Sankashti Chaturthi: सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने से पूर्व गणेश जी का स्मरण किया जाता है। सबसे पहले गणपति पूजन होता है, गणेश जी से प्रार्थना की जाती है कि कार्य सुमंगल रुप से हो। ऐसे अनेक पर्व है जो केवल गणेश जी को समर्पित है। इन्हीं व्रतों में से एक है संकष्टि चतुर्थी व्रत, तो आज हम जानेंगे संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा, पूजा विधि, महत्व, एवं संकष्टि चतुर्थी मुहूर्त के बारे में।
कब आती है संकष्टी चतुर्थी?
संकष्टी का मतलब संकट हरी यानी संकटों का हरण या नाश करने वाली चतुर्थी।
संकष्टी चतुर्थी प्रति माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। पूर्णिमा के पश्चात की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है और अमावस्या के बाद की चतुर्थी विनायक चतुर्थी होती है।
इस प्रकार 1 वर्ष में संकष्टी चतुर्थी के लगभग 12 से 13 व्रत होते हैं मान्यता है कि जो भी यह व्रत करता है प्रथम देव गणेश जी उसके सभी कष्ट हर लेते हैं।
संकष्टी चतुर्थी को अन्य नाम जैसे – सकट चौथ, वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ, या तिलकुटा चौथ से भी जाना जाता है। माताए इस व्रत को अपने संतान को दीर्घायु होने के लिए भी रखती है।
संकष्टि चतुर्थी पूजा एवं व्रत विधि
सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
गणेश जी की प्रतिमा को स्नान कराएं और यदि आपके पास प्रतिमा नहीं अपितु चित्र है तो उसे स्वच्छ वस्त्र से पोछ ले।
अब गणपति जी की प्रतिमा को फूलों से सजा ले।
पूजा में मोदक, गुड़, तिल, पुष्प, तांबे के कलश में जल, धूप, चंदन, प्रसाद के लिए फल, नारियल आदि रखें।
लेकिन तुलसी के पत्ते का पूजा में बिलकुल भी इस्तेमाल न करे।
अब गणेश जी संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त 2021 को तिलक लगाकर मिष्ठान और फल एवं पुष्प अर्पित करें।
संध्या में यदि संभव हो तो फिर से स्नान करके भोजन बनाकर गणपति जी को अर्पित करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।
फिर गणेश जी की आरती करे ।
इसके बाद ॐ श्री गं गणपतये नम: मंत्र का जाप करें।
अंत में चंद्रमा को दिए हुए मुहूर्त में अर्घ्य देकर अपने व्रत को पूर्ण करें।
आप गणपति जी से प्रार्थना करें कि आप कोई भी कार्य आरंभ करने से पहले उन्हें अवश्य स्मरण करें और वह आपकी सभी विघ्नों को हर ले।
फिर सभी को प्रसाद बांट दें और स्वयं भी ग्रहण करें।
कई जगहों में महिलाये पूरा दिन निर्जला व्रत रखती है और अगले दिन फिर व्रत खोलती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत में क्या खाएं
व्रत में मीठा भी खा सकते जैसे साबूदाना की खीर, सिंघाड़े का हलुआ, दही आदि
आप तिल के लड्डू भी खा सकते है साथ ही इस दिन तिल का दान करना भी शुभ माना गया है।
व्रत में फलाहार का सेवन करे जिससे आप के शरीर में पानी की कमी न हो। आप खीरा भी खा सकते है।
व्रत में कमजोरी लगने पे आप चाय पी सकते है।
क्या ना खाये
व्रत वाले दिन तामसिक आहार न लें और व्रत के नमक का भी प्रयोग ना करें।
व्रत में पापड़, चिप्स, पूड़ी, पकौड़ी,मूंगफली बिल्कुल भी न खाये।
व्रत में तुलसी का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।
इस दिन कंद-मूल का सेवन न करे वह चीजे जो जमीन के अंदर उगती है जैसे – प्याज, गाजर, शलगम, लहसुन, मूली, मूमफली आदि।
संकष्टी चतुर्थी व्रत महत्व
संकष्टी चतुर्थी का व्रत सच्चे मन और पूर्ण श्रद्धा भाव से करने पर भक्त की सभी मनोकामना पूर्ति होती है। गणेश जी की कृपा से भक्तो के सभी दुखो और कष्टों का नाश होता है। मनुष्य को जीवन में सुख, समृद्धि, और धन की प्राप्ति होती है।
महिलाये अपने संतान की लम्बी आयु और उज्वल भविष्य की कामना से भी यह व्रत रखती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
वैसे तो संकष्टी चतुर्थी के विषय में अनेक कथाएं हैं परंतु हम आप को सबसे प्रचलित कथा के विषय में बताएंगे तो आइए जानते हैं कैसे हुआ संकष्टी चतुर्थी व्रत का आरंभ।
यह उस समय की बात है जब भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह निश्चित हो गया था और विवाह की तैयारियां चल रही थी विवाह का निमंत्रण गणेश जी के अतिरिक्त सभी देवताओं को भेजा गया सभी देवगण एकत्रित हुए।
बारात प्रस्थान के समय जब गणेश जी नहीं दिखे तब सभी देवताओं ने आपस में बात की कि गणपति नहीं दिख रहे हैं उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया या वे आए नहीं सब इसी बात पर चर्चा करने लगे कुछ ही समय में यह बात समारोह में उपस्थित सभी लोगों के बीच फैल गई सभी देवता आश्चर्यचकित थे।
फिर सब ने भगवान विष्णु से गणेश जी के उपस्थित न होने का कारण पूछा भगवान विष्णु ने कहा कि हमने गणेश जी के पिता महादेव शिव को निमंत्रण भेजा था एक ही परिवार के हैं यदि गणपति आना चाहते तो पिता के साथ आ सकते थे।
एक ही परिवार में दो निमंत्रण क्यों भेजना और वैसे भी उनके 1 दिन का भोजन सवामन मूंग, सवामन घी, सवामन चावल और सवामन लड्डू है। कहीं और जाकर इतना खाना अच्छा नहीं लगता, इसी वार्तालाप के चलते उपस्थित जनों में से किसी एक ने सुझाव दिया कि वह आ भी गए तो उन्हें यह कहकर द्वार पर बैठा सकते हैं कि वह मूषक पर बैठकर बहुत धीमी गति से चलेंगे इसलिए बारात में बहुत पीछे रह जाएंगे।
इस सुझाव पर भगवान विष्णु समेत सभी ने सहमति दी और फिर गणेश जी को बुलाया गया कुछ ही देर में गणपति आ पहुंचे फिर उन्हें समझाकर द्वार पर बैठा दिया गया और सभी देवगण बारात में चले गए। इतने में नारद जी आए उन्होंने देखा कि गणेश जी तो द्वार पर बैठे हैं और अन्य सभी देवता बारात में गए हैं।
पूछने पर गणेश जी ने उत्तर दिया कि मेरा बहुत अपमान हुआ है मुझे यहां द्वारपाल बना कर बैठा दिया गया तब नारद जी ने गणेश जी को सुझाव दिया कि आप जल्दी अपनी मूषक सेना को भेज दीजिए वह बारात से आगे पहुंच कर रास्ता खोद देगी जिससे बारात में चल रहे वाहन धरती में धस जाएंगे और बारात आगे नहीं बढ़ पाएगी।
गणेश जी ने ऐसा ही किया उधर बारात में चल रहे वाहनों के पहिए धरती में धंसने लगे पहियों को निकालने का बहुत प्रयास किया गया परंतु सभी प्रयास असफल रहे साथ ही पहिए टूटने भी लगे किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।
तब नारद जी ने सभी से कहा कि गणेश जी का अपमान हुआ है इसी कारण यह सब हो रहा है अब वे ही सब कुछ ठीक कर सकते हैं इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं यदि मंगलमय ढंग से सभी कार्य संपन्न करने हैं तो उन्हें मना कर यहां बुलाना चाहिए तब शिवजी ने नंदी को गणपति को बुला ने के लिए भेजा।
जब नंदी गणेश जी को लेकर आए तब उनका सम्मान पूर्वक पूजन किया गया इसके पश्चात वाहनों के पहिए धरती में से निकल आए परंतु अब एक और समस्या थी कि जो पहिए टूट गए थे वह कैसे ठीक होंगे वहां पास ही खेत में एक मजदूर काम कर रहा था उसे बुलाकर पूछा गया क्या वह पहिये सुधार सकता है।
उसने कहा हां वो यह काम भी करता है तब उसने गणेश जी का नाम लेकर अपना कार्य आरंभ किया पहिये ठीक करने के पश्चात उसने सब से कहा आप सब ने सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन नहीं किया होगा इसी कारण यह समस्या आई इस जगत में तो सभी गणपति का नाम लेकर ही कार्य आरंभ करते हैं।
तो आप तो फिर भी देवता हैं आप उन्हें कैसे भूल गए अब आप सभी लोग गणेश जी की जय बोल कर आगे बढ़ जाए कोई समस्या नहीं आएगी गणेश जी विघ्नहर्ता है वे सभी समस्याओं को हर लेते हैं और गणेश जी की जय बोल कर बारात वहां से आगे बढ़ी विष्णु जी और मां लक्ष्मी का विवाह संपन्न हुआ और सभी प्रसन्नता पूर्वक घर लौटे।
और मित्रों तभी से संकष्टी चतुर्थी मनाई जाने लगी इस दिन बहुत से लोग व्रत करते हैं। (Disclaimer: इस लेख में दी गई यह कथा सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। pooja path इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)। संकष्टी चतुर्थी व्रत की अन्य तीन कथाये।
संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त | Sankashti Chaturthi Dates 2023
द्रिकपंचांग के अनुसार इस वर्ष कुल 13 संकष्टी चतुर्थी है। तो आइये जानते है व्रत का दिन और मुहूर्त के बारे में।
संकष्टी चतुर्थी जनवरी 2023
1. दिनांक – जनवरी, 10, 2023, मंगलवार (अखुरथ संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 08:41 PM
माघ, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 12:09 PM, जनवरी 10
समाप्त – 02:31 PM, जनवरी 11
संकष्टी चतुर्थी जनवरी 2023
संकष्टी चतुर्थी फरवरी 2023
1. दिनांक – मार्च 2, 2021, मंगलवार (द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 09:48 PM
फाल्गुन, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 05:46 AM, मार्च 02
समाप्त – 02:59 AM, मार्च 03
2. दिनांक – मार्च 31, 2021, बुधवार (भालाचंद्र संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 09:39 PM
चैत्र, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 02:06 PM, मार्च 31
समाप्त – 10:59 AM, फरवरी 01
संकष्टी चतुर्थी अप्रैल 2021
1. दिनांक – अप्रैल, 30, 2021, शुक्रवार (विकट संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 10:38 PM
वैशाख, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 10:09 PM, अप्रैल 02
समाप्त – 07:09 PM, अप्रैल 03
संकष्टी चतुर्थी मई 2021
1. दिनांक – मई 29, 2021, शनिवार (एकदन्त संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 10:24 PM
ज्येष्ठ, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 06:33 AM, मई 29
समाप्त – 04:03 AM, मई 30
संकष्टी चतुर्थी जून 2021
1. दिनांक – जून 27, 2021, रविवार (कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 09:58 PM
आषाढ़, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 03:54 PM, जून 27
समाप्त – 02:16 PM, जून 28
संकष्टी चतुर्थी जुलाई 2021
1. दिनांक – जुलाई 27, 2021, मंगलवार (गजानन संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 09:57 PM
श्रावण, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 02:54 AM, जुलाई 27
समाप्त – 02:28 AM, जुलाई 28
संकष्टी चतुर्थी अगस्त 2021
1. दिनांक – अगस्त 25, 2021, बुधवार (बहुला चतुर्थी, हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 09:04 PM
भाद्रपदा, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 04:18 PM, अगस्त 25
समाप्त – 05:13 PM, अगस्त 26
संकष्टी चतुर्थी सितम्बर 2021
1. दिनांक – सितम्बर 24, 2021, शुक्रवार (विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 08:47 PM
आश्विन, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 08:29 AM, सितम्बर 24
समाप्त – 10:36 AM, सितम्बर 25
संकष्टी चतुर्थी अक्टूबर 2021
1. दिनांक – अक्टूबर 24, 2021, रविवार (करवा चौथ वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 08:44 PM
कार्तिक, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 03:01 AM, अक्टूबर 24
समाप्त – 05:43 AM, अक्टूबर 25
संकष्टी चतुर्थी नवम्बर 2021
1. दिनांक – नवम्बर 23, 2021, मंगलवार (गणाधिप संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 09:05 PM
कार्तिक, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 10:26 PM, नवम्बर 22
समाप्त – 12:55 AM, नवम्बर 24
संकष्टी चतुर्थी दिसम्बर 2021
1. दिनांक – दिसम्बर 22, 2021, बुधवार (अखुरथ संकष्टी चतुर्थी)
चंद्रोदय – 08:47 PM
पौष, कृष्ण चतुर्थी
प्रारम्भ – 04:52 PM, दिसम्बर 22
समाप्त – 06:27 PM, दिसम्बर 23
इसी के साथ समाप्त होती है जानकारी संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में की इसका महत्व क्या है, पूजा विधि और कथा क्या है, इस दिन क्या खाये या न खाये, साथ ही संकष्टी चतुर्थी 2021 मुहूर्त के बारे में। ये जानकारी अगर आपको अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करे और साथ ही हमें कमेन्ट कर के भी बता सकते है – धन्यवाद।