गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद जीवात्मा को यमलोक के मार्ग में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है और इन्हीं बाधाओं में से एक है यमलोक के मार्ग में पड़ने वाली वैतरणी नदी। तो आइये जानेंगे है की वैतरणी नदी कैसी है और पापी आत्माओं को यहाँ किस प्रकार की यातनाओं से होकर गुजरना पड़ता है।
हिन्दू पुराणों और ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ काल से ही पृथ्वी लोक पर जीवन चक्र चला रहा है यानी जिसने भी इस पृथ्वी लोक में जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन मरना ही पड़ता है और ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत अपने साथ यमपुरी ले जाते हैं लेकिन पृथ्वी लोक से यमलोक की यात्रा जीवात्मा के लिए बड़ा ही कठिन होता है जिसका वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है।
बताया गया है की पुण्य आत्मा तो इस नदी को बड़ी ही आसानी से पार कर जाते हैं परंतु पापी जीवात्मा को इस नदी में कई तरह की यातनाओ का सामना करना पड़ता है।
कैसी दिखती है वैतरणी नदी ?
गरुड़ पुराण के धर्म कांड के प्रेत कल्प के अनुसार एक दिन पक्षी श्रेष्ठ गरुड़ भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं कि हे प्रभु मृत्यु लोक और यमलोक के बीच जो वैतरणी नदी स्थित है उससे जीवात्मा का क्या संबंध है और उन्हें नदी में किस तरह की सजा भुगतनी पड़ती है और पापी आत्मा से कैसे बात करते हैं।
तब भगवान कृष्ण ने कहा कि हे गरुड़ यमलोग के मार्ग में स्थित वैतरणी नदी देखने में बड़ी ही भयानक है और जो भी पापी आत्मा मरने के बाद इस नदी से होकर गुजरती है उसे बड़ा ही भयभीत कराती है। यह महा भयानक नदी पीप और रक्त रूपी जल से परिपूर्ण है इतना ही नहीं यह नदी मांस और कीचड़ से भरी हुई है।
यह नदी पापियों को देखकर कई तरह के भैया क्रांत स्वरूप धारण कर लेती है। पापी आत्मा की नदी में प्रवेश करते ही इस नदी का जल पात्र के मध्य में की भांति तुरंत खौलने लगता है। उसका जल कीटाणुओ एवं वज्र के समान सूंड वाले जीवो से व्याप्त है साथ ही इस नदी में घड़ियाल वज्रदन्त तथा इनकी ही जैसे अनेकों हिंसक एवं मांस भक्षण चारों से भरी हुई है।
नदी में जैसे ही पापी आत्मा का प्रवेश होता है वह 12 सूर्य की गर्मी के समतुल्य तपने लगती है उससे उस महा ताप में पापी चिल्लाते हुए करुण विलाप करने लगते हैं। ताप के कारण पापी आत्मा अपनों को पुकारने लगती है और जब कोई उसके पास नहीं आता तो वो उस भयंकर रूप में इधर-उधर भागने लगती है और तब उसे ताप बर्दाश्त नहीं होता तो वह आत्मा उस दुर्गंध पूर्ण जल में डुबकी लगाती है और अपनी आत्मग्लानि से व्यथित होती है।
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वैतरणी नदी में किसे कष्ट मिलता है?
आगे श्री कृष्ण कहते हैं कि हे गरुड़ कुछ जीवात्मायें ऐसी भी होती हैं जिन्हें मृत्यु के पश्चात इसी वैतरणी नदी में रहना पड़ता है जैसे कि जो अपने जीवन काल में आचार्य, गुरु, माता-पिता, एवं अन्य वृद्ध जनों की अवमानना करते हैं उसे इसी महानदी में रहना होता है।
इसके अलावा जो जीवात्मा अपने जीवन काल में अपनी पवित्रता, सुशीला, और धर्म परायण पत्नी का परित्याग करते हैं और उनको सदैव के लिए उसी महा घिनौनी नदी के जल में वास होता है साथी जो जीव आत्मा जीवित रहते हुए अपने स्वामी, मित्र, तपस्वी, स्त्री, बालक, एवं वृद्ध का वध करते है वो इसी महानदी में ही गिरते हैं।
साथ ही आग लगाने वाला, विष देने वाला, झूठी गवाही देने वाला, मध्य पीने वाला, यज्ञ का विध्वंस करने वाला, राज पत्नी के साथ गमन करने वाला, चुगल खोरी करने वाला, कथा में विघ्न करने वाला, स्वयं की दी हुई वस्तु का अपहरण करने वाला, खेत की मेढ़ और सेतू को तोड़ने वाला, दूसरे की पत्नी को प्रदर्शित करने वाला, प्यासी गायों की बावली को तोड़ने वाला, कन्या के साथ व्यभिचार करने वाला, कपिला का दूध पीने वाला, शुद्र तथा मांस भोजी ब्राह्मण मरने के बाद बैतरणी नदी में वास करते हैं।
इन सबके अलावा अहंकारी, पापी, तथा अपनी झूठी प्रशंसा करने वाला, कृतज्ञ गर्भपात करने वाला वैतरणी में निवास करता है।
वैतरणी नदी की यातनाओ से कैसे बचे?
इन पापी जीवात्माओं में जिसने मकर और कर्क की संक्रांति सूर्य, चंद्र ग्रहण संक्रांति, अमावस्या अथवा अन्य पुण्य काल के आने पर श्रेष्ठतम दान दिया हो उसे एक निश्चित समय के के पश्चात इस नदी से यम दूतों के द्वारा निकाल लिया जाता है इसलिए प्राणियों को चाहिए कि वह जीवित रहते दान करें और धर्म का संग्रह करें।
इसके अलावा जो जीव आत्मा जीवित रहते हुए गोदान करता है या काले अथवा लाल रंग को दो काले रंग के वस्त्रों से आच्छादित करके ब्राह्मणों को दान दे देता है उसे भी इस नदी की यातनाओ से मुक्ति मिल जाती है।
हिंदू धर्म में मृत्यु से पहले गोदान कराया जाता है ऐसा माना जाता है कि गोदान करने से मनुष्य उसी गाय की पूंछ पकड़कर उस नदी को पार करता है और उसे सुकर्म के प्रभाव से ऐहेक और पारलौकिक सुख की प्राप्ति होती है।
इसीलिए दोस्तों मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन काल में अधिक से अधिक धर्म का संग्रह करें जिससे कि उसे मृत्यु के बाद किसी तरह का कष्ट ना झेलना पड़े।
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