शनिवार व्रत: शनि पूजन विधि, मंत्र, व्रत कथा, व्रत में क्या खाये, उद्यापन कैसे करे

Shanivar Vrat: शनिदेव का नाम आते ही कहीं ना कहीं मन में भय बैठ जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन में नकारात्मकता का संकेत माना जाता है। शनि की साढ़ेसाती अर्थात साढ़े सात साल बहुत कठिन समय होता है। इस समय में बहुत सी कठिनाइयां और चुनौतियां आती है जिनमें मानसिक और शारीरिक कष्ट सम्मिलित है। 

जब शनिदेव चंद्र राशि पर गोचर से भ्रमण करते हैं तब शनि की साढेसाती आरंभ होती है जिसका प्रभाव शनि देव के राशि में प्रवेश होने से 30 माह पहले और 30 माह बाद तक रहता है। 

यदि सभी ग्रहों से तुलना की जाए तो सूर्य जातक की राशि पर 1 महीने, चंद्रमा सवा दो महीने 1 महीने, मंगल डेढ़ महीने, शुक्र एक महीने, वृहस्पति 13 महीने, और शनि सारे 7 वर्ष तक रहता है। 

शनि की साढ़ेसाती के अंतराल में शनि देव व्यक्ति के कर्मों का पूरा हिसाब ले लेते हैं इसलिए यह आवश्यक नहीं कि शनि की साढ़े साती केवल कष्ट ही लेकर आए। जिन लोगों ने अच्छे कर्म किए होते हैं उनके लिए यह समय  एक पुरस्कार के सामान भी सिद्ध हो सकता है। 

यदि शनि की प्रकोप की बात करें तो यह साधु संतों के लिए भी समान ही रहता है। यदि संत-महात्मा योग के स्थान पर भोग को अपनाते हैं तो शनि की साढ़ेसाती के समय उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ता है। 

वहीं यदि किसी व्यक्ति ने अच्छे कर्म किए होते हैं तो साढ़े साती के समय उसे व्यापार में बहुत लाभ होगा, यदि कोई नौकरी में है तो उसे बहुत अच्छे स्तर पर प्रमोशन मिल सकता है और इसी तरह से भिन्न प्रकार से साढ़ेसाती के समय अच्छे कर्मों का पुरस्कार मिलता है। 

शनिवार का व्रत शनि के प्रकोप से बचने का एक साधारण उपाय बताया गया है यदि किसी पर शनि का प्रभाव बहुत अधिक होने वाला है तो शनिदेव की पूजा और शनिवार की व्रत से उसका प्रभाव कम किया जा सकता है।

शनिवार व्रत पूजा विधि

सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। 

इसके पश्चात पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं 

लोहे से निर्देश शनि देव की प्रतिमा को स्नान कराएं 

अब चावल से 24 दल के कमल बनाएं और शनिदेव की प्रतिमा को स्थापित करें। 

तत्पश्चात काले तिल, काला वस्त्र, सरसों का तेल, पुष्प एवं धूप अर्पित करे।

पूजा के समय शनि के 10 नामों का उच्चारण करें। 

जो इस प्रकार है – कृष्ण, यम, बभु, शनैश्चारा, रौद्रोतको कोणस्य, पिप्पला, पिंगलो, सैरि, मंद। 

अब शनिवार की कथा का पाठ करें। 

इसके पश्चात पीपल के वृक्ष के सूत के धागे से सात बार परिक्रमा करे। 

अब शनि के मंत्र का जप करें।

शनि देव बीज मंत्र

ॐ शं शनैश्चरायै नम:

ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: 

शनि देव मंत्र

 ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

शनिवार व्रत में क्या खाये?

शनिवार के दिन उड़द दाल से बानी खिचड़ी का सेवन करना अच्छा माना गया है।

उरद दाल से बने दही भल्ले भी खा सकते है।

काले त‍िल का सेवन भी उचित है। 

शनिवार को गुलाब जामुन खाने से भी शनिदेव शांत होते हैं।

सफ़ेद रंग की चीजों का सेवन शनिवार व्रत में करना वर्जित है। अगर आप दूध, दही, या छाज पीना है तो उसे में हल्दी, केसर या गुड़ मिला ले। 

आप मैंगो या बादाम शेक, केसर की लस्सी भी पी सकती है।    

शनिवार व्रत का उद्यापन कैसे करे?  

विधिपूर्वक 11 या 51 व्रत पूर्ण होने के बाद आने वाले शुक्ल पक्ष के शनिवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए |

सुबह जल्दी उठ कर पुरे घर में गंगा जल छीट दे। 

विद्वान पंडित को बुला हवन कराये हवन में 108 बार शनि देव के बीज मंत्र का जाप कर आहुति दे।  

जाग्रत शनि मन्दिर में जाकर तिल के तेल से शनिदेव का तेलाभिषेक करे।

सामर्थ्य वा श्रद्धा अनुसार मंदिर में प्रसाद (हलवे व काले चने) वितरण करें या भण्डारा करे।

अगर शनिवार व्रत बीच में छूट जाए तो क्या करे?

अगर किसी कारणवश आपका कोई व्रत छूट जाता है तो आप 11 या 51 शनिवार व्रत जितने का आप ने संकल्प लिया है उतना ही रहिये और छूटे हुए व्रत को अगले शनिवार को कर लीजिये और इसके लिए शनिदेव से क्षमा याचना कर ले।

शनिवार व्रत कथा

एक समय की बात है स्वर्ग लोक में सबसे बड़ा कौन है इस प्रश्न को लेकर 9 ग्रहों के मध्य विवाद हो गया। विवाद चलते-चलते युद्ध की स्थिति में परिवर्तित हो गया। तब सभी देवता देवराज इंद्र के समक्ष पहुंचे और कहा कि- हे इंद्रदेव अब आप ही निर्णय कीजिए कि हम नव ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है। 

इन्द्र इस प्रश्न को सुनकर असमंजस में पड़ गए उन्होंने इस विवाद से बचने के लिए कहा कि पृथ्वी लोक में उज्जैन नामक स्थान पर विक्रमादित्य नाम का राजा है जो न्याय के लिए जाना जाता है वही आपके इस विवाद को सुलझा सकता है। 

इंद्र की आज्ञा का पालन करते हुए नवग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे प्रश्न सुनते ही राजा समझ गए कि इस विषय को बहुत सावधानी के साथ संभालना होगा अन्यथा जिस ग्रह को छोटा बताया वह कुपित हो उठे गा। 

बहुत सोचने के पश्चात राजा ने नव धातुओं के नौ सिंहासनो का निर्माण करवाया यह सिंहासन स्वर्ण, रजत, कासा तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक, व लोहे के थे। इन धातुओं के गुणों के अनुसार ही इनको क्रम में रखा गया। 

तब राजा विक्रमादित्य ने सभी ग्रहों से अपना अपना सिंहासन ग्रहण करने के लिए कहा इस प्रकार शनि को अंतिम सिंहासन प्राप्त हुआ जो कि लोहे का था। तब राजा ने कहां आप सभी ने स्वयं ही अपने प्रश्न को हल कर लिया है। 

जो प्रथम सिंहासन पर विराजमान है वहीं सबसे बड़ा है इस प्रकार शनि देव को सभी ग्रहों में अंतिम स्थान प्राप्त हुआ यह देख शनिदेव कुपित हो उठे और राजा विक्रमादित्य को चुनौती देकर गए कि समय आने पर वे इसका परिणाम अवश्य दिखाएंगे और राजा का सर्वनाश कर देंगे। 

शनिदेव ने कहा कि बड़े से बड़े देवता यहां तक कि भगवान राम और महा ज्ञानी एवं शक्तिशाली रावण भी मेरे प्रकोप से नहीं बचे। तुम अपने इस कृत्य का दुष्परिणाम अवश्य देखोगे और इतना कहकर शनिदेव वहां से चले गए।

समय बीतता गया और जब राजा की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती आई तब शनिदेव घोड़े के व्यापारी का रूप धारण कर अनेक घोड़ो के साथ राजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन पहुंचे। जब राजा तक किसी घोड़े के व्यापारी के नगर में आने का समाचार पहुंचा तब राजा ने अश्वपाल को घोड़े खरीदने के लिए व्यापारी के पास भेजा। 

घोड़ों का मूल्य बहुत अधिक होने के कारण अश्वपाल ने राजा को आकर कीमत बताइ। तब राजा स्वयं गए और बहुत आकर्षक एवं हिस्ट-पुष्ट घोड़े को पसंद किया। घोड़े की गति देखने के लिए राजा घोड़े पर सवार हुए इसके पश्चात घोड़ा बहुत अधिक गति से दौड़ा और दौड़ते दौड़ते हुए एक जंगल में पहुंचा। 

वह वह राजा को गिराकर कहीं अदृश्य हो गया राजा जंगल में इधर-उधर भटकते रहे परंतु उन्हें अपने नगर जाने का रास्ता नहीं मिला खाने पीने के लिए भी राजा के पास कुछ नहीं था और ऐसे ही जंगल में घूमते घूमते उन्हें एक बार एक चरवाहा मिला। राजा ने उससे पानी मांगा जिसके बदले में उन्होंने उसे सोने की अंगूठी दी।  

उस चरवाहे ने राजा को बाहर जाने का रास्ता बताया तब राजा जंगल से निकलकर पास के एक नगर में पहुंचे चलते-चलते वे एक सेठ की दुकान पर पहुंचे और कुछ देर आराम करने के लिए वहां बैठगए। बातचीत होने पर राजा ने बताया कि वे उज्जैन से आए हैं। 

सेठ ने देखा कि जितनी देर राजा उसकी दुकान पर बैठे उसकी बहुत बिक्री हुई सेठ को लगा कि राजा उसके लिए बहुत भाग्यशाली है इसलिए प्रसन्न होकर वह राजा को भोजन कराने के लिए अपने घर ले गया जिस कमरे में बैठकर वो भोजन कर रहे थे वही सामने एक खूंटी पर सोने का हार टंगा हुआ था। 

सेठ राजा को कमरे में छोड़कर कुछ देर के लिए बाहर गया इसी अंतराल में एक विचित्र घटना घटी राजा के देखते-देखते उस हार को उस खूंटी ने निगल लिया। जब सेठ ने वापस कमरे में आकर देखा तो वह हार वहां नहीं था और उसने राजा पर चोरी का आरोप लगा दिया। 

सेठ ने अपने नौकरों से कहां कि इस चोर को बांधकर राजा के पास ले जाया जाए जब उस नगर के राजा द्वारा उस हार के विषय में पूछा गया तब विक्रमादित्य ने कहा कि उस हार को खूंटी निगल गई। यह सुनकर राजा क्रोधित हो था और उसने विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया और राजा के सैनिकों ने हाथ काटने के पश्चात विक्रमादित्य को सड़क पर फेंक दिया। 

तब एक तेली ने अपने कोल्हू पर उन्हें काम दिया विक्रमादित्य बैठे-बैठे बैलो को हाकते थे। इससे तेली का कोल्हू भी चलता रहा और विक्रमादित्य को भोजन मिलता रहा इस प्रकार विक्रमादित्य के जीवन के साढ़े सात साल बीत गए। 

वर्षा ऋतु के आगमन पर राजा विक्रमादित्य एक बार मल्हार गा रहे थे तभी नगर के राजा की पुत्री राजकुमारी मोहिनी उस रास्ते से गुजरी उसने विक्रमादित्य के गाने की आवाज सुनी जिसे सुनकर वह मोहित हो गई उसने अपनी दासी से कहा कि जो मल्हार गा रहा है उसे बुलाकर लाओ। दासी ने वापस आकर बताया कि जो व्यक्ति का रहा था वह अपंग है इसलिए नहीं आ सका। 

विक्रमादित्य के अपंग होने की बात जानते हुए भी राजकुमारी इतनी मोहित हो गई कि उसने उनसे विवाह करने का निश्चय कर लिया जब यह बात मोहिनी ने अपने माता-पिता को बताई तब राजा और रानी बड़ी समस्या में पड़ गए उन्होंने उसे समझाने का भी प्रयास किया कि तेरे भाग्य में तो किसी राजा का होना लिखा है और तू एक अपंग से विवाह करना चाहती है। तेरा जीवन नष्ट हो जायेगा परन्तु मोहिनी ने बहुत हठ किया यहाँ तक की उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया। 

अंततः राजा को विवश होकर अपनी पुत्री का विवाह विक्रमादित्य के साथ ही करना पड़ा। इसके पश्चात विक्रमादित्य और मोहिनी उस तेली के घर में ही रहने लगे। विवाह की रात ही शनि देव ने विक्रमादित्य को दर्शन दिए और कहा तुम्हें मेरा अपमान करने का दंड प्राप्त हुआ है। अब तो तुमने मेरा प्रकोप भली-भांति देख लिया है। 

राजा ने शनिदेव से क्षमा मांगी और प्रार्थना की कि हे शनिदेव जितने कष्ट आपने मुझे दिए हैं उतने कष्ट किसी को मत देना। शनिदेव ने कहा कि मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूं और जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन मेरा व्रत करेगा उस पर मेरी कृपा बनी रहेगी। 

जब विक्रमादित्य सुबह उठे तो उनके हाथ पांव वापस आ चुके थे यह देखकर वो बहुत प्रसन्न हुए परंतु मोहिनी अत्यंत अचंभित हुई। तब राजा ने उसे अपना परिचय दिया और आरंभ से पूरी व्यथा बताई कुछ समय में ही यह बात पूरे नगर में फैल गई। 

जब सेठ को यह बात पता चली तो वो तुरंत तेली के घर गया और राजा से क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है यह तो शनिदेव का प्रकोप था तुम तो केवल अपनी भूमिका निभा रहे थे। तब से फिर से राजा को अपने घर ले गया और भोजन कराया और इस बार भी एक विचित्र घटना घटी देखते-देखते सेठ के घर की कुटी ने जो हार निकला था वह हार वापस अपने स्थान पर आ गया। 

अपने कुकृत्य का प्रायश्चित करने के लिए सेठ ने अपनी पुत्री का विवाह राजा के साथ कर दिया और बहुत से धन एवं आभूषण दिए राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों पत्नियों के साथ अपने नगर उज्जैन पहुंचे वहां उनका बहुत ही हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया गया।  

राजा विक्रमादित्य ने घोषणा की कि शनिदेव ही सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ है राजा ने सभी से कहा कि प्रत्येक नगरवासी प्रत्येक शनिवार को शनिदेव का व्रत करेगा और उनकी पूजा अर्चना की की जाएगी इस घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए इसके बाद से सभी नगर वासी शनिवार को शनिदेव का व्रत एवं पूजा करने लगे और उज्जैन नगरी में समृद्धि एवं प्रसन्नता का आगमन हुआ। 

तो यह तो थी शनिवार व्रत की कथा। 

एक बात का विशेष ध्यान रहे कि इस दिन घर में लोहे का कोई सामान ना लाएं किसी भी प्रकार की लोहे की वस्तु का क्रय शनिवार के दिन वर्जित है 

इसके अतिरिक्त पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनि की साढ़ेसाती के समय हनुमान जी की भक्ति करने से बहुत लाभ होता है क्योंकि शनि देव ने उनको वचन दिया था कि हनुमान भक्तों पर शनि की वक्र दृष्टि नहीं पड़ेगी। 

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