Makar Sankranti: जैसा की सर्व विदित है की भारत एक धर्म प्रधान देश है, और कहां भी गया है की अनेकता में एकता भारत की विशेषता है। भारत में सभी त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लाश और धूम-धाम से मनाये जाते है। इन्ही त्यौहारो में से एक प्रमुख त्यौहार ‘मकर संक्रांति’ भी है। तो आइये विस्तार से जानते है की ‘मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है’, और इसका महत्व क्या है।
मकर संक्रांति क्या है और क्यों मनाई जाती है ?
सूर्य देवता के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को संक्रांति कहते हैं।
एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय सौर मास है। सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला, मकर महत्वपूर्ण हैं।
मकर संक्रांति 2023 में कब है ?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार भगवान सूर्य 14 जनवरी 2023 को रात 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे।
15 जनवरी को उदया तिथि प्राप्त हो रही है। ऐसे में इस वर्ष 15 जनवरी 2023 को मकर संक्रांति मनाई जाएगी
मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त 2023 (Makar Sankranti Muhurat 2023)
मकर संक्रांति की शुरुआत 14 जनवरी 2023 को रात 08:43 से होगी।
मकर संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त 15 जनवरी को सुबह 6:47 से शुरू होगा, जो शाम 5:40 पर समाप्त हो जायेगा।
मकर संक्रांति का महत्व
सनातन धर्म के अनुसार सूर्य दक्षिणायन को देवताओ की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। सूर्य के उत्तरायण को देवताओ का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।
इस दिन जप, तप, ध्यान, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रिया कलापो का विशेष महत्व है।
ऐसी मन्यता है की इस दिन किया गया दान, पुण्य सौ गुना बढ़ कर प्राप्त होता है।
इस अवसर पर पवित्र नदियों में स्न्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है, इस पर्व पर, तीर्थराज प्रयाग और गंगा सागर में स्नान को, महास्नान की संज्ञा दी गई है।
इस पवित्र त्योहार पर गुड़ और तिल लगाकर गंगा, नर्मदा आदि पवित्र नदियों में स्नान करना फलदायक माना गया है।
सूर्य सभी राशियो को प्रभावित करते है, किन्तु मकर राशि में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। मकरसंक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर माना जाता है।
प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतना एवं कार्य सक्ति में वृद्धि होति है, यह जान कर और ऐसा मान कर भारत वर्ष में लोगो द्वारा अनेके और विविध रूपों में सूर्य देव की आराधना और उपासना कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
मकर संक्रान्ति का पौराणिक महत्व
ऐसा कहा जाता है की है कि इस दिन भगवान सूर्य स्वयं अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं। जैसा की शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
महाभारत काल में बाणों की सय्या में लेटे भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था।
इस दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं, जिसे हम गंगा सागर के नाम से जानते है।
मकर संक्रांति का राशि फल
मकर संक्रांति का राशि फल निम्नानुसार है :-
1. मेष – सिद्धि
2. वृष – पुण्य लाभ
3. मिथुन – परेशानी
4. कर्क – सम्मान
5. सिंह – भय
6. कन्या – ज्ञान प्राप्ति
7. तुला – तनाव
8. वृश्चिक – धन लाभ
9. धनु – सुख
10. मकर – यश
11. कुंभ – कष्ट
12. मीन – लाभ
- मकर संक्रांति का वाहन – व्याघ्र (बाघ)
- मकर संक्रांति वस्त्र – पीत (पीला)
- मकर संक्रांति का पात्र – रजत (चांदी)
- मकर संक्रांति का आगमन – पश्चिम दिशा
- मकर संक्रांति का गमन – पूर्व दिशा
- मकर संक्रांति पर दान – तिल, कम्बल, मच्छरदानी आदि
मकर संक्रांति भारत में कैसे मनाई जाती है ?
महाराष्ट्र :
लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं और कहते है – “तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो”। इस दिन महिलाए आपस में गुड़, तिल, हल्दी और रोली-चन्दन बाँटती हैं।
गुजरात और राजस्थान :
इन दोनों राज्यों में इसे उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है, इस दिन पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है।
गुजरात के अहमदाबाद शहर में, हमारे देश का सबसे बड़ा पतंग महोत्सव आयोजित किया जाता हैं। इस दिन पूरा आसमान रंग-बिरंगे पतंगों से भरा दिखाई देता है।
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ सौभाग्य सूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजा पाठ और संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।
हरियाणा और पंजाब :
इन दोनों राज्यों में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होने के बाद आग जलाकर सभी अग्निदेव की पूजा करते है और, तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की अग्नि में आहुति दी जाती है।
उत्तर प्रदेश :
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। सूर्य देवता की पूजा की जाती है।
इस दिन चावल और दाल की खिचड़ी खाई तथा दान की जाती है।
इलाहाबाद में जहाँ गंगा, यमुना व सरस्वती तीनो नदियों का संगम होता है, वहाँ प्रत्येक वर्ष एक माह तक चलने वाले मेला का आयोजन किया जाता है। जो माघ मेला के नाम से प्रचलित है।
बिहार :
यहाँ इसे खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल, तिल,चावल, उड़द, चिवड़ा आदि दान करने का विशेष महत्त्व है।
तमिलनाडु :
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिनो तक मनाते हैं। पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला किसानो का प्रमुख पर्व है।
इस दिन गुड़ और चावल की खीर बनाकर सूर्य देवता को भोग लगाया जाता है इस प्रसाद को ही पोंगल कहते है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।
पश्चिम बंगाल :
बंगाल में हुगली नदी पर हर वर्ष गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है। इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की भी प्रथा है।
असम :
यहाँ मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।
इस आर्टिकल में हमने विस्तार से बताने की कोशिश की है – ‘मकरसंक्रांति क्यों मनाई जाती है’, और इसका महत्व क्या है। अगर आपको यह अच्छी लगी हो तो इसे अपने तक ही सीमित ना रखें बल्कि अपने दोस्तों एवं प्रियजनों के साथ भी शेयर करें और लेटेस्ट अपडेट के लिए हमारे TELIGRAM चैनल को join करे।