श्री कृष्ण भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार थे महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण एक अति बलशाली अलौकिक योद्धा थे। आज हम भागवत पुराण और महाभारत का संज्ञान लेकर जानेंगे कि श्री कृष्ण और बलराम जी की मृत्यु कैसे हुई थी, और मृत्यु उपरांत उनके शरीर का क्या हुआ।
बलराम जी की मृत्यु कैसे हुई? (How did Balaram die in Hindi)
प्रद्युमन, सम्भ, और अनिरुद्ध के मारे जाने के उपरांत श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम जी से मिलने के लिए निकले जो उस समय जंगल के बाहरी छोर पर विराजमान थे। बलराम जी ने समुद्र तट पर बैठकर एकाग्र चित्त से परमात्मा का चिंतन करते हुए अपनी आत्मा को आत्म स्वरूप में ही स्थिर कर लिया और मनुष्य शरीर छोड़ दिया।
श्री कृष्ण ने वहां देखा कि बलराम जी योग मुद्रा में लीन है और तभी उनके मुख से विशालकाय सर्प निकला जिसके हजार सिर थे वह पर्वत जितना बड़ा था श्री कृष्ण ने उस सर्प को समुद्र में जाते हुए देखा। इस प्रकार शेषनाग के अवतार बलराम जी अपना शरीर त्याग क्षीरसागर में चले गए।
श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई? (How did Krishna die in Hindi)
बलराम जी के प्राण त्याग देने के उपरांत श्री कृष्ण जानते थे कि अब सब समाप्त हो चुका है। वे कुछ देर वन में विचरते रहे और फिर वे एक पीपल के पेड़ के तले जाकर चुपचाप धरती पर ही बैठ गए।
श्री कृष्ण उस समय अपना चतुर्भुज रूप धारण कर रखा था और समस्त दिशाओं को अंधकार रहित प्रकाशमान कर रहे थे उस समय भगवान अपनी दाहिनी जांग पर अपना बांया चरण रखकर बैठे हुए थे उनका लाल-लाल तलवा रक्त कमल के समान चमक रहा था।
तभी वहां से जरा नामक एक बहेलिया गुजर रहा था उसे दूर से श्री कृष्ण का लाल लाल तलवा हिरण के मुख के समान जान पड़ा उसने उसे सचमुच हिरण समझ कर उसे अपने बाण से भेद दिया जब वह पास आया तो उसने देखा कि अरे यह तो चतुर्भुज पुरुष है।
अब तो वह अपराध कर चुका था इसलिए डर के मारे कांपने लगा और श्री कृष्ण के चरणों पर सिर रखकर धरती पर ही गिर पड़ा उसने श्री कृष्ण से कहां कि हे मधुसूदन मैंने अनजाने में यह पाप किया है कृपया आप मेरा अपराध क्षमा कीजिए या मुझे अभी के अभी मार डालीये क्योंकि मर जाने पर मैं फिर कभी आप जैसे महापुरुष का ऐसा अपराध ना करूंगा।
इस पर श्री कृष्ण ने कहां हे जरे तु डर मत यह तो तूने मेरे मन का ही काम किया है जा मेरी आज्ञा से तू उस स्वर्ग में निवास कर जिसकी प्राप्ति बड़े-बड़े पुण्यवानो को होती है।
इसके बाद श्री कृष्ण का सार्थी दारुक उनके स्थान का पता लगाते हुए वहां पहुंचा उन्हें देखकर दारूक के हृदय में प्रेम की बाढ़ आ गई और नेत्रों से आंसू बहने लगे वे रथ से कूदकर भगवान के चरणों में गिर पड़ा वहा दारूक के सामने ही भगवान का गरुड़ ध्वज रथ, पताका और घोड़ों के साथ आकाश में उड़ गया। उसके पीछे-पीछे भगवान के दिव्य आयुध भी चले गए।
यह सब देखकर दारूक के आश्चर्य की सीमा न रही तब श्री कृष्ण ने दारूक से कहां अब तुम द्वारका चले जाओ और वहां यदुवंशियों के पारस्परिक संहार, भैया बलराम जी के परम गती, और मेरे स्वधाम गमन की बात कहो उनसे कहना कि अब तुम लोगों को द्वारका में नहीं रहना चाहिए मेरे ना रहने पर समुद्र उसको डूबा देगा इसलिए सभी द्वारिकावासी अपनी धन-संपत्ति, कुटुंब, और माता-पिता को लेकर इंद्रप्रस्थ चले जाएं।
दारूक के चले जाने पर ब्रह्माजी, शिव-पार्वती, इन्द्र आदि लोकपाल, बड़े-बड़े ऋषि मुनि, यक्ष, राक्षस, अप्सराये अथवा मैत्रादि आदि ब्राम्हण भगवान श्रीकृष्ण के परम धाम प्रस्थान को देखने के लिए वहां उत्सुकता से आये उनके विमानों से सारा आकाश सा भर गया और वे बड़ी भक्ति से भगवान पर पुष्पों की वर्षा कर रहे थे।
श्री कृष्ण ब्रम्हा जी और अपने विभूति स्वरूप देवताओं को देखकर अपने आत्मा को स्वरुप में स्थित किया और कमल के समान नेत्र बंद कर लिए।
श्री कृष्ण के जाने का समाचार सुनाने के बाद उनकी पत्नी रुक्मिणी और जांबवती ने देह त्याग दिया और बलराम जी की पत्नी रेवती ने भी अपना देह त्याग दीया था। अर्जुन द्वारिका से सभी बचे हुए लोगों को अपने साथ लेकर लौट पड़े
मृत्यु के बाद श्री कृष्ण और बलराम के शरीर का क्या हुआ?
इसका उत्तर हमें महाभारत के मौसल पर्व अध्याय 7 में मिलता है बलराम जी और श्री कृष्ण के प्राण त्यागने के उपरांत अर्जुन द्वारका पहुंचे थे। वहां पहुंचकर वे मंत्रियो से बोले मै विषणीय और अंधक वंश के लोगों को अपने साथ इंद्रप्रस्थ ले जाऊंगा क्योकी समुद्र अब इस सारे नगर को डूभा देगा।
इन्द्रप्रस्त पे चलने पर श्री कृष्ण के पौत्र वज्र तुम लोगों के राजा बनाए जाएंगे अर्जुन ने श्री कृष्ण के महल में ही उस रात निवास किया वे वहां पहुंचते ही सहसा महान शोक में डूब गए सवेरा होते ही वसुदेव जी ने अपने चित को परमात्मा में लगाकर योग के द्वारा उत्तम गति प्राप्त की वसुदेव जी को अपने जीवन काल में जो स्थान अति प्रिय था वही ले जाकर अर्जुन ने उनका दाह संस्कार किया।
धर्म कृत्य पूर्ण कराकर अर्जुन उस स्थान पर गए जहा यदुवंशियो का संहार हुआ था उस भीषण मारकाट में मर कर धराशाई हुए यादवो को देखा अर्जुन को बड़ा भारी दुख हुआ उन्होंने ब्रम्ह श्राप के कारण एरका से उत्पन हुए मुसलो द्वारा मारे गए यदुवंशी वीरों को बड़े छोटे के क्रम से सारे समयोचित कार्य संपन्न किया।
तदंत्र विश्वस्त पुरुषों द्वारा बलराम जी और श्री कृष्ण के शरीरों को खोज करा कर अर्जुन ने उनका भी दाह संस्कार किया।
अर्जुन उन सब के प्रेत कर्म विधि पूर्वक संपन्न करके तुरंत रथ पर आरूढ़ हो सातवें दिन द्वारका से चले गए।
तो ये थी जानकारी की श्री कृष्ण और बलराम जी की मृत्यु कैसे हुई थी, और मृत्यु उपरांत उनके शरीर का क्या हुआ। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे, साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते है।
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