ब्रह्मराक्षस के विषय पर काफी अध्ययन करने और खंगालने के उपरांत भी हमें अधिकतर समय किंवदंती ही मिली जिनका कोई प्रमाण हमें अपने धर्म ग्रंथों में नहीं मिला पर ब्रह्मराक्षस के बारे में हमारे कुछ पुराणों में वर्णन अवश्य किया गया है वही आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
ब्रह्मराक्षस कौन बनता है?
ब्रह्मराक्षसों की गिनती हमारे सनातन धर्म ग्रंथों में सर्वोच्च राक्षसों में की जाती है। ब्रह्मराक्षस मूलतः ब्राह्मण वर्ग की आत्माएं होती हैं। जो मृत्यु के अंत तक धर्म का पालन और आध्यात्मिक शक्ति से युक्त रहते हैं।
ब्रह्मराक्षस वे ज्ञानी आत्माएं हैं जिनमें सात्विक और तामसिक दोनो गुंण होते हैं। इसी कारण इनमे ब्रह्म ज्ञान भी होता हैऔर यह कुछ अनुचित कर्म भी करते हैं। मूलतः यह किसी निर्जन स्थान पर बसेरा डालकर रहते हैं। इन्हें बहुत सारी शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं और बड़े ही कम लोग इनसे लड़ने की क्षमता रखते हैं या उन्हें उनके इस रूप से मुक्ति दिला सकते हैं। इन्हें अपने पूर्वजन्म तथा वेदों का भी ज्ञान होता है।
ब्रह्म पुराण अध्याय 94 में पार्वती जी जब भगवान शिव से राक्षसों के बारे में प्रश्न करती हैं तो शिवजी उनसे कहते हैं देवी लोक धर्म के प्रतिपादक शास्त्र और प्राचीन मर्यादा को प्रमाण मानकर जो उसका अनुसरण करते हैं वे दृढ़ संकल्प एवं यज्ञ तत्पर माने जाते हैं परंतु जो मोह के वशीभूत हो अधर्म को ही धर्म बताते हैं। वे व्रत और मर्यादा का लोप करने वाले मानव ब्रह्मराक्षस होते हैं।
ब्रह्मराक्षस की पौराणिक कथा
ब्रह्मराक्षस को और विस्तार से ब्रह्म पुराण अध्याय 95 के एक ब्रह्मराक्षस और चांडाल की कथा के माध्यम से बताया गया है।
इस पृथ्वी पर अवन्ति नाम से प्रसिद्ध एक नगरी थी जहां भगवान विष्णु विराजमान थे इस नगरी के किनारे एक चांडाल रहता था। वह उत्तम वृद्धि से धन पैदा करके अपने कुटुंब के लोगों का भरण पोषण करता था। भगवान विष्णु के प्रति उसकी बड़ी भक्ति थी वह अपने व्रत का दृढ़ता पूर्वक पालन करता था।
एक दिन वह भगवान विष्णु की सेवा करने के लिए जंगली पुष्पों का संग्रह करने वन में गया। शिप्रा के तट पर जंगल के भीतर एक बहेड़ का वृक्ष था। उसके नीचे पहुंचने पर किसी राक्षस ने उस चांडाल को देखा और भक्षण करने के लिए पकड़ लिया।
यह देख उस चांडाल ने उस राक्षस से कहा आज तुम मुझे ना खाओ कल प्रातः काल खा लेना। आज मेरा बहुत बड़ा कार्य है मुझे विष्णु जी की सेवा के लिए रात्रि में जागरण करना है तुम्हें उसमें विघ्न नहीं डालना चाहिए। मैं सत्य कहता हूं मैं फिर तुम्हारे पास लौट आऊंगा।
चांडाल की यह बात सुनकर ब्रह्मराक्षस को बढ़ा विस्मय हुआ। उसने कहा जाओ अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन करो। राक्षस के यह कहने पर चांडाल पुष्प लेकर भगवान विष्णु के मंदिर आया। चांडाल ने मंदिर के बाहर ही भूमि पर बैठकर उत्साह पूर्वक गीत गाते हुए रात भर जागरण किया वा सवेरा होते ही चांडाल स्नान करके भगवान को नमस्कार किया और अपनी प्रतिज्ञा को सत्य करने के लिए राक्षस के पास चल दिया।
चांडाल को आया हुआ देखकर ब्रह्मराक्षस के नेत्र आश्चर्यचकित से हो उठे। वह बोला तुम वास्तव में सत्य वचन का पालन करने वाले हो मैं तुम्हे चांडाल नहीं मानता तुम्हारे इस कर्म से तो मैं तुम्हे पवित्र ब्राम्हण समझता हूं।
मैं तुमसे धर्म सम्बंधित कुछ बाते पूछता हूं बताओ तुमने भगवान विष्णु के मंदिर में कौन-कौन सा कार्य किया तब चांडाल ने उस राक्षस को उस रात की सारी क्रिया कह सुनाई। इस पर ब्रह्मराक्षस ने कहा साधो अब मैं जो कहता हूं वह करो मुझे एक रात के जागरण का फल मुझे अर्पण कर दो। ऐसा करने से तुम्हें छुटकारा मिल जाएगा।
चांडाल ने कहा निसाचर मैंने तुम्हें अपना शरीर अर्पित कर दिया है अतः दूसरी बात करने से क्या लाभ तुम मुझे इक्षा अनुसार खा जाओ।
अब राक्षस ने कहा अच्छा रात के दो ही प्रहर के जागरण का पुण्य मुझे दे दो। यह सुनकर चांडाल ने कहा यह कैसी बिना सिर-पैर की बातें करते हो मुझे इक्षा अनुसार खा लो मैं जागरण का फल नहीं दूंगा।
राक्षस बोला इतने कठोर ना बनो तुम मुझ पर कृपा करके एक ही याम के जागरण का पुण्य दे दो।
चांडाल ने फिर उत्तर दिया ना तो मैं अपने घर लौटूंगा न तो तुम्हे कोई पुण्य दूंगा। यह सुनकर ब्रह्मराक्षस हंस पड़ा और बोला भाई रात्री व्यतीत होते समय जो तुमने अंतिम गीत गाया हो उसी का फल मुझे दे दो और पाप से मेरा उद्धार करो।
यह सुनकर चांडाल ने ब्रह्मराक्षस से कहा पूर्व में ऐसा कौन सा दोष आपने किया जिसके कारण आप ब्रह्मराक्षस हुए ऐसी कौन सी बुरी क्रिया आपसे हुई।
उसके शब्दों को सुनकर ब्रह्मराक्षस ने अपने द्वारा किए गए बुरे कार्यो को याद किया और अत्यंत व्यथित होकर चांडाल से बोला मैं पहले कौन था मैंने ऐसा क्या किया था जिसके परिणाम स्वरुप मुझे एक दुष्ट गर्व से एक राक्षस के रूप में जन्म लेना पड़ा।
पूर्व काल में मै एक ब्राह्मण था जिसे शोमशर्मा के नाम से जाना जाता था। मैं देव शर्मा का पुत्र था जो यज्ञ करते थे और नियमित रूप से वेदों का अध्ययन करते थे उस समय एक राजा थे जिनके यहां मैंने यज्ञ किया था। हालांकि उस यज्ञ में उस राजा को कुछ मंत्रो का उपयोग करने से मना किया गया था। क्योंकि मेरी रुचि उस यज्ञ को पूर्ण करने की थी तो मैं यज्ञोपवीत संस्कार से उसी में लगा रहा।
लालच और भ्रम से प्रभावित होकर मैंने यज्ञ में अगनेन्द्र का कर्तव्य निभाया मैंने मूर्खता और अभिमानी होकर यह सब कर दिया है मैंने 12 दिनों तक चलने वाले उसकी यज्ञ को आरंभ कर दिया जब मैं उस यज्ञ को कर रहा था तभी मेरे पेट में पीड़ा होने लगी। 10 दिन पूरे हो गए परंतु अभी भी यज्ञ समाप्त नहीं हुआ था वह यज्ञ भगवान शिव को समर्पित था।
मेरी बीच में ही मृत्यु हो गई और इसी गलती के कारण मैं ब्रह्मराक्षस बन गया मुझे उस यज्ञ को करने की पूरी जानकारी नहीं थी। उस यज्ञ को करते समय मंत्र बोलने से मुझे उसका उच्चारण भी सही से करना नहीं आता था और ना ही उन मंत्रों की ही मुझे पूरी जानकारी थी। इस दोषपूर्ण प्रदर्शन के कारण मैं ब्रह्मराक्षस बन गया मैं पाप के महान सागर में डूबा हुआ हूं इसीलिए हे चांडाल आप मेरी सहायता कीजिए।
तब चांडाल ने कहा यदि तुम आज से किसी प्राणी का वध ना करो तो मैं तुम्हें अपने पिछले गीत का पुण्य दे सकता हूं अन्यथा नहीं।
ब्रह्मराक्षस ने उसकी बात मान ली है तब चांडाल ने उसे अपने गान का फल दे दिया। उस गीत के फल से पुण्य की वृद्धि होने के कारण उसका उस राक्षस योनि से उद्धार हो गया। हजारों वर्षों के बाद उसने पुनः जन्म लिया वह जितेन्द्रिय ब्राम्हण हुआ और उसे पूर्व जन्म का स्मरण बना रहा।
तो ये थी जानकारी की ब्रह्मराक्षस कौन होते है, वे कैसे बनते है ब्रह्मराक्षस, वे कितने शक्तिशाली होते है और ब्रह्मराक्षस से जुड़ी पौराणिक कथा। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करें। साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते हैं।