भगवान दत्तात्रेय शीग्र प्रसन्न होने वाले देव की साक्षात मूर्ति कहे जाते हैं इनके पिता अत्रि ऋषि और माता अनुसूया थी। इस अवतार में भगवान ने तीन मुख रखें परम भक्त वत्सल दत्तात्रेय भक्तों के स्मरण करते हैं उनके पास पहुंच जाते हैं इसीलिए इन्हे स्मृतिगामी भी कहा जाता है।
दत्तात्रेय विद्या के परम अचार्य हैं भगवान नारायण के अवतारों में इन्होंने भी श्री कृष्ण की तरह ही सुदर्शन चक्र धारण किया था। कहीं कहीं दत्तात्रेय जी को ब्रह्मा, विष्णु, और शिव जी का संयुक्त अवतार भी माना गया है। तो आइए विस्तार से जानते हैं इनके बारे में।
भगवान दत्तात्रेय कौन है
श्रीमद भागवत पुराण प्रथम अध्याय 3 में भगवान के सम्पूर्ण अवतारों का वर्णन किया गया है। अनुसूया के वर मांगने पर 6ठें अवतार में वे अत्री की संतान दत्तात्रेय जी हुए। इस अवतार में उन्होंने अलर्क एवं प्रह्लाद आदि को ब्रम्ह ज्ञान का उपदेश दिया था।
कैसे हुआ भगवान दत्तात्रेय का जन्म?
आगे भागवत पुराण के ही स्कन्द 3 में ही दत्तात्रेय जी के बारे में और भी विस्तार से बताया गया है इस स्कन्द में विदुर जी श्री मैत्रेय जी से पूछते हैं कृपया यह बतलाइए की जगत की उत्पत्ति स्थिति और अंत करने वाले इन सर्वश्रेष्ठ देवो ने अत्रि मुनि के यहां क्या करने की इच्छा से अवतार लिया था।
श्री मैत्रेय जी ने कहाँ जब ब्रह्मा जी ने ब्रम्ह ज्ञानिओ में श्रेष्ठ महर्षि अत्री को सृष्टि रचने की आज्ञा दी थी तब वे अपनी सहधर्मिणी के सहित तप करने के लिए रिक्छ नामक कुलपर्वत पर गए थे उस वन में वे मुनि श्रेष्ठ प्राणायाम के द्वारा चित को वश में करके 100 वर्ष तक एक ही पैर पर खड़े रहे।
उस समय वह मन ही मन यही प्रार्थना करते थे कि जो कोई संपूर्ण जगत के ईश्वर हैं मै उनकी शरण में हूं वे मुझे अपने ही समान संतान प्रदान करें। तब ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों जगतपति उनके आश्रम पर आए उन तीनों का एक ही साथ प्रादुर्भाव होने से अत्रि मुनि का अंतरण प्रकाशित हो उठा।
उन्होंने एक पैर खड़े-खड़े ही उन दिव्य देवों को देखा और फिर अर्ग, पुष्पा आदि पूजन की सामग्री हाथ में ले उनकी पूजा की और बोले मैं आपको प्रणाम करता हूं कहिए मैंने जिन को बुलाया था आप में से वे कौन महानुभाव है क्योंकि मैंने तो संतान प्राप्ति की इच्छा से केवल एक सुरेश्वर भगवान का ही चिंतन किया था फिर आप तीनों ने यहां पधारने की कृपा कैसे कि आप लोग कृपा करके मुझे इसका रहस्य बतलाइए।
अत्रि मुनि के वचन सुनकर देवताओं ने कहां ब्राह्मण तुम सत्य संकल्प हो अतः तुमने जैसा संकल्प किया था वही होना चाहिए उससे विपरीत कैसे हो सकता है तुम जिस जगदीश्वर का ध्यान करते हो वह हम तीनों ही हैं। प्रिय महाऋषे तुम्हारा कल्याण हो तुम्हारे यहां हमारे ही अंश रूप तीन जगह विख्यात पुत्र उत्पन्न होंगे और तुम्हारे सुंदर यश का विस्तार करेंगे।
उन्हें इस प्रकार अभीष्ठ वर देकर उनके देखते ही देखते वे तीनों सुरेश्वर अपने अपने लोगों को चले गए।
ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा
विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय जी और
महादेव जी के अंश से दुर्वासा ऋषि
अत्री के पुत्र रूप में प्रकट हुए और उनके जन्म का संपूर्ण वृतांत हमें विस्तार से मार्कंडेय पुराण में मिलता है दोनों पुराणों में केवल वरदान मिलने में अंतर है और वह कल्पभेद के कारण आता है।
का संपूर्ण वृतांत हमें विस्तार से मार्कंडेय पुराण में मिलता है दोनों पुराणों में केवल वरदान मिलने में अंतर है और व्यक्ति के कारण आता है
मार्कंडेय पुराण के अनुसार देवो का एक महान कार्य करने के उपरांत देवों ने कहां कि वह उन्हें वर देना चाहते हैं अपनी इच्छा अनुसार वर मांगो तब अनुसूया जी बोली यदि पितामह और देवता लोग मुझे वर देना चाहते हैं तो ब्रह्मा, विष्णु, और शिव मेरे पुत्र कहलाए और मैं अपने पति सहित योग को प्राप्त हो क्लेश से मुक्त हो जाऊं।
अनुसूया जी का यह वचन सुनकर ब्रह्मा, विष्णु, और शिव आदि देवता एवमस्तु कहकर अपने-अपने स्थानों पर चले गए।
बहुत समय व्यतीत होने पर भगवान अत्रि और उनकी पत्नी के यहां सर्वप्रथम ब्रह्मा जी के तेज से रजोगुण युक्त पहला पुत्र हुआ जो सोम कहलाए।
तत्पश्चात सतोगुण से युक्त भगवान विष्णु दत्तात्रेय जी के रूप में अत्रि मुनि के शरीर से उत्पन्न हुए।
महादेव जी के अंशारूप तमोगुण से युक्त क्रुद्ध होकर दुर्वासा जी सातवें दिन ही अपनी माता के उदर से निकल आए थे।
एक दिन योगी दत्तात्रेय जी मुनिकुमारों का साथ छोड़ने के लिए तलाब में उनके साथ स्नान करने के लिए गए और उसमें बहुत काल तक छिप गए परंतु मुनि कुमार ने भी उनका साथ नहीं छोड़ा और उनका दर्शन पाने के लिए तालाब किनारे ही खड़े रहे।
तब दत्तात्रेय जी एक अति सुंदर स्त्री के साथ तालाब से निकले उन्होंने सोचा कि मेरे साथ स्त्री देखकर ये मुनि कुमार मुझे छोड़ जाएंगे और फिर मैं यहां अकेला रहूंगा फिर भी उन्होंने दत्तात्रेय जी का साथ ना छोड़ा।
जब दत्तात्रेय जी उस स्त्री के साथ मध्यपान कर गीत वाध्य आदि में हुए तो भोग संसर्ग से दूषित होने के कारण मुनि कुमारो ने उन्होंने उन्हें छोड़ दिया योगीश होने के कारण वारुणी पीते हुए भी वह दोष प्राप्त नहीं हुए। दत्तात्रेय जी मदिरा पीते हुए भी स्त्री सहित तपस्या करने लगे।
श्री दत्तात्रेय से जुड़ी पौराणिक कहानी
एक समय देवताओं और दैत्यों का बड़ा भीषण युद्ध हुआ देवों के सेनापति इंद्र थे और यह युद्ध एक दिव्य वर्ष तक चला जिसमें देवताओं की पराजय हो गई है सभी देवी देवताओं की सेना के नाश की अभिलाषा से देवता गण दैत्यों से हार कर बृहस्पति जी की शरण में गए। बृहस्पति जी बोले महात्मा अत्री के पुत्र तपोधन दत्तात्रेय जी का आचरण यद्यपि क़ुदसित मालूम होता है परंतु उनको तुम संतुष्ट करने के योग्य हो यह दैत्यों के विनाश के लिए वरदान देंगे।
देवता गण दत्तात्रेय जी के आश्रम गए और वहां वे लक्ष्मी अपनी पत्नी सहित आश्रम में विराजमान थे दत्तात्रेय जी ने उनसे उनके वहां आने की अभिलाषा पूछी तब देवताओं ने उनको सब बताया।
इस पर दत्तात्रेय जी बोले हे देवताओं सब असुरो को युद्ध करने के लिए यहां बुलाओ मेरे दृष्टिपात से उन राक्षसों का बल और तेज क्षीण हो जाएगा और मुझे देखने से वे नाश को प्राप्त होंगे।
दत्तात्रेय जी का यह वचन सुनकर देवताओं ने दैत्यों को युद्ध करने के लिए ललकारा फिर दत्तात्रेय जी के आश्रम में शरण ले ली। दत्तात्रेय जी की दृष्टिपात से दैत्य निश्तेज तथा पराक्रमहीन हो गए उसी समय देवताओ ने उनका वध कर डाला।
भगवान दत्तात्रेय ने दिया कार्तवीर्यार्जुन को वरदान
दत्तात्रेय जी द्वारा कार्तवीर्यार्जुन को शक्तिशाली वरदान मिले थे कार्तवीर्यार्जुन ने मांगा था कि मुझे वह सिद्धि प्रदान कीजिए जिससे मैं प्रजा का पालन करू और अधर्म में प्राप्त ना हू, दूसरों की रक्षा करने में तथा समर में मेरी कोई समानता ना कर सके, मेरी बलवती एक सहस्त्र भुजाएं हो, भूमि, पाताल, समुद्र आदि में मै अकेला ही किसी भी शत्रु से कम ना हो, मेरे राष्ट्र में कभी धन का नाश ना हो और आपने मेरी शुद्ध भक्ति हो।
दत्तात्रेय जी ने बोला तुमको सब प्राप्त होंगे और तुम चक्रवर्ती राजा होंगे इन्हीं के आविर्भाव की तिथि दत्तात्रेय जयंती कहलाती है भगवान दत्तात्रेय जी के नाम पर दत्त संप्रदाय दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है।
तो ये थी जानकारी की भगवान दत्तात्रेय किसके अवतार थे, उनका जन्म कैसे हुआ, श्री दत्तात्रेय से जुड़ी पौराणिक कहानी, भगवान दत्तात्रेय ने दिया कार्तवीर्यार्जुन को वरदान। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे, साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते है।
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श्री हरि स्त्रोतम, हिन्दी अनुवाद सहित