्य मानते हैं।
हम महाभारत के ही द्रोण पर्व और भीष्म पर्व को पढे तो उसमें कई बार इन दोनों देवो ने हमेशा कहा है कि हम एक ही हैं। महाभारत में भी श्री कृष्ण और भगवान का रिश्ता एक भक्त और भगवान की तरह ही है। श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं शिव अविनाशी और सर्वशक्तिमान है इसी महाकाव्य में भगवान शिव भी भगवान विष्णु अवतार श्री कृष्ण की कई बार प्रशंसा करते हैं।
तो ये थी जानकारी की भगवान शिव ने बाणासुर को क्या वरदान दिया, कार्तिकेय और प्रद्युम्न युद्ध, क्यों हुआ भगवान शिव और श्री कृष्ण का युद्ध, युद्ध का कारण, बाणासुर और कृष्ण का युद्ध, अंत में युद्ध का परिणाम क्या हुआ। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे। साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते है।