नंदी महादेव जी के अंश से उत्पन्न होकर भगवान शिव को कैसे प्राप्त हुए थे इसका वर्णन शिवपुराण के शतरूद्र संहिता एवं महाभारत के अनुशासन पर्व में भी किया गया है। आइए जानते हैं नंदीकेश्वरी अवतार कितने शक्तिशाली थे और वह कैसे बने थे भगवान शिव के वाहन।
नंदी का जन्म कैसे हुआ?
शिव पुराण के शतरुद्र संहिता के 6ठे अध्याय के अनुसार शिलाद नाम के धर्मात्मा मुनि थे। एक बार जब पुत्र की कामना से वह इन्द्र की तपस्या करने लगे। तब देवराज इन्द्र प्रगट हुए और मुनि से बोले कि मैं आपकी इच्छा पूरी करने में असमर्थ हूं अतः आप भक्त वत्सल भगवान शिव की तपस्या करें वो ही आपकी इच्छा पूर्ण करने में सक्षम है।
यह सुनकर शिलाद प्रसन्न होकर देवाधि देव भगवान शिव की तपस्या करने लगे। शिलाद की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिये और पुत्र प्राप्ति का वर दिया।
वह बोले मैं आपका अयोनिज पुत्र बनकर जन्म लूंगा और मेरा नाम नंदी होगा। यह कहकर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए।
समय उपरांत ऋषि शिलाद यज्ञ भूमि को सही कर रहे थे कि उसी समय भगवान शिव की आज्ञा से बाल रुपी नंदी जी उनके शरीर से उत्पन्न हुए। शिलाद ने उनका बाल स्वरुप देखा उनका तेज सूर्य और अग्नि के समान प्रकाशमान हो रहा था और उनके हांथ में त्रिशूल एवं सिर पर जटाजूट धारण किए हुए थे।
शिलाद ने उनका नाम नंदी रखा तत्पश्चात शिव की स्तुति करने के लिए शिलाद कुटिया में चले गए। तब नंदी उस रूप को त्याग कर साधारण बालक की भांति रहने लगे।
5 वर्ष का होने तक उन्हें संपूर्ण वेदों का अध्ययन कराया गया। जब वो 7 वर्ष के हुए तब भगवान शिव की आज्ञा से मित्र और वरुण नाम के मुनि उन्हें देखने के लिए गए।
शिलाद ने उन दोनो का बहुत आवोभगत किया तब वे दोनो कुछ समय नंदी जी को निहारते हुए शिलाद से बोले हे तात तुम्हारा यह पुत्र इतनी छोटी आयु में ही सब शास्त्र का ज्ञाता हो गया है लेकिन इसकी आयु तो बहुत कम है इसके जीवन का तो मात्र 1 वर्ष शेष रह गया है।
यह सुनकर शिलाद अत्यंत दुख से भर गए और रोने लगे। इस प्रकार अपने पिता को रोते हुए देख कर नंदी बोले पिताजी आप इतने दुखी क्यों है तब उन्होंने नंदी को उनकी आयु के बारे में बताया।
इस पर नंदी बोले मुझे देवता, दानव, यक्ष, गंधर्व, काल, यमराज, या कोई भी मनुष्य नहीं मार सकता। मेरी अल्प आयु में मृत्यु नहीं होगी।
यह सुनकर शिलाद बोले पुत्र तुम ने ऐसा कौन सा तप किया है या तुम्हे ऐसी कौन सी शक्ति प्राप्त हो गई है जो तुम ऐसा कह रहे हो।
तब नंदी बोले मैं भगवान शिव की आराधना कर मृत्यु को दूर भगा दूंगा। आप चिंता ना करें यह कह कर नंदी ने पिता शिलाद को प्रणाम किया और स्वयं वन की ओर चल दिए।
नंदी कैसे बने भगवान शिव के वाहन?
वन में जाकर उन्होंने घोर तपस्या करना शुरू कर दिये ।
वे भगवान के तीन नेत्र, 10 भुजा तथा 5 मुख रूप का ध्यान करते हुए मंत्र जाप करने लगे।
उनकी दुष्कर तपस्या में अभिभूत होकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने देवी पार्वती सहित नंदी को दर्शन दिए। भगवान शिव ने नंदी को मनोवांछित वर मांगने को कहा।
उनके यह वचन सुनकर नंदी उनके चरणों में गिर पड़े और पुनः उनकी स्तुति करने लगे तब शिवजी ने नंदी को ऊपर उठाया और बोले वत्स नंदी मेरे होते हुए भला तुम्हे मृत्यु का भय कैसा तुम अजर-अमर हो और सदा मेरे गणनायक बनकर रहोगे।
तुम्हारे घर पधारे वह दोनों मुनि मैंने ही भेजे थे अतः अब तुम अपनी सारी चिंताओं को भूल जाओ। इतना कहकर भगवान शिव ने रुद्राक्ष की माला अपने गले से उतारकर नंदी के गले में डाल दी।
माला उनके गले में डालते ही नंदी के 3 नेत्र और 10 भुजाएं हो गई।
तत्पश्चात भगवान शिव बोले कि तुम और क्या चाहते हो।
तब नंदी बोले मैं आपकी सवारी बनना चाहता हूं।
तब महादेव ने अपनी जटाओं से निर्मल जल नंदी पर छिड़क कर कहा तुम नंदी हो जाओ। भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा देवी मै नंदी को अपने सभी गणों का अधिपति बनाना चाहता हूँ।
पार्वती जी भी बोली मै भी नंदी को अपना पुत्र मानती हूँ।
तब भगवान शिव ने अपने सभी गणों को बुलाकर उनसे कहा कि मैंने नंदी को आप सब गणों का अधिपति बनाया है।
उनका यह कथन सुनकर सभी गणों ने प्रसन्ता पूर्वक नंदी को अपना स्वामी स्वीकार कर लिया।
नंदी की पत्नी का नाम
तत्पश्चात नंदी का विवाह मरुतो की सुन्दर दिव्य कन्या शुयशा से संपन्न हुआ।
वहां उपस्थित समस्त देवताओं ने हर्षित मन से नंदी को अनेक वरदान प्रदान किए।
महाभारत के अनुशासन पर्व के अध्याय 141 में भी नंदी जी का वर्णन मिलता है। यह जानकारी कल्प भेद के कारण कुछ अलग है।
इस वृतांत के अनुसार देवी उमा ने भगवान शिव से पूछा शत पुरुषों में श्रेष्ठ महादेव इस जगत में अन्य सब सुंदर वाहनों के होते हुए क्यों वृषभ ही आपका वाहन बना है।
श्री महेश्वर ने कहा प्रिये ब्रह्मा जी ने देवताओं के लिए दूध देने वाली सुरभि नामक गाय की सृष्टि की जो मेघ के समान दूध रूपी जल की वर्षा करने वाली थी। उत्पन्न हुई सुरभि अमृत मई दूध बहाती हुई अनेक रूपों में प्रकट हो गई।
एक दिन उसके बछड़े के मुख से निकला हुआ फेन मेरे शरीर पर पड़ गया। इससे कुपित होकर मैंने गऊओं को ताप देना आरंभ किया। मेरे रोश में दग्ध हुई गऊओं के रंग ना-ना प्रकार के हो गए।
अब अर्थ नीति के ज्ञाता लोक गुरु ब्रह्मा ने मुझे शांत किया तथा ध्वज, चिन्ह, और वाहन के रूप में यह वृषभ मुझे प्रदान किया।
तो ये थी नंदीकेश्वरी अवतार की जानकारी की नंदी का जन्म कैसे हुआ, नंदी कैसे बने भगवान शिव के वाहन, उनकी पत्नी का नाम, महाभारत में नंदी का वर्णन। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे। साथ ही हमें कमेन्ट के माध्यम से भी बता सकते है।