आज हम पूतना के वध की कथा जानेंगे की पूतना कौन थी, वह पिछले जन्म में कौन थी, वह श्री कृष्ण को क्यों अपना दूध पिलाना चाहती थी, भगवान कृष्ण ने क्यों किया पूतना का वध, पूतना वध के समय नंदबाबा कहा थे।
नंदबाबा बढ़े मनस्वी और उदार थे पुत्र का जन्म होने पर तो उनका हृदय विलक्षण आनंद से भर गया उन्होंने वेदग्य ब्राह्मणों को बुलाकर स्वस्तिवाचन और अपने पुत्र का जातकर्म संस्कार करवाया। उन्होंने ब्राह्मणों को वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित 2,00,000 गाय दान की गोकुल में श्री कृष्ण का जन्म उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया।
कुछ दिनों के बाद नंद बाबा ने गोकुल की रक्षा का भार दूसरे गोपो को सौंप दिया और कंस का वार्षिक कर चुकाने के लिए मथुरा चले गए जब वसुदेव जी को यह मालूम हुआ कि हमारे भाई नंद जी मथुरा आए हैं तब वे जहां नंदबाबा ठहरे हुए थे वहां गए।
वसुदेव जी को देखते ही नंद जी सहसा उठकर खड़े हो गए उन्होंने बड़े प्रेम से अपने प्रियतम वसुदेव जी को दोनों हाथों से पकड़ कर ह्रदय से लगा लिया। नंद बाबा जी ने वसुदेव जी का बड़ा स्वागत सत्कार किया वे आदर पूर्वक आराम से बैठ गए।
कुछ समय उपरांत वसुदेव जी ने कहा था कि भाई तुमने राजा कंस को उनका सालाना कर तो चुका दिया हम दोनों मिल भी चुके अब तुम्हे यहां अधिक दिन नहीं देना चाहिए क्योंकि आजकल गोकुल में बड़े-बड़े उत्पात हो रहे हैं।
जब वसुदेव जी ने इस प्रकार कहा तब नंदबाबा उनसे अनुमति लेकर बैलों से जूते हुए छकड़ो पर सवार होकर गोकुल की ओर चल दिए। नंद बाबा जब मथुरा से चले तब रास्ते में विचार करने लगे की वसुदेव जी का कथन कभी झूठ नहीं हो सकता तब उन्होंने मन ही मन “भगवान की शरण है वे हीं रक्षा करेंगे” ऐसा निश्चय किया।
पूतना कौन थी?
पूतना एक विशाल राक्षसी थी और कंस की दासी थी उसका एक ही काम था बच्चों को मारना। कंस की आज्ञा से वे नगर, ग्राम, और अहिरो की बस्तियों के बच्चों को मारने के लिए घूमा करती थी। पूतना आकाश मार्ग से चल सकती थी और अपनी इच्छा से अपना रूप बना लेती थी।
वही आदि पुराण में पूतना को राक्षस कैतवी की पुत्री एवं कंस की पत्नी की सखी बताया है।
पूतना पूर्व जन्म में कौन थी?
पूर्वजन्म में पूतना राजा बलि की बेटी जिसका नाम रत्नमाला था एक राजकन्या थी। राजा बलि के यहाँ जब भगवान वामन पधारे तो उनका रूप सौन्दर्य देखकर रत्नमाला का ममत्व जाग उठा उसके मन में विचार काश, मुझे ऐसा ही बेटा हो उसे अपने ह्रदय से लगाके दुग्धपान कराती। परंतु जब वामन विराट हो गया और उसने बलि राजा का सर्वस्व छीन लिया तो वह क्रोधित हो गई और सोचने लगी अगर ऐसा मेरा पुत्र होता तो मैं इसे अपने दुग्ध में विष दे देती।
बाद में वही राजकन्या रत्नमाला पूतना हुई और भगवान के बर्दान स्वरुप उसने श्री कृष्ण को दूध भी पिलाया और जहर भी। अंत में उसका उद्धार कर भगवान ने उसे अपने स्वधाम भेज दिया।
भगवान श्री कृष्णा ने किया पूतना का वध
एक दिन नंद बाबा के गोकुल के पास आकर उसने माया से अपने को एक सुंदर युवती बना लिया और गोकुल के भीतर घुस गई उसने बड़ा सुंदर रूप बनाया था। वह अपनी मधुर मुस्कान और कटाक्ष पूर्ण चितवन से व्रज वासियों का चित चुरा रही थी।
पूतना बालकों के लिए ग्रह के समान थी इधर उधर बालकों को ढूंढती हुई नंद बाबा के घर में घुस गई। वहां उसने देखा कि बालक श्रीकृष्ण दुष्टों के काल है और उन्होंने अपने प्रचंड तेज को छुपा रखा है। भगवान श्री कृष्ण चर, अचर सभी प्राणियों की आत्मा है इसीलिए उन्होंने उसी क्षण जान लिया कि ये बच्चों को मार डालने वाला पूतना है और अपने नेत्र बंद कर लिए।
भगवान श्री कृष्ण को पूतना ने अपनी गोद में उठा लिया पूतना का ह्रदय तो बड़ा कुटिल था किंतु ऊपर से बहुत मधुर और सुंदर व्यवहार कर रही थी। देखने में वह एक भद्र महिला के समान जान पड़ती थी इसीलिए रोहिणी और यशोदा ने उसे घर के भीतर आई देखकर भी कोई रोक-टोक नहीं कि चुपचाप खड़ी खड़ी देखती रही।
इधर भयानक राक्षसी पूतना ने श्रीकृष्ण को अपनी गोद में लेकर उनके मुंह में अपना स्तन दे दिया जिसमें बड़ा भयंकर और किसी प्रकार भी पच ना सकने वाला विष लगा हुआ था। भगवान ने क्रोध में भर अपने दोनों हाथों से उसके स्तनों को जोर से दबा कर उसके प्राणों के साथ उसका दूध पीने लगे।
अब तो पूतना के प्राणो के आश्रय भूत सभी मर्म स्थान फटने लगे वह पुकारने लगी अरे छोड़ दे बस कर, वह बार-बार अपने हाथ और पैर पटक पटक कर रोने लगी। इस प्रकार पूतना के स्तनों में इतनी पीड़ा हुई कि वह अपने आप को छुपा ना सकी और राक्षसी रूप में प्रकट हो गई। उसके शरीर से प्राण निकल, गए मुंह फट गया वह बाहर गोष्ट में आकर गिर पड़ी।
पूतना के शरीर ने गिरते-गिरते भी 6 कोश के भीतर के वृक्षों को कुचल डाला था। पूतना का शरीर बड़ा भयानक था पूतना के उस शरीर को देखकर सब के सब ग्वाल और गोपी डर गए।
जब गोपियों ने देखा कि बालक श्रीकृष्ण उसकी छाती पर निर्भर खेल रहे हैं तब वे बड़ी घबराहट और उताबली के साथ झटपट वहां पहुंच गई तथा श्री कृष्ण को उठा लिया। तब गोपियों ने प्रेम पाश में बंध कर भगवान श्री कृष्ण की रक्षा की। माता यशोदा ने अपने पुत्र को स्तन पिलाया और फिर पालने में सुला दिया।
इसी समय नन्द बाबा और उनके साथी गोप मथुरा से गोकुल में पहुंचे। उन्होंने ने पूतना का भयंकर शरीर देखा तब वे आश्चर्य चकित हो गए वे कहने लगे ये तो बड़े आश्चर्य की बात है अवश्य ही वासुदेव रूप में किसी ऋषी ने जन्म ग्रहण किया है अथवा संभव है वसुदेव जी पूर्व जन्म में कोई योगेश्वर रहे हों क्योंकि उन्होंने जैसा कहा था वैसा ही उत्पाद यहां देखने में आ रहा है।
तब तक ब्रज वासियों ने कुल्हाड़ी से पूतना के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर डाले थे और गोकुल से दूर ले जाकर लकड़ियों पर रखकर जला दिया जब उसका शरीर जलने लगा तब उसमें से ऐसा धुआं निकला जिसमें से अगर कि सुगंध आ रही थी क्यों ना हो भगवान ने उसका दूध जो पी लिया था जिससे उसके सारे पाप तत्काल ही नष्ट हो गए थे।
पूतना एक राक्षसी थी लोगों के बच्चों को मार डालान और उनका खून पी जाना यही तो उसका काम था। भगवान को भी उसने मार डालने की इच्छा से ही स्तन पिलाया था फिर भी उसे वह परम गती मिली जो सत पुरुषों को मिलती है।
नंद बाबा ब्रज में पहुंचे वहां गोपो ने उन्हें पूतना के आने से लेकर मरने तक का सारा वृत्तांत कह सुनाया। वे लोग पूतना कि मृत्यु और श्री कृष्ण के शाकुशल पूर्वक बचने की बात सुनकर आश्चर्य चकित हुए। नंद बाबा ने मृत्यु के मुख से बचे हुए अपने लाल को गोद में उठा लिया और मन ही मन बहुत आनंदित हुए।
यह पूतना मोक्ष भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत लीला है जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक इसका श्रवण करता है उसे भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम प्राप्त होता है।
तो ये थी जानकारी पूतना कौन थी, वह पिछले जन्म में कौन थी, वह क्यों श्री कृष्ण को अपना दूध पिलाना चाहती थी, भगवान कृष्ण ने क्यों किया पूतना का वध, पूतना वध के समय नंदबाबा कहा थे। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे, और लेटेस्ट अपडेट के लिए हमें TELIGRAM में join करे।
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