श्री मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत, देवी महात्म्य (महिमा) मे श्लोक, अर्धश्लोक और उवाच आदि मिलाकर सात सौ मन्त्र है। यह महात्म्य दुर्गा सप्तसती के नाम से विख्यात है । सप्तसती धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारो पुरुषार्थो की प्रदायक (देने वाली) है |
दुर्गा सप्तसती की पूजा नवरात्रो या विषेश अवसरो पर या शतचन्डी आदि अनुष्ठानो में विस्तृत विधि का उपयोग किया जाता है।
दुर्गा सप्तसती हिन्दु धर्म का सर्व मान्य प्राचीन ग्रन्थ है। इसमे भगवती की कृपा के सुन्दर इतिहास के साथ ही बड़े-बड़े गूढ़ (गुप्त) साधन रहस्य भरे पड़े है। यह ज्ञान, कर्म और भक्ति की त्रिविध मन्दाकिनी बहाने वाला ग्रन्थ हैं, भक्तो के लिए कल्पतरू (कल्प वृक्ष) है।
इसलिए हम सब को भगवती परमेश्वरी की सरण ग्रहण करनी चाहिए। क्योंकि भगवती परमेश्वरी आराधना से प्रसन्न होकर मनुष्यों को भोग, स्वर्ग और जीवन मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए मोक्ष प्रदान करती है।
दुर्गा सप्तसती पूजा विधि
सबसे उत्तम बात यह है की भगवती दुर्गा माता के चरणों में प्रेम पूर्ण भक्ति, श्रद्धा के साथ जगदम्बा का स्मरण पूर्वक सप्तसती का पाठ करने वाले को उनकी कृपा का शीघ्र ही अनुभव होने लगता है।
साधक स्नान कर के शुद्ध, स्वच्छ और पवित्र होकर स्वच्छ लाल वस्त्र धारण कर आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न कर शुद्ध आसन पर बैठे शुद्ध जल पूजन सागग्री (जो भी हो) और श्री दुर्गा सप्तसती की पुस्तक को अपने सामने काष्ठ के शुद्ध आसन (पटा, रहल) में विराजमान कर दे।
अपने ललाट पर कुमकुम या रोली या लाल चन्दन लगा ले शिखा बंधन करले फिर पूर्वाभिमुख बैठ कर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन कर ले ।
दुर्गा सप्तसती आचमन मन्त्र निम्नानुसार है :-
1. ॐ ऐं आत्मतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
2. ॐ ह्रीं विद्या तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
3. ॐ क्लीं शिवतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
4. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
फिर शिखा बंधन, प्राणायाम, दिगबंधन, गणेश आदि देवताओ एवं गुरूजनो की पूजा करे, फिर प्रणाम करे, कुश की पवित्री को धारण कर हाथ में लाल फूल, लाल अक्षत और जल लेकर संकल्प करे।
दुर्गा सप्तसती संकल्प (प्रतिज्ञा ) मंत्र :-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः । ॐ नमः परमात्मने] श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपराद्ध्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकायने महामाङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ सकलशास्त्रश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्न] अमुकशर्मा अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुःपुष्टिधनधान्यसमृद्धयर्थ श्रीनवदुर्गाप्रसादेन सर्वा पन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थकाममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्तरात्रिसूक्तपाठदेव्यथर्वशीर्षपाठन्यासविधिसहितनवार्णजपसप्तशतीन्यास ध्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ]मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः ।] इत्याद्यारभ्य ]सावर्णिर्भविता मनुः] इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदत्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये।
1. ध्यात्वा देवी पन्चपुजां कृत्वा योन्या प्रणम्य चा।
अधारं स्थाप्य मूलेन स्थापायेत्त्र पुस्तकम् ।
2. ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।
जिसमे यत्रंस्थकलश, गणेश , नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षी, सप्तचिरंजीव, चौसठयोगिनी, पचास क्षेत्रपाल तथा और अन्य देवताओ की वैदिक विधि विधान से पूजा होती है।
साथ ही अखन्ड दीपक की व्यवस्था की जाती है देवी प्रतिमा की अंगन्यास और अग्न्युत्तारण आदि विधियो के साथ विधिवत पूजा की जाती है।
नवदुर्गा पूजा, ज्योति पूजा, बटुक, गणेश आदि सहित, कुमारी पूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबंधन, पुण्याहवाचन, मंगलपाठ, गुरू पूजा, तीर्थ वाहन, मंत्र स्नान आदि। आसन शुद्धि, प्राणायाम, भूत शुद्धि, प्राणप्रतिष्ठा, अन्तरमातृकान्यास, बहिरमातृकान्यास, सृष्टिन्यास, स्थितिन्यास, शक्तिकलान्यास, शिवकलान्यास, हृदयादिन्यस, षोढान्यास, विलोमन्यास, तत्वन्यास, अक्षरन्यास व्यापकन्यास,ध्यान, पीठपूजा, विशेषाध्य्य, क्षेत्रकीलन, मत्रंपूजा, विविधमुद्राविधि, आवरणपूजा एंव प्रधान पूजा आदि।
फिर योनि मुद्रा का प्रदर्शन कर भगवती जगदम्बा को प्रणाम करे। इसके बाद सपोद्धार करना चाहिए इसके बाद उतकिलन मन्त्र का जाप किया जाता है फिर अन्तर्मात्रका- बहिर्मात्रका न्यास करे फिर जगदम्बा का ध्यान करके रहस्य मे बताये अनुसार नौ कोष्ठो वाले यंत्र मे महालक्ष्मी आदि देवियों की पूजा करे
इसके बाद छ अंगो (कवच, अर्गला, कीलक, प्रथमचरित्र, मध्यमचरित्र, उत्तमचरित्र) सहित श्री दुर्गा सप्तसती का पाठ करना चाहिए सप्तसती का पाठ पूरा होने के बाद नवार्ण जप करके फिर देवी सूक्त पाठ करे, फिर क्षमा प्रार्थना, पूजा समाप्ती पर योनि मुद्रा प्रदर्शित कर भगवती जगतजननी जगदम्बा को साष्ट्रांग प्रणाम करे, और आसन से उठने के पहले आसन के नीचे एक आचमनी जल डाल कर माथे पर लगाते हुए आसन से बाहर हो जाये।