दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी हैं। इसलिए जब उनकी पूजा पूर्ण श्रद्धा, भक्ति और आस्था से की जाती है तो उनकी नवों शक्तियां जागृत होकर नौ ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। माँ दुर्गा के ‘नवार्ण मंत्र’ का जाप दुर्गा की नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए किया जाता है।
नवार्ण मूलतः दो अक्षरों से मिल कर बना है – नव और अर्ण जिसमे ”नव” का अर्थ नौ तथा ”अर्ण” का अर्थ अक्षर होता है। अतः नवार्ण नौ अक्षरों वाला मंत्र है।
नवार्ण मंत्र = ”ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे”
नौ अक्षरों वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है।
१. पहला अक्षर ऐं है – जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिनकी पूजा उपासना नवरात्री के पहले दिन को की जाती है।
२. दूसरा अक्षर ह्रीं है – जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिनकी पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन को की जाती है।
३. तीसरा अक्षर क्लीं है – जो मंगल ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा से है, जिनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन को की जाती है।
४.चौथा अक्षर चा है – जो बुध ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की चौथी शक्ति कुष्माण्डा से है, जिनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन को की जाती है।
५. पांचवां अक्षर मुं है – जो बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की पाचमी शक्ति स्कंदमाता से है, जिनकी पूजा नवरात्रि के पाँचमे दिन को की जाती है।
६. छठा अक्षर डा है – जो शुक्र ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की छठमी शक्ति कात्यायिनी से है, जिनकी पूजा नवरात्रि के छठमें दिन को की जाती है।
७. सातवां अक्षर यै है – जो शनि ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की सतमी शक्ति कालरात्रि से है, जिनकी पूजा नवरात्रि के सातवे दिन को की जाती है।
८. आठवां अक्षर वि है – जो राहु ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की आठमी शक्ति महागौरी से है, जिनकी पूजा नवरात्रि के आठवे दिन को की जाती है।
९. नौवा अक्षर चै है – जो केतु ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की नवमीं शक्ति सिद्धिदात्री से है, जिनकी पूजा नवरात्रि के नवमे दिन को की जाती है।
नवार्ण मंत्र के तीन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं, तथा इसकी तीन देवियां महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती हैं, दुर्गा की यह नवों शक्तियां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो पुरुषार्थों की प्रदायक हैं।
नवार्ण मंत्र जाप की विधि
साधक स्नान कर के शुद्ध, स्वच्छ और पवित्र होकर स्वच्छ लाल वस्त्र धारण कर आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न कर शुद्ध आसन पर बैठे शुद्ध जल, पूजन सामग्री(जो भी हो) और श्री दुर्गा सप्तसती की पुस्तक को अपने सामने काष्ठ के शुद्ध आसन(पटा, रहल) मे विराजमान कर दे अपने ललाट पर कुमकुम या रोली या लाल चन्दन लगा ले शिखा बन्धन करले फिर पूर्वाभिमुख बैठ कर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन कर ले ।
आचमन मन्त्र निम्नानुसार है
1. ॐ ऐं आत्मतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
2. ॐ ह्रीं विद्या तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
3. ॐ क्लीं शिवतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
4. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
2. ॐ ह्रीं विद्या तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
3. ॐ क्लीं शिवतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
4. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
विनियोग
श्रीगणपतिर्जयति। ‘ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा
ऋषय:, गायत्रुष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि,
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,
ऐं बीजम्, ही शक्ति:, क्लीं कीलकम्
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।’
ऋष्यादिन्यासः
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः – शिरसि।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः – मुखे।
महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः – हृदि।
ऐं बीजाय नमः – गुहो।
ह्रीं शक्तये नमः – पादयोः।
क्लीं कीलकायन नमः – नाभौ।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः – मुखे।
महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः – हृदि।
ऐं बीजाय नमः – गुहो।
ह्रीं शक्तये नमः – पादयोः।
क्लीं कीलकायन नमः – नाभौ।
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे — ” इस मूल मंत्र से हाथों को जल
से धो लें ”
करन्यासः
करन्यास मंत्र से हाँथ की सभी अंगूलियों, हथेलियों और हाँथ के पिछले भाग में मत्रों का स्थापन (न्यास) किया जाता है।
ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः (दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियाें से दोनों
अंगूठे का स्पर्श)।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः (दोनों हाथों के अंगूठों से दोनों तर्जनी
अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः (अँगूठों से मध्यमा अँगुलियोंका स्पर्श)।
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः (अनामिका अंगुलियों स्पर्श)।
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः (कनिष्ठिका अंगुलियों स्पर्श)।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः (हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श)।
हृदयादिन्यासः
दहिने हाथ की पाँचो अँगुलियो से हृदय आदि अंगो का स्पर्श करे ।
ॐ ऐं ह्रदयाय नमः (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों के हृदय को स्पर्श)।
ॐ हीं शिरसे स्वाहा (सिर का स्पर्श)।
ॐ क्लीं शिखायै वषट् (शिखा का स्पर्श)।
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् (दाहिने हाथ की अंगुलियों से बाये कंधे का और बाये हाथ की अंगुलियो से दाहिने कंधे का साथ ही स्पर्श)।
ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् (दाहिने हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श)।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट् (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायी ओर से पीछे
की ओर ले जा कर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियो से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजाये)।
अक्षरन्यासः
नीचे लिखे गए मंत्रो को पढ़कर एक-एक कर के शिखा आदि का दाहिने हाथ की अगुलियो से स्पर्श करे।
ॐ ऐं नमः, शिखायाम्। (शिखा को)
ॐ ह्रीं नमः, दक्षिणनेत्रे। (दाहिना नेत्र)
ॐ क्लीं नमः, वामनेत्रे। (बाँया नेत्र)
ॐ चां नमः, दक्षिणकर्णे। (दाहिना कान)
ॐ मुं नमः, वामकर्णे। (बाँया कान)
ॐ डां नमः, दक्षिणनासापुटे। (दाहिना नाक)
ॐ यैं नमः, वामनासापुटे। (बाँया नाक)
ॐ विं नमः, मुखे । (मुख)
ॐ च्चें नमः, गुहो। (गुहो)
दिङ्न्यासः
अलग अलग दिशा मे चुटकी बजाते हुए मंत्र पढ़े।
ॐ ऐं प्राच्यै नमः ।
ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः।
ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः।
ॐ हीं नैऋत्यै नमः।
ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः।
ॐ क्लीं वायव्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः।
ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः।
ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः।
ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः।
ॐ हीं नैऋत्यै नमः।
ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः।
ॐ क्लीं वायव्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः।
ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः।
ध्यानम्
खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डी शिरः
शङ्ख संदधतीं करेस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।
नीलाश्मयुतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तोत्स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्॥ १॥
अक्षस्त्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधरतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सेरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥२ ॥
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जेर्दधती घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्धवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यादिनीम्॥३॥
शङ्ख संदधतीं करेस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।
नीलाश्मयुतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तोत्स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्॥ १॥
अक्षस्त्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधरतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सेरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥२ ॥
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जेर्दधती घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्धवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यादिनीम्॥३॥
भगवती का ध्यान करके मानसिक उपचार से देवी की पूजा करें।
जप करने वाले माला (रूद्राक्ष) की पूजा करें।
पूजा का मंत्र – ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः ।
फिर प्रार्थना करे।
प्रार्थना का मंत्र
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि।चतुर्वर्गस्त्वयिन्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि
सर्वमन्त्रार्थसाधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं
परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।
जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि
सर्वमन्त्रार्थसाधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं
परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।
नवार्ण मंत्र
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। (कम से कम एक माला(108) जाप करे)।
आसन से उठने के पहले आसन के नीचे एक आचमनी जल डाल कर माथे पर लगाते हुऐ आसन से बाहर हो जाये।