मृत्यु के बाद तेरहवीं क्यों मनाई जाती है, Significance of Tehravi in Hinduism

आप सभी ने देखा होगा कि हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु हो जाने के बाद उसके मृत शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है और फिर मृत आत्मा की मुक्ति के लिए मृतक के परिवार वालो द्वारा उसकी तेरवीं मनाई जाती है। परंतु क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर तेरहवीं मनाई क्यों जाती है, तेरहवीं से प्रेत आत्मा को क्या फल मिलता है और इसका महत्त्व क्या है। 

मृत्यु के बाद तेरहवीं क्यों मनाई जाती है

तेरहवीं क्यों मनाई जाती है, तेरहवीं का महत्त्व क्या है

आज हम आपको तेरवी के बारे में बताने जा रहे है जिसका वर्णन गरुण पुराण में किया गया है।

गरुड़ पुराण के अनुसार तेरवी मनुष्य जीवन के 16 संस्कारों में अंतिम संस्कार का एक अंग है इसके बिना अंतिम संस्कार की पूर्णता नहीं होती। 

गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि जिस मृत आत्मा के निमित्त तेरवी की क्रिया नहीं होती उसे प्रेतित्व योनी से मुक्ति नहीं मिलती साथ ही यह भी बताया गया कि तेरवी के दिन कम से कम 13 ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराना चाहिए यदि मृतक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी है तो 13 से ज्यादा ब्राह्मणो और आपने सगे सम्बन्धी, रिश्तेदारों और मित्रो को भोजन करा सकते हैं।

तेरहवीं के दिन ब्राह्मणों को भोज करवाने को मृत्यु भोज का नाम दिया गया है।

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गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जब भी किसी की मृत्यु हो जाती है तो मृतक की आत्मा अपने परिवार वालों के आसपास ही भटकती रहती है क्युिक, मृत्यु के बाद मृतक आत्मा में इतना बल नहीं होता कि वह मृत्यु लोग से याम लोग की यात्रा तय कर सके इसीलिए आप सभी ने देखा होगा कि जब भी किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार वालों के द्वारा मृतक आत्मा के निमित्त पिंडदान किये जाते है। 

गरुड़ पुराण की माने तो मृत्यु के बाद 10 दिनों तक जो मृतक के निमित्त पिंडदान किए जाते हैं उसे मृत आत्मा के विभिन्न अंगो का निर्माण होता है और इसी तरह 11 वे और 12 वे दिन शरीर पर मांस सज्जा और त्वचा का निर्माण होता है। 

फिर तेरवे दिन यानी तेरवी को जब मृतक के नाम से पिंडदान किया जाता है तब उसे इससे ही यमलोक तक की यात्रा करने की शक्ति प्राप्त होती है और फिर वह आत्मा यमदूतो के साथ यमलोक के लिए निकल पड़ती है।

गरुड़ पुराण की माने तो मृत्यु लोक से यमलोक तक जाने में मृत आत्मा को एक साल अर्थात बारह महीने का समय लगता है।  

यह भी माना जाता है की मृतक के परिजनों द्वारा इन तेरह दिनों में किया गया पिंडदान ही एक वर्ष तक मृतक आत्मा को भोजन के रूप में काम आता है।

इतना ही नहीं  गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि जिस मृतक आत्मा के नाम से पिंडदान नहीं किया जाता उसे तेरहवीं के दिन यमदूत घसीटते हुए यमलोक की ओर ले जाते हैं और ऐसी आत्मा को यमलोक में बड़ा ही कष्ट पहुंचता है। 

भूखी आत्मा को जब यमदूत द्वारा घसीटा जाता है तब उसके शरीर के कई अंग छिल जाते हैं और इस बीच भी यदि परिवार वाला द्वारा मृतक के निमित्त पिंडदान या फिर अन्नदान नहीं किया जाता तो उसे पूरे रास्ते में इस तरह के कष्ट सहने पड़ते हैं।  

परंतु यदि साल भर के अंदर मृत आत्मा के निमित्त कोई पिंड दान या फिर अन्य दान कर देता है तो उसे यमदूत घसीटना बंद कर देते हैं क्योंकि पिंडदान से आत्मा में बल आ जाता है और वह अपने पांव पर यात्रा करना आरंभ कर देती है।

ignificance of Tehravi in Hinduism

गरुड़ पुराण में आगे बताया गया है की कम से कम 13 ब्राह्मणों को इसलिए भोजन करवाना अनिवार्य है ताकि मृत आत्मा को साल भर भोजन मिल जाए और यह भोजन परिवार वाले अपने स्थिति के हिसाब से करवा सकते हैं। 

गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने यह भी कहा है कि यदि मृत आत्मा के निमित्त कर्ज लेके मृत्यु भोज किया जाए ऐसे में आत्मा को पूर्णता मुक्ति नहीं मिलत उसे यह देखकर कष्ट का अनुभव होता है कि उसके परिवार वाले उसकी वजह से कष्ट के तले दब गए है, इससे अच्छा तो यह होता कि वह अकेले ही कष्ट भोगता। 

इससे आगे गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि यदि कोई मृतक के परिवार को मृत्यु भोज के लिए विवश करता है यानी की क्षमता से अधिक लोगों को भोजन कराने को विवश करता है अथवा उसे मृत्यु भोज के लिए पैतृक संपत्ति को बेचने को कहता है।  

तो ऐसे मनुष्य को यमदूत कभी माफ नहीं करते और जब उसकी मृत्यु होती है तो यमदूत उसे कई तरह की यातनाएं देते हैं और फिर उसे पुनः मृत्युलोक में भेज देते हैं। 

इन सबके अलावा तेरवी के बारे में गरुड़ पुराण में बताया गया है की तेरवी होने के बाद परिवार के लोग भी मृतक के लिए धीरे धीरे शोक करना छोड़ देते हैं जिसकी वजह से वह लोग शोक मुक्त हो जाते हैं और फिर अपने धर्म कर्म में लग जाते हैं जिससे जीवन की गति आगे बढ़ने लगती है। 

जब मृतक की तेरवी हो जाती है और वह यमदूत के साथ यमलोक की यात्रा पर निकल पड़ता है तब वह मन ही मन अपने परिवार वालों की भलाई लिए भगवान से प्रार्थना करता है और बार-बार पीछे लौटने की कोशिश करता है मगर वह लौट नहीं पता और जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता है मृत आत्मा भी अपने परिवार वालों के मोह से मुक्त होने लगती है अर्थात भूलने लगती है। 

इसके अलावा गरुड़ पुराण में बताया है की मृत्यु के बाद तो पिंड दान करने से मृतक के लिए खाने की व्यवस्था हो जाती है लेकिन यम लोग के रास्ते मे उसे प्यास भी लगती है इसीलिए मृतक के पुत्र को चाहिए कि वह अपने पिता के लिए रोज जल तर्पण करें ताकि मृत आत्मा को जल की कमी ना हो। 

तो इसे के साथ खतम होती है यह जानकारी की मृत्यु के बाद तेरहवीं क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है।

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