जैसा की हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में इंद्रदेव को देवताओं का राजा माना जाता है और यही वजह है कि इंद्र देव को देवराज भी कहा जाता है। तो अब मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब इंद्रदेव देवताओं के राजा हैं तो फिर हिंदू धर्म को मानने वाले लोग इंद्र देव की पूजा क्यों नहीं करते या पूरे भारतवर्ष में इंद्रदेव का कोई मंदिर क्यों नहीं है।
इन प्रश्नो के उत्तर हमें हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलते है ग्रंथो में कई ऐसी कथाओं का वर्णन किया गया है जिससे हमें पता चलता है की क्यों देवराज होते हुए भी इंद्रदेव का ना तो कोई मंदिर है और ना ही उनकी पूजा ही की जाती है। तो आइये इससे पहले जानते है की इंद्रदेव कौन है।
इंद्र देव कौन है?
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार इंद्र किसी एक देवता का नाम नहीं बल्कि जो भी स्वर्ग लोक के सिंघासन को प्राप्त कर लेता था अर्थात स्वर्ग लोक का राजा बन जाता था उसे इंद्र की उपाधि दी जाती थी ऐसा बताया गया है कि अब तक कुल 14 इंद्र हो चुके हैं जिनके नाम इस प्रकार है –
यज्न, वपिस्वत, शीबी, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति, सूचि
इंद्र को बादलों और विद्युत के देवता बताया गया है, वो ही वर्षा करते है।
ऐसा कहा जाता है कि इंद्र पद पर जो भी विराजमान होता था उसे हमेशा ही अपने सिंहासन छिनने का डर लगा रहता था इसीलिए वह किसी भी साधु और राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देता था। वह कभी तपस्वी और साधुओं को धन सम्पति का लालच दिखा कर या अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देता तो कभी राजाओं के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े चुरा लेता जिससे उनका यज्ञ अधूरा ही रह जाता।
इंद्रदेव की पूजा न होने से जुड़ी पौराणिक कथाएं
इंद्रदेव से जुड़ी पौराणिक कथाएं जिससे ये पता चलता है की इंद्र देव की पूजा क्यों नहीं होती।
पहली कथा
ऐसी ही एक कथा का वर्णन पौराणिक कथाओं में मिलता है जिसके बारे में यह माना जाता है कि इसी घटना के बाद इंसानों ने पृथ्वी लोक पर इंद्र देव की पूजा करना बंद कर दिया।
कथा के अनुसार पौराणिक समय में धरती लोक पर गौतम नामक ऋषि हुआ करते थे वह बड़े ही ज्ञानी और योगी संत थे। वे जंगल में अपनी पत्नी अहिल्या के साथ कुटिया बना कर रहा करते थे।
अहिल्या अत्यंत सुंदर होने के साथ-साथ एक पतिव्रता स्त्री थी। जो भी अहिल्या को देखता था वो उनकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था।
एक दिन की बात है अहिल्या अपने पति गौतम ऋषि की सेवा कर रही थी उसी समय इंद्रदेव वहां से गुजरे और वह अहिल्या की सुंदरता को देखकर उनपर मोहित हो गए, हालांकि उस समय तो इंद्रदेव स्वर्ग वापस लौट गए लेकिन इंद्र का मन अहिल्या पर ही अटका रहा।
वे सोचने लगे कि ऐसा क्या किया जाए जिससे यह रूपवती स्त्री उन पर आसानी से अपना सर्वस्व निछावर कर दे फिर उन्होंने इसके लिए छल का सहारा लेने की योजना बनाई और जब उन्हें ज्ञात हुआ कि गौतम ऋषि प्रत्येक दिन सुबह के समय स्न्नान ध्यान के लिए अपनी कुटिया से बाहर जाते हैं।
एक सुबह इंद्रदेव ने ऋषि गौतम की कुटिया से चले जाने के बाद माया से ऋषि गौतम का रूप धारण कर अहिल्या के पास पहुंचे यह देखकर पहले तो अहिल्या के मन में संदेह हुआ कि आज इतनी जल्दी मेरे स्वामी कैसे आ गए परन्तु वे ये नहीं समझ पाई की ये ऋषि गौतम रुपी इंद्र है और उनकी सेवा में जुट गई।
उधर कुछ समय बाद जब वास्तविक गौतम ऋषि स्न्नान ध्यान करके कुटिया में वापस लौटे, तो उन्होंने अहिल्या को किसी बहरूपिये के साथ देखा और फिर उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि यह बहरूपिया और कोई नहीं स्वर्ग के राजा इंद्र है।
यह देखते ही वह क्रोधित हो गए क्रोध के आवेश में आकर ऋषि ने देवराज इंद्र को श्राप दिया कि जिस पत्नी की योनि के लिए वह इतना आसक्त रहता है वैसी ही 1000 योनियों तुम्हारे शरीर पर निकल जाए और देवराज होते हुए भी तुम्हारी पूजा अन्य देवताओं की तुलना में ना के बराबर हो और अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया
ऐसा सुनते ही इंद्र अपने वास्तविक रूप में आ गए और ऋषि के पैर पकड़ लिए और घर आने लगे यह देख गौतम ऋषि को उस पर दया आ गई और उन्होंने इंद्र के शरीर पर उभर आई योनियों को आंखों में परिवर्तित कर दिया
जबकि देवी अहिल्या द्वारा बार-बार क्षमा याचना करने और कहने पर कि इसमें मेरा कोई दोष नहीं है पर गौतम ऋषि ने कहा कि तुम शिला बनकर यहां निवास करोगी त्रेता युग में जब भगवान विष्णु राम के रूप में अवतार लेंगे तब उनके चरण के स्पर्श मात्र से तुम्हारा उद्धार होगा।
ऐसा माना जाता है कि तभी से इंसानों ने इंद्र देव की पूजा करना छोड़ दिया।
दूसरी कथा
दूसरी कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के अवतार लेने से पहले ब्रज में इंद्रोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता था परंतु जब श्री कृष्ण बड़े हुए तो उन्होंने देखा कि बृजवासी बड़े ही धूमधाम से इंद्र की पूजा कर रहे हैं।
तब उन्होंने वृजवासियो से कहा कि तुम लोगों को किसी ऐसे व्यक्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए जो ना ईश्वर हो और ना ईश्वर तुल्य हो इसके बदले तुम लोग गाय की पूजा क्यों नहीं करते जिससे हम सभी का जीवन चलता है इसके अलावा श्री कृष्ण ने ब्रज वासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा।
यह सुनकर पहले तो ब्रज वासियों ने कहा कि अगर हमने देवराज इंद्र का पूजा करना छोड़ दिया तो भी क्रोधित हो जाएंगे और हमारे यहां वर्षा भी नहीं होगी ऐसे में अपनी गायों को चारा कैसे खिला पाएंगे।
तब श्री कृष्ण ने कहा इसलिए हम किसी ऐसे देवता की पूजा क्यों करें जो हमें भय दिखाता है मुझे किसी देवता का डर नहीं अगर हमें चढ़ावे और पूजा का आयोजन करना ही है, तो अब हम गोत्सव मनाएंगे इंद्रोत्सव नहीं उसके बाद सभी लोग श्री कृष्ण की बातों से सहमत हो गए और उन्होंने निश्चय किया कि आज से वे सभी इंद्र की जगह गाय और गोवर्धन पर्वत की ही पूजा करेंगे।
उधर जब इंद्र को इस बारे में पता चला तो उन्होंने प्रलय कालीन बादलों को आदेश दिया कि ऐसी वर्षा करो कि बृजवासी या पूरा बृज डूब जाए और मुझसे क्षमा मांगने पर विवश हो जाए।
इंद्र की आज्ञा से बादल मूसलाधार जल बरसाने लगे और जब लंबे समय तक वर्षा नहीं थमी और बृजवासी कराहने लगे। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण कर लिया और सब बृजवासियों को इसके नीचे बुला लिया। गोवर्धन पर्वत के नीचे आने पर बृजवासियों पर वर्षा और गर्जना का कोई असर नहीं हो रहा था।
इससे इंद्र का अभिमान चूर-चूर हो गया बाद में श्री कृष्ण का इंद्र से युद्ध भी हुआ और इंद्र हार गए इसके बाद से ही इंद्रोत्सव की जगह गोवर्धन पर्व मनाया जाने लगा।
इंद्रदेव की मंदिर क्यों नहीं है?
दोस्तों जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मंदिर उन्हीं देवताओं की बनाई जाती है जिसकी पूजा होती है और पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवराज इंद्र की पूजा ही नहीं की जा सकती तो ऐसे में फिर उनका मंदिर कैसे बनाया जा सकता है।
तो ये थी जानकारी की इंद्र देव की पूजा क्यों नहीं होती और इंद्रदेव की पूजा न होने के कारण, पौराणिक कथाएं। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे, साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते है।